मंत्रों का मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? : गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

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मुल्ला नसीरुद्दीन सुबह से शाम तक लगातार बड़बड़ाता रहता था। यदि उसे कॉफी दी जाती थी तो वह कहता था कि मेरी पत्नी ने मुझे बहुत सारी कॉफी देदी। और यदि उसे कॉफी नहीं मिलती थी, तो वह कहता था कि मेरी पत्नी मुझे बिल्कुल कॉफी नहीं देती है। यदि कॉफी में बहुत अधिक चीनी होती थी, तब वह शिकायत करता था और जब कॉफी में चीनी कम होती थी, तब भी शिकायत करता था।

यदि शिकायत करने के लिए कुछ भी नहीं होता था, तो वह कहता था कि इस बार बारिश अच्छी नहीं हुई है। इस बार फसल अच्छी नहीं हुई है। और जब बारिश अच्छी होती थी और फसल भी अच्छी होती थी, तो वह कहता था कि मेरे पास बहुत सारा काम आ गया है। अब मुझे फसल काटने के लिए जाना पड़ेगा।
 
जैसा कि हम मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानी में देख सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति हर समय संतोष का अनुभव नहीं करता है। मन को शांत रखना एक आदत है। मन स्वभाव वश जीवन में अच्छी चीजों को भूल जाता है और बुरी चीजों में अटका रहता है।
 
अच्छे और बुरे अनुभव हमारे जीवन का एक स्वाभाविक अंश हैं और यह अनुभव होते रहेंगे, चाहे हमें ये पसंद हों या नहीं। इन अनुभवों के साथ तनाव, चिंता, भय और दुख भरी भावनाएं आती हैं, जो हमारे मन में बैठ जाती हैं और हमारे दिन, सप्ताह और जीवन कैसे बीतेगा, इसका निर्धारण करती हैं।
हममें से अधिकतर लोग मन में किसी अपमान की घटना को पकड़ लेते हैं और सुबह से लेकर शाम तक उसके बारे में सोचते रहते हैं। यदि मन किसी बात को लेकर दुख का अनुभव करता है, तब हमारा ध्यान उसी दुख पर अटका रहता है। कई बार आप अपने मन से कहते हैं कि ओह, यह सब छोड़ दो, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन, इसके बावजूद मन वही करता है, जो उसे अच्छा लगता है। कई बार तो इस पर हमारा ध्यान भी नहीं जाता है कि ऐसा हो रहा है।
 
जब बहुत प्रबल भावनाएं जाग रही हों तब क्या करना चाहिए? जब हमारा मन क्रोध को जन्म देने वाले विचारों या कठिन भावनाओं से भर जाए, तब क्या करना चाहिए? शांति एवं अंतर्दृष्टि पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
 
मन को शांत करने का एक तरीका मंत्र है। मंत्र वह है, जो हमारे मन को जीत ले। मंत्र सार्वभौमिक हैं और शताब्दियों से लोग इनका उच्चारण करते आ रहे हैं। बीज मंत्र 'ओम' सभी भारतीय धर्मों में एक समान ही है। चाहे वह जैन, बुद्ध, पारसी या सिख धर्म हो । 'ओम नमः: शिवाय' को महामंत्र कहा जाता है क्योंकि इनमें पांचों तत्व समाहित हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। ओम में सब कुछ है। 'न' धरती तत्व है, 'म' जल तत्व है, 'शि' अग्नि तत्व है, 'वा' वायुतत्व है और 'य' आकाश तत्व है।  इन पांचों तत्वों के स्वामी 'ओम नम: शिवाय' हैं।
 
हालांकि, कभी-कभी ऐसा होता है कि ध्यान और मंत्रोच्चारण के बावजूद मन इधर-उधर भागता रहता है। जब आप प्रतिदिन स्वयं के साथ बैठने की आदत बना लेते हैं, तब मंत्र से आपकी मानसिक शक्ति, आपकी ऊर्जा में वृद्धि होती है और एक संस्कार बन जाता है। आपको मन को इस प्रकार से लयबद्ध करना है। बार-बार अनावश्यक चीजों पर ध्यान देना मन का स्वभाव है। जब भी हम चिंता करते हैं, तो इसमें शरीर की बहुत सारी ऊर्जा निकल जाती है।
 
ऊर्जा को समाप्त करने के लिए हम दो प्रकार के गलत मंत्रों का प्रयोग कर रहे हैं। पहले प्रकार के मंत्र को 'आर्द्रा' के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है, दुख को बार-बार लेकर आना। और दूसरे प्रकार का मंत्र 'रौद्र', क्रोध को उत्पन्न करता है। 
 
परिणाम स्वरूप, शरीर में बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। मन को 'आर्द्रा' और 'रौद्र' से छुटकारा दिलाने के लिए, अपने आध्यात्मि क अभ्यास, मंत्रोच्चारण और ध्यान करते रहना चाहिए । महर्षि पतंजलि ने 'योग सूत्र' में बताया है व्याधि , स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य, अविरति , भ्रान्तिदर्शन, अलब्धभूमि कत्य और अनवस्थितत्व आदि अवरोधों से उबरने के लिए एक तत्व अभ्यास करना चाहिए। किसी भी एक मंत्र का उच्चारण करें, एक ही ध्वनि , एक ही शब्द अंश का अभ्यास लंबे समय तक करें।
 
जब मन में विचार और मंत्र एक साथ चल रहे हों तब आपका मन और चेतना, मंत्र से भर जाती है। तब मन चिंताओं से मुक्त हो जाता है क्योंकि मंत्रों में शक्ति और विशषे तरंग होती है। जब मंत्र का उच्चारण किया जाता है तब यह चेतना को ऊर्जा से भर देता है। जब चेतना में यह ऊर्जा बढ़ जाती है, तब हम आत्मा में वापस आ जाते हैं और हमारा घर, मन, शरीर, वातावरण इस ऊर्जा और सकारात्मकता से भर जाता है।
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