दरअसल एनएसजी को अपने ऑपरेशन में इस्तेमाल के लिए एक सैटेलाइट उपकरण की जरूरत थी। ऐसे में खरीद की पहली प्रक्रिया यानि रिक्वेस्ट ऑफ प्रपोजल के दौरान एनएसजी ने इसकी बनावट से लेकर तमाम खासियत अपनी वेबसाइट पर डाल दी जो सुरक्षा के लिहाज से बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। हालांकि बाद में एनएसजी ने फौरन ये जानकारी वेबसाइट से हटा दी।
एनएसजी एंटी टेरर और एंटी हाईजैक ऑपरेशन्स को सालों से अंजाम देती आई है। उसके जवान तमाम तरह के अत्याधुनिक हथियारों से लैस रहते हैं। लेकिन जरा सोचिए अगर हथियारों की जानकारी और खासियत सार्वजनिक कर दी जाए तो क्या होगा? क्या आतंकी और देश विरोधी ताकतें इसकी काट नहीं निकाल लेंगी? क्या जवानों की जान को खतरा नहीं हो जाएगा?
एनएसजी के अधिकारियों को कई बार सुरक्षा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। ये पुलिस से आते हैं और ओवर नाइट बॉस बन जाते हैं। इसलिए कई बार उनका ध्यान सुरक्षा की ओर नहीं जाता। एनएसजी की वेबसाइट में उन्होंने काउंटर टेरर और काउंटर हाईजैक ऑपरेशन्स में इस्तेमाल के लिए हबलेस मैनपोर्टेबल सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम की खरीद का रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल डाला है। इसका इस्तेमाल आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान कमांडो और एनएसजी हेडक्वाटर्स के बीच होता है।
इसके जरिए आवाज, आंकड़े, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और दूसरे तरह के संवाद भेजने के लिए होता है। इसमें इसकी बनावट से लेकर इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर, बैंडविथ की विशेषता, सिक्योरिटी फीचर, नेटवर्क मैनेजमेंट सिस्टम फीचर, एंटीना सिस्टम और दूसरी तमाम तरह की जानकारी दी गई हैं। वैसे तो ये वो जरूरतें और खूबियां हैं जो एनएसजी को एक सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम में चाहिए, लेकिन जरा सोचिए जिस अंदाज में खुलेआम इसे वेबसाइट पर डाला गया, क्या उसका गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सिक्योरिटी एक्सपर्ट आलोक बंसल कहते हैं कि ये दो धारी तलवार है, क्योंकि दूसरे लोग इस जानकारी का प्रयोग कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर ऑडिटर्स को लगता है कि आप बेइमान हैं, आपमें ट्रांसपेरेंसी नहीं है। इसलिए टेंडर सार्वजनिक करने पड़ते हैं। इस मुद्दे पर एनएसजी ने आधिकारिक तौर से कुछ भी कहने से मना कर दिया। हालांकि इस ओर ध्यान दिलाने के बाद आनन-फानन में वेबसाइट से सारी जानकारी मिटा दीं।