बेकल उत्साही ने उर्दू तथा हिन्दी भाषा को पूरा सम्मान दिया। स्थानीय भाषा के मिश्रण से उन्होंने गज़ल एवं शेरो शायरी में कई प्रयोग किए जो श्रोताओं ने खूब पसंद किया। गंगा जमुनी संस्कृति के समर्थक को साहित्यिक सेवाओं में विशेष योगदान के लिए 1976 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।