आमतौर पर कोई व्यक्ति कितना पढ़ता है या कितनी डिग्रियां लेगा। बेचलर डिग्री के बाद ज्यादा से ज्यादा मास्टर्स। उससे ज्यादा एमफिल या पीएचडी। या यूं कहें कि एक व्यक्ति किसी एक ही प्रोफेशन को चुन सकता है, लेकिन एक शख्स ऐसा है जिसने न सिर्फ कई कई डिग्रियां लीं, बल्कि डॉक्टर, बेरिस्टर से लेकर आईएएस और आईपीएस जाने क्या क्या बन गया। आप गिनते हुए थक जाएंगे लेकिन इस शख्स की डिग्रियां और प्रोफेशन खत्म नहीं होगा।
आइए जानते हैं इस अद्भुत, अकल्पीय व्यक्तित्व के बारे में।
इस शख्स का नाम है श्रीकांत जिचकर। श्रीकांत जिचकर का जन्म 1954 में संपन्न मराठा कृषक परिवार में हुआ था। वे भारत के सर्वाधिक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। श्रीकांत ने 20 से अधिक डिग्री हासिल की थीं।
कुछ रेगुलर व कुछ पत्राचार के माध्यम से। वह भी फर्स्ट क्लास। गोल्डमेडलिस्ट,कुछ डिग्रियां तो उच्च शिक्षा में नियम ना होने के कारण उन्हें नहीं मिल पाई जबकि परीक्षाएं उन्होंने दी थी।
इस प्रकार थीं उनकी डिग्रियां/ शैक्षणिक योग्यता...
वे एमबीबीएस, एमडी गोल्ड मेडलिस्ट, एलएलबी, एलएलएम, एमबीए, बेचलर इन जर्नलिज्म, संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि यूनिवर्सिटी टॉपर, एमए इन अंग्रेजी, एमए इन हिंदी, एमए इन हिस्ट्री, एमए इन साइकोलॉजी, एमए सोशियोलॉजी, एमए पॉलिटिकल साइंस, एमए आर्कियोलॉजी, एमए एंथ्रोपोलॉजी थे।
क्या-क्या नहीं बन गए
जहां तक उनके प्राफेशन की बात है तो वे डॉक्टर थे, बैरिस्टर भी रहे।
आईपीएस और आईएएस अधिकारी भी रहे। वे विधायक थे। मंत्री, सांसद भी रहे। चित्रकार और फोटोग्राफर भी थे। वे मोटिवेशनल स्पीकर भी रहे। पत्रकार भी और कुलपति भी बने। संस्कृत,गणित, इतिहासकार, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र का भी ज्ञान रखते थे। उन्होंने कविताएं भी लिखीं।
इन वर्षों में किया काम
श्रीकान्त 1978 बैच के आईपीएस व 1980 बैच आईएएस अधिकारी थे। 1981 में महाराष्ट्र में विधायक बने। 1992 से लेकर 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे। श्रीकांत जिचकर ने वर्ष 1973 से लेकर 1990 तक तमाम यूनिवर्सिटी के इम्तिहान देने में समय गुजारा। 1980 में आईएएस की केवल 4 महीने की नौकरी कर इस्तीफा दे दिया। 26 वर्ष की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के विधायक बने, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बने। 14 पोर्टफोलियो हासिल कर सबसे प्रभावशाली मंत्री रहे। 1992 से लेकर 1998 तक बतौर राज्यसभा सांसद संसद की बहुत सी समितियों के सदस्य रहे।
पुणे में संदीपनी स्कूल की स्थापना की। नागपुर में कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की जिसके पहले कुलपति भी बने। उनका पुस्तकालय किसी व्यक्ति का निजी सबसे बड़ा पुस्तकालय था जिसमें 52000 के लगभग पुस्तकें थीं। यूट्यूब पर उनके केवल 3 ही मोटिवेशनल हेल्थ फिटनेस संबंधित वीडियो उपलब्ध हैं।
मौत को दे डाली मात
कहा जाता है कि 1999 में उन्हें कैंसर हुआ था जो उनकी लास्ट स्टेज तक पहुंच गया था। डॉक्टर ने कहा आपके पास केवल एक महीना ही है। लेकिन जिचकर चमत्कारिक तौर से स्वस्थ हो गए...! इसके बाद उन्होंने स्वस्थ होते ही राजनीति से सन्यास लेकर संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि अर्जित की।
2 जून 2004 को नागपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर एक जगह पर सड़क हादसे में 49 वर्ष की आयु में श्रीकांत जिचकर का निधन हो गया।