मोदी बोले, देश का भविष्य दांव पर नहीं लगा सकता...

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017 (23:33 IST)
नई दिल्ली। अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचनाओं को सिरे से खारिज करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कहा कि चुनावी फायदे के लिए रेवड़ियां बांटने की बजाए उन्होंने सुधार एवं आम लोगों के सशक्तिकरण का कठिन रास्ता चुना है और वे अपने वर्तमान के लिए  देश का भविष्य दांव पर नहीं लगा सकते। 
 
द इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा,  राजनीति का स्वभाव मैं भलीभांति समझता हूं। चुनाव आए तो रेवड़ियां बांटो... लेकिन रेवड़ियां बांटने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है क्या? प्रधानमंत्री ने कहा कि देश को मजबूत बनाने का उन्होंने कठिन रास्ता चुना है जो सुधार और आम लोगों के सशक्तिकरण पर बल देने वाला है। इस मार्ग पर चलना कठिन है और मेरी आलोचना भी हो रही है। रेवड़ी बांटो तो जयकारा होता है।
 
उन्होंने कहा कि हम देश के सामान्य नागरिकों के सशक्तिकरण पर जोर दे रहे हैं। मैं अपने वर्तमान की चिंता में देश के भविष्य को दांव पर नहीं लगा सकता। राजधानी के विज्ञान भवन में कंपनी सचिवों को एक घंटे से अधिक समय के संबोधन में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों एवं अपनी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना का बिन्दुवार जवाब दिया और आंकड़ों के जरिए  मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के आखिरी तीन वर्षों के कामकाज और अपनी सरकार के तीन वर्ष के कार्यों का ब्यौरा रखा। प्रधानमंत्री के संबोधन के दौरान कई बार तालियां भी बजीं।
 
उन्होंने जीएसटी, नोटबंदी और कालेधन पर लगाम लगाने के लिए  उठाए  गए कदमों को जोर देखकर रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हमने सुधार से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले किए  हैं और देश की वित्तीय स्थिरता और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के हर आवश्यक कदम उठाएंगे। अर्थव्यवस्था की आलोचना करने वालों पर तीखा प्रहार करते हुए मोदी ने इसकी तुलना महाभारत के एक प्रमुख चरित्र और कौरव सेना के सेनापति कर्ण के सारथी ‘शैल्य’ से की और कहा ऐसा करने वाले लोग निराशावादी हैं और शैल्य वृत्ति से ग्रस्त हैं। शैल्य वृत्ति से ग्रस्त लोगों को निराशा फैलाने में आनंद आता है। उन्होंने कहा, जब तक शैल्य वृत्ति रहेगी तब तक ‘सत्यम बद्’ सार्थक कैसे होगा। 
 
प्रधानमंत्री ने सवाल किया,  देश में क्या पहली बार हुआ है जब जीडीपी की वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत हुई है। पिछली सरकार में 6 वर्षों में 8 बार ऐसे मौके आए जब विकास दर 5.7 प्रतिशत या उससे नीचे गिरी। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था ने ऐसे भी मौके देखे हैं जब विकास दर 0.1 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत तक गिरी थी। ऐसी गिरावट देश की अर्थव्यवस्था के लिए  ज्यादा खतरनाक होती है। क्योंकि इस दौरान देश उच्च मुद्रास्फीति, उच्च चालू खाते का घाटा और उच्च राजकोषीय घाटे से जूझ रहा था। 2014 से पहले के दो वर्षों में विकास दर औसतन 6 प्रतिशत के आसपास रही।
 
यह मानते हुए कि पिछली तिमाही में जीडीपी की विकास दर में कमी आई है, प्रधानमंत्री ने कहा कि वे देश की जनता को आश्वस्त करना चाहते हैं कि सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए समय और संसाधनों का समुचित उपयोग कर रही है और हम पिछली तिमाही में गिरावट के क्रम को बदलने को प्रतिबद्ध हैं।
 
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की बदलती हुई अर्थव्यवस्था में अब ईमानदारी को प्रीमियम मिलेगा और ईमानदारों के हितों की रक्षा की जाएगी। नोटबंदी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि 8 नवंबर इतिहास में भ्रष्टाचार से मुक्ति का प्रारंभ दिवस माना जाएगा। जीएसटी का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि वे लकीर के फकीर नहीं है, और जीएसटी परिषद से इस सुधार को लागू करने से जुड़ी तकनीकी बाधाओं को पहचानने को कहा है ताकि छोटे और मध्यम कारोबारियों की समस्याएं दूर की जा सकें। सरकार छोटे कारोबारियों की मदद करने को तैयार है। 
 
उन्होंने कहा कि ये बात सही है कि पिछले तीन वर्षों में 7.5% की औसत वृद्धि दर हासिल करने के बाद इस वर्ष अप्रैल-जून की तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में कमी दर्ज की गई। लेकिन ये बात भी उतनी ही सही है कि सरकार इस ट्रेंड को बदलने (रिवर्स) करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
 
उन्होंने कहा,  मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि सरकार द्वारा उठाए  गए कदम देश को आने वाले वर्षों में विकास की एक नई श्रेणी (लीग) में रखने वाले हैं।  मोदी ने कहा कि जब सांख्यिकी संबंधी एक संस्थान ने अर्थव्यवस्था के संबंध में कुछ समय पहले 7.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया था तब कुछ लोगों ने उसे खारिज कर दिया था। इन लोगों ने उस आंकड़े को जमीनी हकीकत से दूर बताया था, वे 7.4 प्रतिशत वृद्धि दर की बात को पचा नहीं पाए, लेकिन जब उसी संस्था ने 5.7 प्रतिशत का आंकड़ा जारी किया, उन्हीं लोगों को मजा आ गया।
 
उन्होंने कहा कि ऐसे लोग आंकड़ों के आधार पर बात नहीं करते बल्कि अपनी भावना के आधार पर बात करते हैं अपने आलोचकों को कठघरे में खडा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, एक वह भी दौर था जब अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की श्रेणी में भारत को नाजुक अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के एक ऐसे समूह (फ्रेजाइल-5) में रखा गया था जो न केवल अपनी अर्थव्यवस्था के लिए खराब थे बल्कि दूसरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए  भी उन्हें खराब माना गया था।
 
उन्होंने कहा,  मेरे जैसे अर्थशास्त्र के कम जानकार को यह समझ नहीं आता है कि इतने बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के होते हुए ऐसा कैसे हो गया।  मोदी ने कहा कि देश में विभिन्न मानकों पर बेहतर विकास हो रहा है। तब भी ऐसे कुछ लोग हैं जिन्होंने अपनी आंखों पर पर्दा डाल लिया है। ऐसे में दीवार पर लिखी चीजें भी उन्हें दिखाई नहीं देती हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार नीतियां और योजनाएं इस बात को ध्यान में रखकर बना रही हैं कि मध्यम वर्ग पर बोझ कम हो और निम्न मध्यम वर्ग और गरीबों का सशक्तिकरण हो। (भाषा)

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