दिल्ली उच्च न्यायालय ने वायुसेना के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें एयरमैन के पद पर नियुक्त एक शख्स की नियुक्ति इसलिए रद्द कर दी गई, क्योंकि उसने अपनी बांह पर ऐसा टैटू बनवा लिया था जिसे कभी मिटाया या हटाया नहीं जा सकता। वायुसेना कुछ खास तरह के टैटू की इजाजत देती है। वह आदिवासियों को उनके रीति-रिवाजों एवं परंपराओं के मुताबिक बनाए गए टैटू के मामलों में भी रियायत देती है।
बहरहाल, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति रेखा पाटिल की पीठ ने कहा कि अभ्यर्थी के बदन पर बना टैटू वायुसेना की ओर से दी जाने वाली रियायतों के दायरे में नहीं आता और उसने अपना आवेदन जमा करते वक्त भी अपने टैटू की तस्वीर नहीं सौंपी जबकि वायुसेना की ओर से जारी विज्ञापन में इस बाबत निर्देश दिए गए थे।
वायुसेना के वकील ने स्पष्ट किया कि सिर्फ बांहों के अंदरुनी हिस्से, हाथ के पिछले हिस्से या हथेली के निचले हिस्से में बदन पर स्थायी टैटू की इजाजत है। इसके अलावा टैटू बनवा चुके आदिवासी अभ्यर्थियों के मामले में सिर्फ ऐसे टैटू की इजाजत है, जो उनके रीति-रिवाज और परंपराओं के मुताबिक बनाए गए हों तथा अभ्यर्थी की स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता पर फैसले का हक चयन समिति के पास है।
याचिकाकर्ता ने एयरमैन पद पर अपनी नियुक्ति रद्द करने के वायुसेना के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि जब उसे नियुक्ति-पत्र जारी किया गया था तो उसकी ओर से जमा किए गए एक प्रमाण-पत्र में उसने जानकारी दे दी थी कि उसके बदन पर एक टैटू है और ऐसा नहीं है कि उसने अधिकारियों से कुछ छुपाया है। बहरहाल पीठ ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के बदन पर बना टैटू विज्ञापन में दी गई रियायत के दायरे में नहीं आता और इसी वजह से हम उसकी नियुक्ति को रद्द करने वाले आदेश में कोई खामी नहीं पाते।
न्यायालय ने कहा कि दिसंबर 2017 में उसकी नियुक्ति रद्द करने का ठीकरा अधिकारियों पर नहीं मढ़ा जा सकता, क्योंकि वह उस वक्त अपने टैटू की तस्वीर जमा करने में नाकाम रहा था। याचिकाकर्ता ने 29 सितंबर 2016 को वायुसेना में एयरमैन पद के लिए आवेदन किया था और फरवरी 2017 में लिखित एवं शारीरिक परीक्षा पास करने के बाद उसे मेडिकल जांच के लिए बुलाया गया। वह मेडिकल जांच में भी पास हो गया।