वर्ष 2010 में हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में जाट समुदाय से संबद्ध दबंगों ने एक बुजुर्ग दलित एवं उनकी दिव्यांग बेटी के घर में आग लगा दी थी। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर एवं न्यायमूर्ति आईएस मेहता की पीठ ने कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी अनुसूचित जाति समुदाय पर अत्याचार में कमी के कोई संकेत नहीं दिखते हैं।
अदालत ने हरियाणा सरकार को दलित समुदाय से संबद्ध उन परिवारों के पुनर्वास का निर्देश दिया, जो वर्ष 2010 की इस घटना के बाद विस्थापित हो गए थे। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत से इन 15 व्यक्तियों की दोषसिद्धि तथा सजा को चुनौती देने वाली उनकी अपील पर यह फैसला सुनाया।
पीड़ितों एवं पुलिस ने भी उच्च न्यायालय में दोषियों की सजा बढ़ाने की मांग की थी एवं अन्य को बरी किएजाने को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने 24 सितंबर, 2011 को जाट समुदाय से संबद्ध 97 व्यक्तियों में से 15 को दोषी ठहराया था। गांव के जाट एवं दलित समुदाय के बीच विवाद के बाद 21 अप्रैल, 2010 को ताराचंद के घर को आग लगा दी गई थी।
घटना में पिता-पुत्री की जलकर मौत हो गई थी। निचली अदालत ने 31 अक्टूबर, 2011 को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत गैरइरादतन हत्या के अपराध के लिए कुलविंदर, धरमबीर और रामफल को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
इसके अलावा पांच अन्य बलजीत, करमवीर, करमपाल, धरमबीर और बोबल को दंगा फैलाने, जानबूझकर नुकसान पहुंचाने, हानि पहुंचाने और पीड़ितों के घर को आग के हवाले करने तथा अजा/अजजा (अत्याचार रोकथाम) कानून के प्रावधानों समेत उनके अपराधों के लिए पांच साल जेल की सजा सुनाई गई थी।