The Kashmiri Pandits organizations took this big decision regarding the genocide case : जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाए जाने के बाद पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव की तिथि नजदीक आने पर कश्मीरी पंडित समुदाय के कई संगठनों ने उनका नरसंहार होने की बात से लगातार इनकार किए जाने को लेकर केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया से दूर रहने का फैसला किया है।
मतदान से दूर रहने का निर्णय यहां कश्मीरी पंडित नागरिकों की बैठक में लिया गया। यह बैठक तीन चरणों में 18, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आयोजित की गई थी। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित नेताओं ने भाग लिया।
कार्यक्रम में, एक ऐसे चुनाव में भाग लेने की नैतिक और राजनीतिक दुविधा पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें उनके नरसंहार को स्वीकार करने संबंधी समुदाय की मांग की अनदेखी की जाती रही है और जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जबरन पलायन करना पड़ा।
वकील एवं संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ टीटो गंजू ने कहा, पिछले कई दशकों से हम निर्वासित समुदाय के रूप में रह रहे हैं और यह देख रहे हैं कि कैसे एक-के-बाद एक सरकारें और राजनीतिक दल हमारे पलायन और हमारी पीड़ा को चुनावों के दौरान चर्चा का विषय बनाते हैं।
उन्होंने कहा, फिर भी, जब न्याय की हमारी मांगों पर ध्यान देने की बात आती है (हमारे नरसंहार को स्वीकार करने, सम्मान के साथ हमारी घर वापसी की सुविधा प्रदान करने और हमारे अधिकारों को बहाल करने) तो हमें चुप्पी का सामना करना पड़ता है। गंजू ने कहा, इन चुनावों में भाग लेकर हम उसी व्यवस्था की मदद करेंगे जो हमें लगातार नकारती रही है। यह चुनाव हमारे मुद्दे को लेकर नहीं है, और हमें अपने संकल्प पर दृढ़ रहना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव से दूर रहने से राजनीतिक प्रतिष्ठान को स्पष्ट संदेश जाएगा कि कश्मीरी पंडितों को एक बड़े राजनीतिक खेल में महज मोहरे के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जो उनकी वैध शिकायतों की अनदेखी करता हो।
पनून कश्मीर के अध्यक्ष अजय च्रुंगू ने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और जबरन विस्थापन पर ध्यान दिए बिना यह चुनाव कराकर शासन प्रणाली हमारे विनाश को अंतिम रूप देने का प्रयास कर रही है। च्रुंगू ने इस बात पर जोर दिया कि यह महज एक राजनीतिक फैसला नहीं है, बल्कि अस्तित्व बनाए रखने से जुड़ा फैसला है। उन्होंने कहा, मौजूदा चुनाव प्रक्रिया लोकतांत्रिक ढांचे में हमारे समावेश के लिए नहीं है। अगर हम इसमें भाग लेते हैं, तो हम खुद को हाशिए पर धकेलने में भागीदार बनेंगे।
बैठक में यह संकल्प लिया गया कि समुदाय आगामी चुनाव में भाग नहीं लेगा, जब तक कि उनके नरसंहार को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं कर लिया जाता तथा उनके पुनर्वास एवं उनकी घर वापसी के लिए सार्थक कदम नहीं उठाए जाते। पनून कश्मीर के सचिव एमके धर ने कहा कि चुनावी भागीदारी से दूर रहने का निर्णय लोकतंत्र की अस्वीकृति नहीं, बल्कि न्याय और सच्चाई का आह्वान है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour