पितृविसर्जनी अमावस्या परम फलदायी

- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोशी
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'आयुः पुत्रान्‌ यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं यिम्‌।
पशून्‌ सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात्‌ पितृपूजनात्‌।'

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितृ को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख साधन तथा धन धान्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं पितृ की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के पितृपक्ष में पितृ को आशा लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे।

यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। अतएव प्रत्येक हिंदू सद्गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पितृ के लिए श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करें तथा अपने अनुसार फल मूल जो भी संभव हो, पितृ के निमित्त प्रदान करें। पितृपक्ष पितृ के लिए पर्व का समय है। अतः इस पक्ष में श्राद्ध किया जाता है जिसकी पूर्ति अमावस्या को विसर्जन तर्पण से होती है।

इन दिनों पितृ पक्ष चल रहा है। लोग अपने पितरों की संतुष्टि के लिए संयमपूर्वक विधि-विधान से पितृ यज्ञ कर रहे हैं। महानगरों की आपाधापी एवं कार्य की व्यस्थता के कारण यदि कोई श्राद्ध करने से वंचित रह जाता है तो उसे पितृ विसर्जनी अमावस्या को प्रातः स्नान के गायत्री मंत्र जपते हुए सूर्य को जल चढ़ाने के बाद घर में बने भोजन में से पंचबलि जिसमें सर्वप्रथम गाय के लिए, फिर कुत्ते के लिए, फिर कौए के लिए, फिर देवादि बलि एवं उसके बाद चीटियों के लिए भोजन का अंश देकर श्रद्धापूर्वक पितरों से सभी प्रकार का मंगल होने की प्रार्थना कर भोजन कर लेने से श्राद्ध कर्मों की पूर्ति का फल मिलता है।

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यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितृ की पुण्यतिथि है। तथापि आश्विन की अमावस्या पितृ के लिए परम फलदायी है। इसी प्रकार पितृपक्ष की नवमी को माता के श्राद्ध के लिए पुण्यदायी माना गया है। श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र स्थान गया तीर्थ है। जिस प्रकार पितृ के मुक्ति के लिए गया को परम पुण्यदायी माना गया है, उसी प्रकार माता के लिए काठियावाड़ का सिद्धपुर स्थान परम फलदायी माना गया है। इस पुण्यक्षेत्र में माता का श्राद्ध कर पुत्र अपने मातृ ऋण से सदा सर्वदा के लिए मुक्त हो जाता है। यह स्थान मातृगया के नाम से भी प्रसिद्ध है।

आश्विन कृष्ण अमावस्या को पितृविजर्सनी अमावस्या अथवा महालया कहते हैं। जो व्यक्ति पितृपक्ष के पंद्रह दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं कहते हैं वे अमावस्या को ही अपने पितृ के निमित्त श्राद्धादि संपन्न करते हैं। जिन पितृ की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त श्राद्ध तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है।

अमावस्या के दिन सभी पितृ का विसर्जन होता है। अमावस्या के दिन पितृ अपने पुत्रादि के द्वार पर पिण्डदान एवं श्राद्धादि की आशा में जाते हैं। यदि वहां उन्हें पिण्डदान या तिलाज्जलि आदि नहीं मिलती है तो वे शाप देकर चले जाते हैं। अतः श्राद्ध का परित्याग नहीं करना चाहिए।

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