हालांकि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने ये उपाय खुदरा कारोबारियों को नुकसान से बचाने के लिए किए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी के इन उपायों से एफएंडओ कारोबार की मात्रा में 30-40 प्रतिशत की गिरावट आएगी। अगर इन उपायों को लागू किया गया तो खुदरा निवेशकों की संख्या में कमी आ सकती है।
इसके अलावा छूट देने वाले ब्रोकर, जो खुदरा निवेशकों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, वे पारंपरिक ब्रोकरों की तुलना में अधिक प्रभावित हो सकते हैं। विकल्प वित्तीय अनुबंध होते हैं, जो धारक को अनुबंध अवधि के भीतर किसी परिसंपत्ति को तय मूल्य पर खरीदने या बेचने का अधिकार देते हैं।
सेबी के इन सात प्रस्तावों में साप्ताहिक विकल्प अनुबंधों को युक्तिसंगत बनाना, परिसंपत्तियों की स्ट्राइक कीमतों को युक्तिसंगत बनाना और अनुबंध समाप्ति के दिन कैलेंडर स्प्रेड लाभों को हटाना शामिल है। अन्य चार प्रस्तावों में विकल्पों के खरीदारों से विकल्प प्रीमियम का अग्रिम संग्रह, सौदे करने की सीमा की दिन में कारोबार के दौरान निगरानी, लॉट आकार में वृद्धि और अनुबंध समाप्ति के निकट मार्जिन आवश्यकताओं में वृद्धि शामिल हैं।
जेफरीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साप्ताहिक विकल्प अनुबंधों की संख्या को 18 से घटाकर छह करने के सेबी के प्रस्तावित उपायों से उद्योग के प्रीमियम पर लगभग 35 प्रतिशत प्रभाव पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि अगर कारोबार बाकी अनुबंधों पर स्थानांतरित होता है तो समग्र प्रभाव 20-25 प्रतिशत तक कम हो सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2025-26 तक एनएसई की आय में 25-30 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जबकि बीएसई की आय में 15-18 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। जेफरीज का यह भी मानना है कि बैंकेक्स साप्ताहिक अनुबंध को हटाने से वित्त वर्ष 2025-27 के दौरान बीएसई की प्रति शेयर आय (ईपीएस) पर 7-9 प्रतिशत का असर पड़ सकता है।
इसने आगे कहा कि बीएसई की आय में थोड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है, लेकिन अगर ट्रेडिंग गतिविधि दूसरे उत्पादों पर चली जाती हैं तो यह प्रभाव कम हो सकता है। आईआईएफएल सिक्योरिटीज ने अनुमान जताया कि इन नियमों से एमसीएक्स पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour