नजरिया : CAA को नहीं लागू करने पर राज्यों में राष्ट्रपति शासन का खतरा, संवैधानिक टकराव के हालात !

विकास सिंह

शनिवार, 11 जनवरी 2020 (11:54 IST)
देश भर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच नागरिकता संशोधन कानून (CAA ) शुक्रवार को   देश भर में लागू हो गया है। कानून को देश भर में लागू करने का गजट नोटफिकेशन (भारत के राजपत्र में प्रकाशन) केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कर दिया गया। इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सके गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
 
केंद्र सरकार की ओर से CAA के गजट नोटिफिकेशन के बाद अब इस कानून को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक संकट खड़ा होता दिख रहा है। कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब सहित पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपने यहां इस नए कानून को लागू करने से पहले ही इंकार कर दिया है। वहीं केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने पहले ही साफ कर दिया है कि सभी राज्य सरकारों को इस कानून को लागू करना होगा क्योंकि नागरिकता केंद्रीय सूची का विषय है। 
CAA के गजट अधिसूचना जारी होने और पूरे देश में इस कानून को लागू होने के बाद केंद्र और राज्यों के बीच संभावित टकराव और उसके कानूनी और संवैधानिक पहलुओं को समझने के लिए वेबदुनिया ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से खास बातचीत की। बातचीत की शुरुआत करते हुए संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप नागरिकता कानून को समझाते हुए कहते हैं कि संघ सूची के अनुसार नागरिकता का जो मामला है वो केवल और केवल संसद के अधिकार क्षेत्र में है और नगारिकता पर कानून बनाने का अधिकार केवल भारत की संसद को ही प्राप्त है। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में राज्यों के कानून नहीं लागू करने से जुड़े सवाल पर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि इन परिस्थितियों में कानून को देश भर में लागू कराने को लेकर केंद्र सरकार के पास कई विकल्प है। वह कहते हैं कि केंद्र सरकार राज्यों को संविधान के अनुच्छेद 256 और 257 के तहत निर्देश दे सकती है और अगर उसके बाद भी राज्य अपने यहां कानून को लागू नहीं करते है तो आखिरी विकल्प के तौर केंद्र अपनी शक्तियों को उपयोग कर राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकता है।

सुभाष कश्यप कहते हैं कि अगर राज्य संविधान का अनुपालन नहीं करते हैं तो संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 में प्रावधान है कि अगर किसी राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा हो तो सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। वह कहते हैं कि केंद्र के पास कानून को लागू कराने के पास कई विकल्प है अब यह फैसला केंद्र को करना होगा कि वह राजनीतिक दष्टि से कौन से विकल्प चुनती है।
 
वेबदुनिया से बातचीत में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि संभवत ये इतिहास में पहली बार हो रहा हैं कि जब केंद्र के किसी कानून को इतनी बड़ी संख्या में राज्यों ने लागू करने से मना कर दिया है और इसके विरोध में आगे आए हो।
 
वह कहते हैं कि गजट नोटिफिकेशन के बाद अब राज्य के पास केवल सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प बचा है। वह कहते हैं कि अब सुप्रीम कोर्ट ही कानून को संविधान सम्मत नहीं मानते हुए अवैध घोषित कर दें तो दूसरी बात है।     
वेबदुनिया से बातचीत में सुभाष कश्यप कहते हैं कि उनको उम्मीद है कि राज्य संविधान का आदर करते हुए कानून को लागू करेंगे और कोई बड़ा टकराव देखने को नहीं मिलेगा। वहीं वो यह भी कहते हैं कि इस मामले में अब राज्यों के पास आखिरी विकल्प सुप्रीम कोर्ट ही बचा है और अब इस लड़ाई में आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही मान्य होगा।

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