Significance of Sharif Munirs meeting with Trump: तस्वीरें अक्सर क्षणिक लगती हैं, लेकिन इतिहास में कई बार इन्होंने नए अध्याय लिखे हैं। 1972 की निक्सन-झोउ एनलाइ मुलाक़ात ने दुनिया की कूटनीति बदल दी थी। वॉशिंगटन की ओवल ऑफिस से निकली एक तस्वीर ने भारत के कूटनीतिक गलियारों में गंभीर चिंता पैदा कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर की मुस्कुराती हुई तिकड़ी—यह न सिर्फ दो पुराने सहयोगियों का पुनर्मिलन है, बल्कि वैश्विक शक्तियों के पुनर्संरेखण (Realignment) का स्पष्ट संकेत भी।
25 सितंबर 2025 को हुई इस बैठक में ट्रंप ने दोनों नेताओं को 'महान लोग' (great guys) कहकर सराहा, जो वर्षों के अविश्वास के बाद अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में एक नया मोड़ ले आया है।
लेकिन, भारत के लिए यह तस्वीर सिर्फ एक फोटोशूट नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है। 25 सितंबर 2025 की यह ट्रंप-शरीफ-मुनीर की तस्वीर भी शायद वैसा ही मोड़ है। सवाल सिर्फ़ इतना है—क्या भारत इसे समय रहते समझ पाएगा या फिर यह तस्वीर नई दिल्ली की कूटनीतिक उदासीनता का प्रतीक बन जाएगी?
क्यों? क्योंकि यह अमेरिकी विदेश नीति के बदलते समीकरणों को उजागर करती है— जहां पाकिस्तान को रणनीतिक महत्व मिल रहा है, वहीं भारत-अमेरिका रिश्तों में व्यापारिक तनाव और कूटनीतिक खटास तेज़ी से बढ़ रही है। यह कहानी सिर्फ घटना की सतह पर नहीं रुकती, यह भू-राजनीतिक गहराइयों में उतरती है: क्या यह बैठक अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान की वापसी का प्रतीक है? या ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का नया, व्यापार-केंद्रित चेहरा?
एक नया अध्याय या पुरानी पटकथा : ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू होते ही दक्षिण एशिया में हवा का रुख बदल गया। 2019 में ट्रंप ने पाकिस्तान को 'झूठ और धोखे' का दोस्त कहा था, लेकिन 2025 में सीन बदल चुका है। 25 सितंबर को व्हाइट हाउस में हुई 20 मिनट की बंद कमरे वाली बैठक में शरीफ और मुनीर को ट्रंप, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्वागत किया। बैठक के दौरान शरीफ ने अमेरिकी कंपनियों को पाकिस्तान के आईटी, कृषि, खनिज और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश के लिए आमंत्रित किया। ट्रंप ने पाकिस्तान को "फेनोमेनल" काउंटर-टेररिज्म पार्टनर बताया और दोनों पक्षों ने जुलाई 2025 के तेल व्यापार सौदे का जिक्र किया—जिसमें ट्रंप ने पाकिस्तान के 'मैसिव' तेल भंडारों की खोज का दावा किया।
लेकिन विशेषज्ञ हैरान हैं। गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, यह तेल सौदा 'विशेषज्ञों और पूर्व मंत्रियों को चकित' कर गया, क्योंकि पाकिस्तान में कोई अप्रयुक्त भंडारों का संकेत नहीं है। यह ट्रंप की अतिशयोक्ति की पुरानी आदत है, लेकिन कंगाली की राह पर खड़े पाकिस्तान के लिए यह आर्थिक जीवनरेखा का वादा है। बैठक से पहले शरीफ और मुनीर को 30 मिनट इंतजार कराना पड़ा, जो ट्रंप की शैली का हिस्सा था, लेकिन बाद में गर्मजोशी भरी तस्वीरें सामने आईं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे 'ट्रंप के पहले कार्यकाल के बाद पाकिस्तान की वापसी' बताया, जहां भारत-पाक संघर्ष के बाद जून 2025 में मुनीर का व्हाइट हाउस दौरा हुआ था।
पाकिस्तान की ओर से यह निश्चित बड़ी कूटनीतिक सफलता है। शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में ट्रंप की तारीफ की और भारत के साथ हुए संघर्ष में ट्रंप की भूमिका को सराहते हुए उनकी शान में कसीदे पढ़े। सोशल मीडिया पर यूजर इसे 'पाकिस्तान की सफल वॉशिंगटन चार्म ऑफेंसिव' बता रहे हैं, जबकि कई लोगों ने मजाक उड़ाया कि 'ट्रंप का वॉलेट बैठक के बाद गायब हो गया'।
अमेरिकी हित : बगराम से गाजा तक की रणनीति
ट्रंप की विदेश नीति 'अमेरिका फर्स्ट' पर टिकी है—शांति काल का राष्ट्रपति बनना, पश्चिमी गोलार्ध की सुरक्षा और टैरिफ युद्ध। इस बैठक में पाकिस्तान इनमें से कई मोर्चों पर फिट बैठता है। सबसे बड़ा मुद्दा: अफगानिस्तान में बगराम हवाई अड्डे तक पहुंच। 2021 के अमेरिकी सैनिकों के निकासी के बाद यह अड्डा खाली पड़ा है, जो चीन की परमाणु संपत्तियों के निकट होने से रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। तालिबान के इनकार के बाद पाकिस्तान अमेरिका का प्रमुख भागीदार बन गया।
रॉयटर्स के अनुसार, बैठक में काउंटर-टेररिज्म सहयोग पर चर्चा हुई, जिसमें पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति फिर शुरू हो गई। इसके अलावा, ट्रंप का 21-सूत्री गाजा प्लान पाकिस्तान के लिए नया अवसर है। प्राविन सावने जैसे विश्लेषकों का कहना है कि बैठक का फोकस गाजा पर था, ट्रंप जल्द ही नेतन्याहू से चर्चा करेंगे। पाकिस्तान का रोल मुस्लिम दुनिया में ब्रिज बनाने का हो सकता है। वाशिंगटन पोस्ट के माइकल कुगेलमैन कहते हैं, 'पाकिस्तान अपनी भू-राजनीतिक अहमियत का फायदा उठा रहा है—अमेरिका-भारत संबंधों की गिरावट और अमेरिका-पाक सुधार से।'
लेकिन क्या यह स्थायी है? न्यूयॉर्क टाइम्स चेताता है कि ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम कितने समय टिकेगा? जून 2025 के मुनीर दौरे के बाद यह दूसरा दौरा है, जो पाकिस्तानी सेना के विदेश नीति पर प्रभुत्व को दर्शाता है। एपी न्यूज ने इसे 'भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच अमेरिकी रणनीतिक पुनर्विचार' कहा।
यह स्थिति नई नहीं। 1971 में अमेरिका-पाक गठजोड़ ने भारत पर दबाव बनाया था और भारत ने जवाब में सोवियत कार्ड खेला। आज भी तस्वीर मिलती-जुलती है—अमेरिका पाकिस्तान को गले लगा रहा है और भारत को टैरिफ बम से दबा रहा है। लेकिन फर्क यह है कि इस बार वैश्विक परिदृश्य और जटिल है—रूस-यूक्रेन युद्ध, गाज़ा संकट और चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता के बीच दक्षिण एशिया एक बार फिर “हॉटस्पॉट” बन रहा है।
भारत के लिए खतरे : टैरिफ से H-1B वीजा और कूटनीतिक अलगाव
मोदी सरकार के लिए यह तस्वीर सबसे ज्यादा चुभने वाली है। यह स्पष्ट है कि भारत के लिए यह एक बहुआयामी चुनौती है—जहां एक तरफ सामरिक सहयोगी (पाकिस्तान) को महत्व मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत को व्यापारिक मोर्चे पर लगातार 'टैरिफ बम' का सामना करना पड़ रहा है। ट्रंप प्रशासन ने भारतीय आयातों पर 50% से 100% टैरिफ लगाया, जबकि पाकिस्तान को 25% से घटाकर 19% किया। एच-1बी वीजा पर भारी शुल्क ने भारतीय आईटी क्षेत्र को झटका दिया। इसके उलट, पाकिस्तान को विश्व बैंक से 40 अरब डॉलर का ऋण मिला और अमेरिका के साथ व्यापार पैकेज पर बात चल रही है।
यह अमेरिका-भारत संबंधों में दरार है। मॉडर्न डिप्लोमेसी ने लिखा कि पाकिस्तान के वाशिंगटन से करीबी संबंध भारत की अमेरिकी नीति में एकाधिकार को चुनौती देते हैं। द डिप्लोमैट ने मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका अब भारत-पाकिस्तान गतिशीलता पर पुनर्विचार कर रहा है, जो परमाणु जोखिम को बढ़ा सकता है। सिविल लेंस ने इसे दक्षिण एशिया में रणनीतिक पुनर्संरेखण बताया, जहां क्षेत्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की सेना भारत को आतंकी हिंसा का प्रेरक बताने के अभियान के साथ यह बदलाव आया है। आईएससआई ने मई संघर्ष के बाद पाकिस्तान में सेना के जन समर्थन बढ़ने का जिक्र किया। लोवी इंस्टीट्यूट चेताता है कि तनावपूर्ण अमेरिका-भारत रिश्ते न सिर्फ आर्थिक, बल्कि क्षेत्रीय संघर्षों के भविष्य के लिए खतरा हैं। ले मोंडे ने ट्रंप की रूस नीति, व्यापार टकराव और पाकिस्तान तेल विवाद को भारत-अमेरिका गठबंधन कमजोर करने वाले तीन मुद्दों के रूप में चिह्नित किया।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बयान— 'पाकिस्तान का रणनीतिक भविष्य चीन के साथ है, अमेरिका के साथ नहीं'— बैठक के एक दिन बाद आया, जो पाकिस्तान की दोहरी खेल की रणनीति दर्शाता है। एक्स पर एक पोस्ट ने इसे 'ट्रंप के साथ सोना और चीन के साथ भविष्य बनाना' कहा।
पाकिस्तान के लिए आर्थिक और सैन्य लाभ : शरीफ के लिए यह निमंत्रण आर्थिक था। जुलाई 2025 के व्यापार समझौते ने पाकिस्तानी निर्यातों को बढ़ावा दिया। बैठक में 'संयुक्त काउंटर-टेररिज्म कमांड' स्थापित करने का फैसला हुआ। आईएसएस के अनुसार, यह पाकिस्तान को सैन्य सहायता बहाल करने का रास्ता खोलेगा। लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता को नजरअंदाज करता है। मई 2025 के संघर्ष के वैश्विक आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण किया जाए तो पाकिस्तान को अमेरिकी समर्थन से लाभ हुआ है। उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने शरीफ और मुनीर को 30 मिनट इंतजार कराया, लेकिन बैठक भारत के साथ व्यापार वार्ताओं के बीच हुई।
भारत के जागने का समय : यह तस्वीर मोदी सरकार के लिए इसलिए चिंता का सबब है क्योंकि यह दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्राथमिकताओं के पुनर्संरेखण को इंगित करती है। भारत को कूटनीति पुनर्जीवित करनी होगी—चीन के साथ संतुलन, क्षेत्रीय गठबंधनों को मजबूत करना। सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते जैसे कदम भारत को अलग-थलग करने का प्रयास हैं। आईएसपीआई के अनुसार, यह भारत को इस्लामाबाद को कूटनीतिक रूप से अलग करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
फार्मा पर 100% का 'टैरिफ बम':
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में सबसे बड़ा झटका देते हुए ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मास्युटिकल उत्पादों के आयात पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा। यह टैरिफ उन कंपनियों पर लागू नहीं होगा जो अमेरिका में ही अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगा रही हैं।
वीज़ा और आईटी क्षेत्र : एच-1बी वीज़ा पर भारी शुल्क ने भारतीय आईटी क्षेत्र को बड़ा झटका दिया।
पाकिस्तान को लाभ : इसके विपरीत, पाकिस्तान को विश्व बैंक से 40 अरब डॉलर का ऋण मिला है और अमेरिका के साथ एक बड़े व्यापार पैकेज पर बातचीत जारी है।
रणनीतिक पुनर्विचार : द डिप्लोमैट ने मई 2025 के भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका अब भारत-पाकिस्तान गतिशीलता पर पुनर्विचार (strategic reconsideration) कर रहा है, जो क्षेत्र में परमाणु जोखिम को बढ़ा सकता है।
मॉडर्न डिप्लोमेसी ने स्पष्ट लिखा है कि पाकिस्तान का वॉशिंगटन से बढ़ता करीबी संबंध भारत की अमेरिकी नीति में एकाधिकार को चुनौती देता है। एक दिन बाद ही, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बयान आया कि 'पाकिस्तान का रणनीतिक भविष्य चीन के साथ है, अमेरिका के साथ नहीं।' यह बयान पाकिस्तान की दोहरी खेल की रणनीति (double-game strategy) को उजागर करता है—एक तरफ ट्रंप से आर्थिक और सैन्य लाभ लेना, दूसरी तरफ चीन के साथ दीर्घकालिक साझेदारी बनाए रखना।
पश्चिमी मीडिया की कवरेज—रॉयटर्स से गार्जियन तक—स्पष्ट करती है कि यह सिर्फ एक बैठक नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के भविष्य का संकेत है। भारत को अब सक्रिय रणनीति अपनानी होगी, वरना यह तस्वीर एक कड़वा अध्याय बन जाएगी।