शास्त्र का वचन है- 'श्रद्धया इदं श्राद्धम' अर्थात् श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के निमित्त किया गया कर्म ही श्राद्ध है। प्रतिवर्ष श्राद्ध पक्ष (महालय) भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहता है।
इस अवधि में सनातनधर्मी अपने पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म करते हैं। श्राद्ध के लिए गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार व ब्रह्मकपाली (बद्रीनाथ) आदि तीर्थों का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त किसी पवित्र नदी के तट पर भी श्राद्ध करने का विधान शास्त्रों में निर्देशित है। श्राद्ध कर्म करने के लिए महालय अर्थात श्राद्ध पक्ष ही सर्वोत्तम है किंतु यदि श्राद्ध पक्ष में 'गजच्छाया-योग' मिल जाए तो यह अत्यंत ही उत्तम व सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त बन जाता है।
श्राद्ध पक्ष के अतिरिक्त भी यदि 'गजच्छाया योग' मिले तो उसमें श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। 'गजच्छाया योग' अत्यंत दुर्लभ होता है व कई वर्षों के उपरांत बनता है। इस योग में श्राद्ध करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों को सद्गति मिलती है।
कब बनता है 'गजच्छाया योग'- जिस दिन त्रयोदशी तिथि को मघा नक्षत्र हो एवं सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो उस दिन 'गजच्छाया-योग' का निर्माण होता है। 'गजच्छाया योग' में श्राद्ध करने से अनंत पुण्य मिलता है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष में यह योग नहीं बन रहा है।