कश्मीरियों के लिए 'भस्मासुर' बना आतंकवाद

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा छेड़ी गई तथाकथित आजादी की जंग का खमियाजा आज उन्हीं मुस्लिम परिवारों को भुगतना पड़ा है, जिन्होंने कभी आतंकियों तथा पाकिस्तान के बहकावे में आकर सड़कों पर निकल आजादी समर्थक प्रदर्शनों में भाग लिया था। हालांकि आजादी का सपना तो पूरा नहीं हुआ, परंतु परिवारों के कई परिजनों को जीवन से आजादी अवश्य मिल गई और यह आजादी किसी और ने नहीं, बल्कि आतंकियों ने ही दी है मौत के रूप में।
 
धरती के स्वर्ग कश्मीर में फैले इस्लामी आतंकवाद का एक दर्दनाक पहलू यह है कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में जो अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ा हुआ है उसके अधिकतर शिकार होने वाले मुस्लिम ही हैं और यह भी सच है कि इस्लाम के नाम पर ही आज पाक प्रशिक्षित आतंकी मुस्लिम युवतियों को अपनी वासना का शिकार बना रहे हैं। हालांकि हिन्दू भी इस आतंक का शिकार हुए हैं परंतु समय रहते उनके द्वारा पलायन कर लिए जाने के परिणामस्वरूप उतनी संख्या में वे इसके शिकार नहीं हुए जितने कि मुस्लिम हुए हैं और हो रहे हैं।
 
 
गत 29 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान कश्मीर में अनुमानतः 50 हजार से अधिक लोग आतंकियों के हाथों मारे गए हैं और मजेदार बात यह है कि इन 50 हजार में से 40 हजार से अधिक मुस्लिम ही हैं। असल में आतंक की आग के फैलते ही घाटी के कश्मीरी पंडितों तथा अन्य हिन्दुओं ने पलायन कर देश के अन्य भागों में शरण ले ली थी परंतु मुस्लिम ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुए थे। नतीजतन आज भी वे आतंकियों की गोलियों का शिकार हो रहे हैं।
 
 
कश्मीर में आज कोई ऐसा परिवार नहीं है जिसके एक या दो सदस्य आतंकवादियों या सुरक्षाबलों की गोलियों से न मारे गए हों बल्कि मौतों के अतिरिक्त इन परिवारों के लिए दुखदायी बात यह है कि उनके परिवार के कई सदस्य अभी भी लापता हैं, जो सुरक्षाबलों द्वारा हिरासत में लिए तो गए थे परंतु आज भी उनके प्रति कोई जानकारी नहीं है।
 
इससे और अधिक चौंकाने वाला तथ्य क्या हो सकता है कि कश्मीर में आतंक के दौर के दौरान जो महिलाएं आतंकियों के सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई हैं वे सभी मुस्लिम ही थीं, जिनकी अस्मत इस्लाम के लिए जंग लड़ने वालों ने लूट ली। कश्मीर में करीब 3000 मुस्लिम युवतियों तथा महिलाओं को अपनी जाने तथा अस्मत से इसलिए भी हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्होंने आतंकियों के लिए कार्य करना स्वीकार नहीं किया।
 
इस्लामी आतंकवाद से कश्मीर के मुस्लिम कितने त्रस्त हैं इसके कई उदाहरण हैं। आज इसी आतंक के कारण सैकड़ों परिवार बेघर हैं, कई के परिजन अभी लापता हैं, सैकड़ों अर्द्ध विधवाएं हैं जो अपने आप को न सुहागन कहलवा पाती हैं और न ही विधवा, हजारों बच्चे अनाथ हो चुके हैं जिनके मां-बाप को या तो आतंकवादियों ने मार दिया या फिर वे सुरक्षाबलों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में मारे गए।
 
कभी मुखबिर का ठप्पा लगा इन मुस्लिमों की हत्याएं की गईं तो कभी कोई अन्य आरोप लगा, लेकिन इतना अवश्य है कि आतंकी अपने संघर्ष के दौरान कश्मीरी जनता की हत्याएं करने का कोई न कोई बहाना अवश्य ही ढूंढते रहे हैं। हालांकि मृतकों में हिन्दू भी शामिल हैं परंतु उनकी संख्या नगण्य इसलिए है क्योंकि 1990 में जब आतंकवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा था तो तब तक हिन्दू परिवार कश्मीर से पलायन कर चुके थे।
 
 
आतंकवादियों की कार्रवाइयों से सबसे अधिक त्रस्त मुस्लिम ही हुए हैं। इसका प्रमाण घाटी में होने वाली हत्याओं से तो मिलता ही है, अपहरणों तथा युवतियों के साथ होने वाले बलात्कार की घटनाओं से भी मिलता है। गौरतलब है कि आतंकवादियों ने करीब 8000 लोगों को अपनी अपहरणनीति का शिकार अभी तक बनाया है और इसमें 99 प्रतिशत मुस्लिम ही थे इससे कोई भी इंकार नहीं करता। इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर के मुस्लिमों को और क्या-क्या खमियाजा भुगतना पड़ा, इसे कोई भी अपनी आंखों से देख सकता है।

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