2019 में आसान नहीं है भाजपा की राह, मुश्किल बढ़ा सकते हैं शिवसेना और जदयू

Webdunia
रविवार, 10 जून 2018 (11:38 IST)
नई दिल्ली। शिवसेना और जनता दल (यू) के मौजूदा तेवरों को देखते हुए यदि वे दोनों भी भाजपा के विरुद्ध लामबंद हो रहे दलों के साथ खड़े हो जाते हैं तो उसे अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए सहयोगी जुटाने और केंद्र में सरकार बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 282 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल किया था लेकिन उसने सहयोगी दलों को साथ लेकर केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनाई थी। उस समय 18 सीटों के साथ शिवसेना और 15 सीटों के साथ तेलुगुदेशम पार्टी (तेदेपा) उसके 2 बड़े सहयोगी दल थे। इनमें से तेदेपा ने भाजपा से नाता तोड़ लिया है जबकि शिवसेना अगला आम चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़ने की बात लगातार कह रही है। हाल में पालघर संसदीय सीट का उपचुनाव उसने भाजपा के विरुद्ध लड़ा था हालांकि उसे पराजय का सामना करना पड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव में जनता दल (यू) भाजपा के साथ नहीं थी।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाद में भाजपा के साथ हाथ मिलाकर राज्य में साझा सरकार बनाई और अब उनकी पार्टी राजग का हिस्सा है। जद (यू) ने अगले आम चुनाव के लिए राज्य की 40 सीटों में से 25 उसे देने की मांग उठाकर भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर दी है। पिछले चुनाव में भाजपा ने राज्य में 22 सीटें जीती थीं जबकि उसके सहयोगी दलों लोक जनशक्ति पार्टी को 6 तथा आरएलएसपी को 3 सीटें मिली थीं।

केंद्र में भाजपा का साथ दे रहे अन्य प्रमुख दलों की बात करें तो लोक जनशक्ति पार्टी और आरएलएसपी के अलावा अकाली दल के पास 4, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पास 3 तथा अपना दल के पास 2 सीटें हैं। विभिन्न राज्यों की स्थिति पर नजर डालें तो शिवसेना और जनता दल (यू) के अलग हो जाने पर भाजपा को कोई बड़ा सहयोगी दल ढूंढने के लाले पड़ सकते हैं।

जिन 10 प्रमुख राज्यों में भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला नहीं है, वहां मौजूदा हालात में ऐसा कोई दल नजर नहीं आता जिससे भाजपा हाथ मिला सके। इन राज्यों में लोकसभा की करीब 350 सीटें हैं और यहां भाजपा का खराब प्रदर्शन उसके लिए अगले साल सरकार बनाने में मुश्किलें पैदा कर सकता है। पिछले चुनाव में इन राज्यों में भाजपा को 140 से अधिक सीटें मिली थीं, जो उसे मिली कुल सीटों की आधी हैं। उसके सहयोगी दलों को इन राज्यों में 40 से अधिक सीटें मिली थीं।

80 सीटों वाले सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में भाजपा ने पिछले चुनाव में 71 सीटें जीती थीं तथा उसकी सहयोगी अपना दल को 2 सीटें मिली थीं। पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में उसने रिकॉर्ड 325 सीटें जीती थीं। राज्य में एकजुट हुए विपक्षी दलों ने उपचुनावों में भाजपा से लोकसभा की 3 सीटें छीनकर उसके लिए खतरे की घंटी बजा दी है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में जुटे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के नेताओं ने भाजपा का मिलकर मुकाबला करने के साफ संकेत दिए हैं।

महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर भाजपा ने 48 में से 41 सीटों पर कब्जा किया था जबकि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन को 6 सीटें मिली थीं। शिवसेना के छिटक जाने पर भाजपा को अकेले ही इन दलों का सामना करना पड़ेगा।

पश्चिम बंगाल में वह अपनी स्थिति लगातार मजबूत जरूर कर रही है लेकिन वहां कोई ऐसा दल नहीं है जिससे कि वह हाथ मिला सके। मोदी लहर के बावजूद तृणमूल कांग्रेस ने पिछले चुनाव में राज्य की 42 सीटों में से 34 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को 4 तथा माकपा और भाजपा को 2-2 सीटें मिली थीं।

ओडिशा में बीजू जनता दल, भाजपा और कांग्रेस प्रमुख दल हैं। पिछले चुनाव में बीजद ने 21 में से 20 सीटें जीती थीं। भाजपा को 1 सीट मिली थी।

बिहार का मामला दिलचस्प है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने राज्य की 40 में से 31 सीटें जीती थीं, लेकिन 1 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू) और कांग्रेस के महागठबंधन ने उसे करारी शिकस्त दी। नीतीश कुमार ने बाद में महागठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली। जनता दल (यू) की तरह ही लोक जनशक्ति पार्टी और आरएसएसपी भी पहले से अधिक सीटों की मांग कर भाजपा पर दबाव बढ़ा रही हैं।

दक्षिण भारत की बात करें तो कर्नाटक (28) में कांग्रेस और जनता दल (एस) ने मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। भाजपा ने आंध्रप्रदेश (25) और तेलंगाना (17) में पिछला चुनाव तेलुगुदेशम के साथ मिलकर लड़ा था तथा दोनों राज्यों को मिलाकर उसे सिर्फ 3 सीटें मिली थीं। आंध्रप्रदेश में तेलुगुदेशम के बाद वाईएसआरसीपी बड़ी पार्टी है लेकिन उसके साथ भाजपा की तालमेल की संभावनाएं बहुत ज्यादा नहीं है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस, कांग्रेस और भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के प्रयास में है।

तमिलनाडु में पिछले चुनाव में जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक ने 39 में से 37 सीटें जीती थीं तथा भाजपा को 1 सीट मिली थी। जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक की मुश्किलें बढ़ी हैं। उसके साथ भाजपा के तालमेल की संभावना बन सकती है। केरल (20) में 2 मोर्चे पहले से ही बने हुए हैं। एक तरफ कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा है, तो दूसरी तरफ वाम मोर्चा है और दोनों ही भाजपा विरोधी हैं। (वार्ता)
 

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख