देहरादून। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पावो ब्लॉक के अंतर्गत निशणी गांव में तेंदुआ ने 5 वर्षीय मासूम पीयूष को मंगलवार की शाम 6 बजे खेलकर घर की ओर आते वक्त घात लगाकर किए हमले में मार डाला। बच्चे की चीखें सुनकर आसपास के लोगों ने हल्ला किया तो तेंदुआ मासूम को छोड़कर भाग गया। इस हमले के बाद मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकना कठिन चुनौती बनता जा रहा है।
लोगों ने पावो चौकी में फोन किया। मौके पर पहुंची पुलिस ने बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के लिए पौडी भेजा। बच्चे के गाल पर तेंदुआ के नाखूनों के गहरे घाव थे जिससे उसकी मौत हो गई। पीयूष के पिता दिल्ली में जॉब करते हैं।
उत्तराखंड वन विभाग के लिए मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना एक कठिन चुनौती बनता जा रहा है। कहीं बाघ यानी तेंदुए के हमलों से लोग परेशान हैं तो कहीं हाथियों के हमले लोगों के लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं। कई क्षेत्रों में तो भालू के भी हिंसक होने से लोगों का जीवन कठिन हो रहा है। एक तरह से पूरा राज्य जंगली जानवरों के हमले से प्रभावित है।
तेंदुआ यानी तेंदुए जहां प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बच्चों को शिकार बनाते हैं तो मवेशी पर तो हर वक्त वे घात लगाए छिपे रहते हैं। हालत यहां तक पहुंच चुकी है कि पिछले दिनों पिथौरागढ़ से 10 किमी दूर चचरेत गांव में तेंदुआ मां की पीठ पर चढ़ी 4 साल की बच्ची को घर के दरवाजे से उठाकर ले गया। घर से करीब 150 मीटर दूर बच्ची का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ। यह घटना 17 सितंबर, शनिवार देर शाम 7.15 से 7.30 बजे के बीच की है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष उत्तराखंड से पलायन की एक मुख्य वजह बन गया है लेकिन सरकारें गाल बजाने की सिवा कुछ भी करने में अभी कामयाब होती नहीं दिख रहीं। नरभक्षी बाघ और हिंसक जानवरों ने पहाड़ों में जीवन को दुश्वार बना दिया है। पहाड़ से लेकर मैदान तक राज्य का शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा, जहां जंगली जानवरों के खौफ ने नींद न उड़ाई हो।
वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद से 2019 तक के अंतराल में तेंदुआ, हाथी, भालू व बाघ जैसे जानवरों के हमलों में 730 लोगों की जानें जा चुकी थीं। इस अवधि में 3,905 लोग वन्यजीवों के हमले में जख्मी हुए हैं।
लगभग 71 फीसदी वन भू-भाग वाले उत्तराखंड में मनुष्य और वन्यजीव दोनों ही सुरक्षित रहकर 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत पर चलते हुए सह-अस्तित्व की भावना को अपनाकर एक-दूसरे के लिए खतरा न बनें, ऐसे उपायों की दरकार राज्य को रही है। जंगली जानवर जंगल की देहरी पार न करें, इसके लिए जंगलों में बेहतर वास स्थल विकास पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है, क्योंकि वन्यजीव होंगे तो जंगल सुरक्षित रहेंगे। जंगल महफूज होंगे तो हवा-पानी भी दुरुस्त रहेगा।
सरकारी आंकड़े के अनुसार प्रदेश में कुल 2,334 तेंदुआ हैं। दिन छिपते ही ये राज्य के गांवों, कस्बों व जंगल के किनारे यानी आबादियों में सक्रिय हो जाते हैं। एक तरफ जहां वन्यजीवों की संख्या लगातार बढ़ रही है, उनके वास स्थल कम हो रहे हैं जिससे उनका मूवमेंट आबादी की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को आपदा में शामिल करने की मांग भी उठती रही है।
वन महकमे के अधिकारी लंबे समय से मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए चरणबद्ध तरीके से कार्य योजना तैयार करने के दावे करते रहे हैं लेकिन इन योजनाओं का धरातल पर उतरना आज भी प्रतीक्षित ही है। वन अधिकारी वन्यजीवों के प्रति रिएक्टिव होने की जगह लोगों को प्रो-एक्टिव रहने की सलाह देते रहते हैं।