21 Gun Salute : भारत के राष्ट्रीय उत्सवों में गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है। 26 जनवरी न केवल हमारे संविधान के लागू होने की याद दिलाती है, बल्कि यह भारतीय गणराज्य के गौरव और उसकी परंपराओं का उत्सव भी है। इस दिन कई रस्में और परंपराएं निभाई जाती हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और गौरवशाली परंपरा है 21 तोपों की सलामी। यह सलामी भारतीय गणराज्य के शौर्य, संविधान और स्वतंत्रता का प्रतीक है। लेकिन यह परंपरा क्यों निभाई जाती है और इसे कैसे अंजाम दिया जाता है? आइए, इस ऐतिहासिक और गौरवशाली परंपरा का विस्तार से जानें -
क्यों है ऐतिहासिक महत्व : 21 तोपों की सलामी का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। यह परंपरा मूल रूप से ब्रिटिश काल की है, जब तोपों का उपयोग युद्धों में न केवल शस्त्र के रूप में, बल्कि सम्मान और शक्ति के प्रतीक के रूप में भी किया जाता था। युद्ध के समय, दुश्मन के सामने हथियार डालने या आत्मसमर्पण का संकेत तोपों की सलामी हुआ करती थी। समय के साथ, इस परंपरा को सम्मान और विजय के प्रतीक के रूप में अपना लिया गया। भारत में, इस प्रथा को राष्ट्रीय पर्वों पर गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के दौरान निभाया जाता है।
भारत के संविधान के लागू होने के बाद, 26 जनवरी 1950 को जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने तो उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। तब पहली बार 21 तोपों की सलामी दी गई। इसके बाद से यह अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया और 1971 के बाद से 21 तोपों की सलामी राष्ट्रपति, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों व गणमान्य व्यक्तियों को दी जाने लगी।
कैसे दी जाती है सलामी : 21 तोपों की सलामी भारत के लोकतांत्रिक गणराज्य बनने की याद दिलाती है। यह न केवल भारत की संवैधानिक उपलब्धियों का प्रतीक है, बल्कि यह राष्ट्रीय गर्व, सशस्त्र बलों की ताकत और हमारे देश की एकता का भी परिचय देती है।
राष्ट्रगान की ताल पर होती है फायरिंग : हर तोप से फायरिंग की टाइमिंग भी बेहद खास होती है। प्रत्येक तोप हर 2.25 सेकंड के अंतराल पर गोला दागती है। इसकी वजह यह है कि भारत का राष्ट्रगान 52 सेकंड लंबा होता है। इस समन्वय के साथ, 21 तोपों की सलामी राष्ट्रगान खत्म होने तक पूरी हो जाती है। यह सटीक तालमेल भारत की सैन्य परंपरा और अनुशासन को दर्शाता है।
मेरठ के जवान देते हैं 21 तोपों की सलामी : 21 तोपों की सलामी को सर्वोच्च सैन्य सम्मान माना जाता है। जब किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत करना हो या गणमान्य व्यक्तियों को सम्मान देना हो, तो यह सलामी दी जाती है। इसे भारतीय सेना की 1721 फील्ड बैटरी अंजाम देती है, जिसका मुख्यालय मेरठ में स्थित है। इस विशेष दस्ते में करीब 122 जवान शामिल होते हैं, जो पूरी अनुशासन और गर्व के साथ यह सलामी देते हैं।
8 तोपों से पूरी होती है 21 तोपों की सलामी : स्वतंत्र भारत में 21 तोपों की सलामी की परंपरा गणतंत्र दिवस के पहले समारोह से शुरू हुई। हालांकि, इस सलामी में 21 अलग-अलग तोपों का उपयोग नहीं होता। इसके लिए कुल 7 तोपों का इस्तेमाल किया जाता है, और हर तोप से 3 राउंड फायर किए जाते हैं। इस तरह कुल 21 राउंड दागकर सलामी पूरी की जाती है।
परेड की तैयारी : गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा और प्रक्रिया में कोई रुकावट न हो, इसलिए एक अतिरिक्त तोप भी लाई जाती है। यह सुनिश्चित करता है कि अगर किसी तोप में तकनीकी समस्या आ जाए, तो उसका विकल्प तुरंत उपलब्ध हो।
सेरेमोनियल कार्ट्रिज : सलामी में उपयोग किए जाने वाले गोले विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं, जिन्हें सेरेमोनियल कार्ट्रिज कहा जाता है। ये गोले अंदर से पूरी तरह खोखले होते हैं। फायरिंग के दौरान इनसे केवल तेज आवाज और धुआं निकलता है, लेकिन कोई विस्फोट नहीं होता। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है और केवल रस्म अदायगी के लिए की जाती है।
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