विपक्षी गठबंधन INDIA ने बृहस्पतिवार को डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम की धारा 44(3) को निरस्त करने की मांग करते हुए दलील दी कि यह सूचना का अधिकार (RTI) कानून को कमजोर करती है। किसी भी व्यक्ति के बारे में व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने पर रोक लगाने वाली धारा और आरटीआई अधिनियम पर इसके प्रभाव को लेकर नागरिक समाज समूहों द्वारा चिंता जताए जाने के बीच, विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि जब यह अधिनियम लोकसभा में पारित किया जा रहा था, तब सरकार ने इसमें कुछ संशोधन पेश किए, जिससे विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की सिफारिशों को पलट दिया गया।
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता जॉन ब्रिटास, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेता टीआर बालू समेत 120 से अधिक सांसदों ने इस धारा को निरस्त करने के लिए एक संयुक्त ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और इसे सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंपा जाएगा।
वर्ष 2023 में संसद में विधेयक पारित होने की चर्चा करते हुए गोगोई ने कहा, एक जेपीसी गठित की गई थी, विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी और बाद में सरकार, जैसा कि उसकी आदत रही है, जब वह विधेयक पारित करने जा रही होती है तो कुछ संशोधन लाती है, जिससे जेपीसी रिपोर्ट की प्रकृति मौलिक रूप से बदल गई है।
उन्होंने कहा, यह विधेयक ऐसे समय पारित किया गया जब पूरा देश मणिपुर के संदर्भ में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को देख रहा था। इसलिए यह महत्वपूर्ण विधेयक, जिस पर विचार-विमर्श और चर्चा होनी चाहिए थी, सरकार ने इसे पारित करा लिया और तब से हम अधिनियम के विभिन्न निहितार्थों का अध्ययन कर रहे हैं और जैसा कि हमने स्पष्ट रूप से समझा है, हालिया संशोधनों का नागरिकों के अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर कठोर प्रभाव पड़ा है।
डीपीडीपी विधेयक को सात अगस्त, 2023 को लोकसभा द्वारा और नौ अगस्त, 2023 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। इसे 11 अगस्त, 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। उसी सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, जो 10 अगस्त 2023 को लोकसभा में गिर गया।
गोगोई ने कहा कि हाल में संपन्न संसद के बजट सत्र के दौरान नागरिक समाज समूह के कार्यकर्ताओं ने इंडिया गठबंधन के विभिन्न नेताओं और राहुल गांधी से भी संपर्क किया था। उन्होंने कहा, यह निर्णय लिया गया कि हम सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री के समक्ष एक सामूहिक अर्जी के माध्यम से इस मुद्दे को उठाएंगे... डीपीडीपी अधिनियम ने संसद द्वारा पारित सूचना के अधिकार कानून को कमजोर कर दिया है।
गोगोई ने कहा कि वह उस जेपीसी में थे जिसने डीपीडीपी विधेयक पर विचार किया था। उन्होंने कहा, जेपीसी में धारा 8(1)(जे) से संबंधित किसी भी बात पर चर्चा नहीं की गई। मैंने असहमति पत्र प्रस्तुत किया और कई अन्य विपक्षी दलों के साथियों ने भी ऐसा किया है। यह संशोधन उस समय अंतिम चरण में किया गया था, जब पूरा देश मणिपुर पर बहस कर रहा था। इसलिए सरकार की दुर्भावनापूर्ण मंशा बहुत स्पष्ट है।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेता एमएम अब्दुल्ला, शिवसेना (उबाठा) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी, माकपा के नेता जॉन ब्रिटास, सपा के नेता जावेद अली खान और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता नवल किशोर भी मौजूद थे। नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) का विरोध किया है, जिसके जरिए आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(जे) को प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।
आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत व्यक्तिगत जानकारी देने से रोकने की अनुमति है, यदि उसका खुलासा किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित नहीं है या इससे निजता का अनुचित उल्लंघन होता है। यह प्रतिबंध हालांकि एक महत्वपूर्ण शर्त के अधीन है : यदि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, राज्य लोक सूचना अधिकारी, या अपीलीय प्राधिकारी यह निर्धारित करते हैं कि सूचना का खुलासा करने से व्यापक जनहित में मदद मिलेगी, तो इसे उपलब्ध कराया जा सकता है।
डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में संशोधन करती है, जो सरकारी निकायों को व्यक्तिगत जानकारी देने से प्रतिबंधित करती है, जिसमें सार्वजनिक हित या किसी अन्य अपवाद पर विचार नहीं किया जाता है। गोगोई ने इस पर विस्तार से बात करते हुए एक उदाहरण दिया और कहा, तो कल, यदि आपको बिहार में ढह रहे पुलों के बारे में जानकारी चाहिए और आप ठेकेदार की जानकारी मांगते हैं, तो आपको मना किया जा सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया, डीपीडीपी अधिनियम के तहत बहुत ही गोपनीय, दुर्भावनापूर्ण और शरारती तरीके से नागरिकों के सूचना के अधिकार को छीन लिया गया है। उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन के घटक दल आईटी मंत्री वैष्णव को दी जाने वाली अर्जी में उनसे धारा 44 (3) को निरस्त करने का आग्रह करेंगे। शिवसेना (उबाठा) नेता चतुर्वेदी ने कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर भी हमला है।
उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार को एक ऐसी राह पर ले जाया जा रहा है जहां लोगों को किसी भी भ्रष्टाचार के बारे में पता ही न चले। उन्होंने कहा, 2019 में डीपीडीपी विधेयक में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, 2021 में जेपीसी के पास जाने के बाद भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। वर्ष 2023 में ए प्रावधान लाए गए जिससे आरटीआई निरर्थक हो जाएगा।
सपा के जावेद अली ने कहा कि वे अभी सरकार से अपील कर रहे हैं और समय आने पर अन्य विकल्पों पर भी विचार करेंगे। माकपा के नेता ब्रिटास ने आरटीआई अधिनियम को ऐतिहासिक बताया और कहा, एक झटके में उन्होंने आरटीआई अधिनियम को खत्म कर दिया है और इसका मीडिया पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour