नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने पैगंबर मुहम्मद पर नूपुर शर्मा की आपत्तिजनक टिप्पणी के खिलाफ हिंसक विरोध के बाद प्रयागराज और कानपुर में स्थानीय प्राधिकरणों की ओर से अवैध भवनों में तोड़फोड़ की कार्रवाई को बुधवार को उचित करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर राज्य सरकार ने दावा किया कि याचिका में लगाए आरोप एकतरफा मीडिया रिपोर्टिंग पर आधारित हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर इस याचिका में लगाए गए आरोप पूरी तरह से झूठे और भ्रामक हैं।
हलफनामे में कहा गया कि वास्तव में, किसी भी वास्तविक प्रभावित पक्ष ने कानूनी तोड़फोड़ की कार्रवाई के संबंध में इस शीर्ष अदालत में गुहार नहीं लगाई है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना पक्ष शीर्ष अदालत के समक्ष कहा है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद के आरोप अनुचित हैं। सरकार ने विभिन्न तर्कों के माध्यम से अपने जवाब में कहा है कि हाल ही में कुछ लोगों के घरों को तोड़े जाने के खिलाफ दायर एक याचिका में स्थानीय विकास प्राधिकरणों द्वारा की गई कानूनी कार्रवाई को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को दुर्भावनापूर्ण रंग देने का प्रयास किया गया है।
राज्य सरकार ने जावेद मोहम्मद के कब्जे वाले भवन को गिराने के बारे में कहा कि स्थानीय निवासियों की ओर से अवैध निर्माण और वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के कार्यालय के लिए उसी भवन को व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल करने की शिकायतें मिली थीं।
सरकार ने कहा कि यह निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन के दायरे में था, यहां आने वाले लोग अपनी गाड़ियां सड़क पर खड़ी करते थे। इस वजह से राहगीरों को आने-जाने में समस्या हो रही थी। इन शिकायतों के मद्देनजर तोड़फोड़ से पूर्व 12 जून को नोटिस जारी की गई थी।
हलफनामे में तर्क दिया गया है कि स्थानीय विकास प्राधिकरणों द्वारा अवैध निर्माण तोड़े गए हैं। यह प्राधिकरण राज्य प्रशासन से स्वतंत्र वैधानिक स्वायत्त निकाय हैं।
सरकार ने कहा, 'याचिकाकर्ता, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलफनामों में उठाए गए तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने में विफल रहा है। उसने केवल कुछ मीडिया रिपोर्टिंग के आधार पर याचिका दायर कर दी।'
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि जहां तक दंगों के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का संबंध है, वह पूरी तरह से अलग कानूनों के अनुसार सख्त कदम उठा रही है यानी संदिग्धों के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) यूपी गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986; और (iv) उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली अधिनियम, 2020 और नियम 2021 के तहत कार्रवाई कर रही है।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 16 जून को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि भवनों में तोड़फोड़ की कार्रवाई कानून के अनुसार होना चाहिए, न कि जवाबी कार्रवाई के तौर पर।