Shri Krishna 11 Sept Episode 132 : नकली कृष्ण के राज्य में हनुमानजी की माया

अनिरुद्ध जोशी

शुक्रवार, 11 सितम्बर 2020 (22:30 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 11 सितंबर के 132वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 132 ) में फिर पौंड्रक राज्य के वासुदेव को बताया जाता है तो ‍खुद को भगवान मानता है और राज्य के लोगों को भी यह मानने के लिए बाध्य करता है। जो उसे भगवान मानता है उसे वह इनाम देता और जो नहीं मानता है उसे वह सजा देता है। काशीराज अर्थात काशी के राजा भी उसे भगवान मानकर उसकी हां में हां मिलते हुए बताए जाते हैं।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
फिर सेनापति दूर्धर एक साधु को पकड़कर लाया जाता है जिसका अपराध यह रहता है कि वह उसे भगवान नहीं बल्कि द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण को भगवान मानता है। उसे क्षमा मांगने के लिए कहा जाता है परंतु वह ऐसा नहीं करता है तो काशीराज कहता है कि इस पापी को अवश्य दंड मिलना चाहिए। इसकी गर्दन ही काट देना चाहिए। तब नकली वासुदेव अपने चक्र से उसका सिर काट देता है। वह कटा हुआ सिर भूमि से उठकर हवा में स्थिर हो कर कहता है- तुम पापी हो पौंड्रक, तुम पापी हो। तुम्हारे पापों का गढ़ा भर चुका है अब तुम्हारा अंत होगा। अब तुम्हारा अंत अवश्य होगा पौंड्रक अवश्य। यह कहकर वह कटी मुंडी पुन: भूमि पर गिर पड़ती है।.. फिर सभी महाराज पौंड्रक की जय, वासुदेव पौंड्रक की जय के नारे लगाते हैं।
 
बाद में उसकी पत्नी कहती है- स्वामी आपने ये अच्छा नहीं किया। एक साधु की हत्या कर दी। ये पाप है, भयंकर पाप। यह सुनकर वासुदेव हंसते हुए कहता है- पाप! महारानी तारा तुम सचमुच बड़ी भोली हो। अरे इतना भी नहीं जानती कि पाप मनुष्‍य करता है भगवान नहीं। हम भगवान है जो चाहे वह कर सकते हैं...सब पुण्य है हां। तब उसकी पत्नी तारा कहती है कि आप मेरे भगवान हैं तो केवल मेरे लिए संसार के लिए तो आप केवल एक राजा हैं। यह सुनकर पौंड्रक कहता है- नहीं तारा नहीं हम वासुदेव हैं। जानती हो वासुदेव किसे कहते हैं? वासुदेव का अर्थ है वसुओं में सर्वश्रेष्ठ। अर्थात राजाओं में सर्वश्रेष्ठ। जो राजा बलशाली होता है और जिसकी सेना क्षीतिज को भी पार कर जाती है और जिसमें असीम शक्तियों का भंडार होता है उसे वासुदेव कहते हैं और हम वही है, हां वासुदेव पौंड्रक।
 
यह सुनकर उसकी पत्नी कहती हैं- स्वामी आप न वासुदेव हैं और न भगवान हैं। वासुदेव तो श्रीकृष्ण हैं और वही भगवान के अवतार हैं। तब पौंड्रक कहता है- कृष्ण भगवान नहीं वह एक दुर्बल मानव है। तब उसकी पत्नी तारा कहती है फिर उन्हें लोग क्यों भगवान मानते हैं, क्यों आदर और श्रद्धा के साथ सिर झुकाते हैं? इस पर पौंड्रक कहता है कि इसलिए कि वह ढोंगी है। उसने भगवान होने का ढोंग रचा रखा है। नाटक करता है वह भगवान होने का। उसने लोगों को अपने मायाजाल में फंसा लिया है। उसे लोग वासुदेव इसलिए कहते हैं कि वह वसुदेव का पुत्र हैं। वर्ना मेरे सामने वह तुच्छ है और कुछ नहीं। यह सुनकर उसकी पत्नी कहती है कि नहीं स्वामी आप श्रीकृष्ण को तुच्छ समझकर उनका अपमान कर रहे हैं। यह सुनकर पौंड्रक भड़क जाता है और कहता है कि और तुम मेरे सामने कृष्‍ण को सम्मान देकर मेरा अपमान कर रही हो तारा।..
 
इस तरह दोनों में विवाद होता है तो पौंड्रक बताता है कि वह रणछोर और भगोड़ा है। जो मुझे भगवान नहीं समझता उस पर मुझे क्रोध आता है। आज सारे संसार ने मेरे आगे सिर झुका दिया है और तुम मेरी अपनी पत्नी होकर मेरे भगवान होने के सत्य को नकार रही हो।... बाद में वह कहता है कि वह मेरा क्या कर लेगा? तो तारा कहती है कि यदि वह भगवान हैं तो कुछ भी कर सकते हैं। तब वह कहता है कि वह कुछ भी नहीं कर सकता। मैं तुम्हारा ये भ्रम भी तोड़ दूंगा। एक दिन उसके राज्य में घुसकर उसका वध कर दूंगा।
 
तभी वहां पर सेनापति दूर्धर आकर कहता है कि स्वामी युद्ध में जो कन्याएं हाथ लगी हैं। उनमें से जो सुंदर कन्याएं हैं उन्हें आपके लिए लाएं क्या? आज्ञा दें तो प्रस्तुत की जाए। यह सुनकर पौंड्रक गदगद होकर कहता है- शुभ कार्य और वह भी पूछ-पूछकर। अतिशीघ्र प्रस्तुत की जाए। तब दूर्धर कहता है- जो आज्ञा महाराज। फिर कन्याओं को प्रस्तुत किया जाता है तो वह सभी को ललचाई नजरों से देखता है। इस पर उसकी पत्नी तारा कहती है- स्वामी आप ये अच्‍छा नहीं कर रहे हैं ये पाप है पाप। यह सुनकर पौंड्रक कहता है- तुम इसे पाप कहती हो रानी और जब वह ग्वाला सुंदर स्त्रियों के साथ नृत्य करता है तो तुम उसे रास कहती हो। अरे जब वह रास खेल सकता है तो हम भी खेल सकते हैं ना?..
 
तब वह कहती है- स्वामी दशानन रावण ने सीता का हरण किया था, इसीलिए उसका सर्वनाश हुआ था। उसकी लंका नगरी को हनुमान ने आग लगाकर नष्ट कर दिया था। तब वह कहता है चिंता की बात नहीं है महारानी। ये द्वापर युग चल रहा है। पौंड्रक को जलाने के लिए हनुमान आएगा कहां से? यदि आ भी गया तो वासुदेव पौंड्रक उसका भी वध करने की क्षमता रखता है।
 
फिर उधर, हनुमानजी को आकाश में गमन करते हुए बताया जाता है। तभी वे देखते हैं कि गांव की एक चौपाल पर राम के भजन चल रहे हैं तो वे वहां रुककर नीचे देखते हैं और खुद से ही कहते हैं- अरे आश्चर्य! पौंड्रक की नगरी में प्रभु के भजन। चलो देखें ये क्या चमत्कार है। फिर हनुमानजी नीचे उतरकर भेष बदलकर उन भजनकर्ताओं के साथ राम का भजन गाने लगते हैं। उनके आने से और भी भक्तिमय माहौल हो जाता है। फिर वे अंत में कहते हैं- बोलो श्रीरामचंद्रजी की जय। सभी जय जयकार करते हैं।
 
तब एक भजनकर्ता ग्रामीण कहता है- वाह वाह वाह। राम भजन हो तो ऐसा हो। तब दूसरा कहता है- कितना रस है इस भक्त के सुरों में। यह सुनकर हनुमानजी सभी को नमस्कार करते हैं तो सभी कहते हैं- वाह आज तो भजन का आनंद आ गया। फिर सभी उठकर वहां से चले जाते हैं। 
 
फिर हनुमानजी आकाश में देखकर कहते हैं- प्रणाम प्रभु। तभी वे देखते हैं कि एक बालक वहीं रुका हुआ है जो ग्रामिणों के साथ नहीं गया। हनुमानजी उसे देखते हैं और वह भी हनुमानजी को देखता है तब हनुमानजी कहते हैं- अरे वत्स! सभी चले गए परंतु तुम अभी तक यहीं हो। तब वह बालक कहता है कि मैं तो रोज सबके अंत में ही जाता हूं। तब हनुमानजी पूछते हैं तुम रोज यहां आते हो? तब वह बालक कहता है- हां श्रीराम की कथा सुनने के बाद मेरा मन बहुत प्रसन्न हो जाता है। इसलिए में सबसे पहले आता हूं और सबसे अंत में जाता हूं। यह सुनकर हनुमानजी कहते हैं- क्या तुम्हें अकेले में डर नहीं लगता? तब वह बालक कहता है कि श्रीराम की शरण में डर कैसा?
 
तब भेष बदले हुए हनुमानजी पूछते हैं- परंतु तुम रोज अकेले यहां क्या करते हो? यह सुनकर वह बालक कहता है- मैं हनुमानजी की प्रतिक्षा करता हूं। यह सुनकर हनुमानजी चौंक जाते हैं और कहते हैं- हनुमानजी की प्रतिक्षा? तब वह बालक कहता है कि हां दादाजी कहते थे कि जहां रामजी की कथा होती हैं वहां हनुमानजी अवश्य आते हैं। यहां भी आएंगे ना? 
 
यह सुनकर हनुमानजी अचरज में पड़ जाते हैं और फिर वे एक घुटने के बल पर बैठकर कहते हैं- हां आते हैं वत्स, अवश्य आते हैं। तब वह बालक कहता है तो फिर वह मुझे मिलते क्यों नहीं? वो श्रीराम के भक्त हैं और मैं उनका भक्त हूं। तब हनुमानजी पूछते हैं- तुम उनसे क्यों मिलना चाहते हो वत्स? तब वह बालक कहता है- मैं हनुमानजी की पूंछ देखना चाहता हूं। उन्होंने अपनी पूंछ से पूरी लंका में आग लगा दी थी। यह सुनकर हनुमानजी प्रसन्न हो जाते हैं फिर वह बालक कहता है- हनुमानजी की पूंछ कितनी शक्तिशाली होगी? पता है हनुमानजी ने अपनी पूंछ से बड़े-बड़े राक्षसों को फेंक दिया था। यदि उन्होंने अपनी पूंछ से मुझे उठाया तो कितना मजा आएगा। 
 
तब हनुमानजी कहते हैं- वो तुम्हें अपनी पूंछ से अवश्य उठाएंगे वत्स। तब वह बालक कहता है इसलिए तो मैं रोज यहां आता हूं परंतु ना वो आते हैं और न मुझे मिलते हैं। तब हनुमानजी कहते हैं- तुम अभी उनसे मिलना चाहोगे? तब वह बालक कहता है- हां। तब हनुमानजी कहते हैं- डरोगे तो नहीं? तब वह कहता है- नहीं। 
 
तब हनुमानजी अपने असली रूप में प्रकट हो जाते हैं। यह देखकर वह बालक चौंक जाता है और कहता है हनुमानजी आप? तब हनुमानजी कहते हैं- हां वत्स। फिर वह बालक हनुमानजी को प्रणाम करता है और इसके बाद वह हनुमानजी के पीछे जाकर उनकी पूंछ को गौर से देखता और उसे छूकर डर जाता है। तब हनुमानजी हंसते हैं और कहते हैं- वत्स! पूंछ पर सैर करोगे? तब वह बालक कहता हैं- हां। तब हनुमानजी कहते हैं- अच्छा। फिर वे उस बालक को अपनी पूंछ में लपेट लेते हैं और अपनी पूंछ को बड़ी करते हुए वे उसे आसमान में पहुंचा देते हैं। वह बालक कहता है- वाह हनुमानजी वाह।
 
तभी उधर, वहां पौंड्रक के सैनिक गांव में घुस आते हैं। गांव में लोगों को भागते हुए बताया जाता है। सभी अपने-अपने घरों में घुसकर दरवाजा बंद कर लेते हैं। सभी अपनी महिलाओं और लड़कियों को एक जगह छुपाने लग जाते हैं। सेनापति दूर्धर कहता है- सैनिकों इस बस्तीवालों ने वासुदेव पौंड्रक की आज्ञा का विरोध किया है। वासुदेव पौंड्रक को पूजने के बदले दूसरे देवताओं को पूजते हैं। इन्हें इसका दंड अवश्‍य मिलना चाहिए। जाओ हर घर को लूट लो। जो भी विरोध करे उसकी हत्या कर दो और हां सुंदर और कोमल-कोमल बालिकाओं को बंदी बना लाओ.. जाओ। फिर वहां पर कोहराम मच जाता है।
 
यह दृश्य श्रीकृष्‍ण और रुक्मिणी देख रहे होते हैं। रुक्मिणी कहती है- प्रभु ये क्या पौंड्रक अपने आप को वासुदेव कहता है और भगवान होने की घोषणा करता है और अपनी ही प्रजा पर अत्याचार करता है जो श्रीराम और सीता माता की पूजा करते हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां देवी मैं देख रहा हूं और यह ‍भी कि वह किस तरह ईश्वर पर श्रद्धा रखने वालों को परीक्षा में डाल रहा है। कोई राजा जब किसी भी स्त्री की मान-मर्यादा का शत्रु बन जाता तो समझो उसका विनाश दूर रही है। तब रुक्मिणी कहती हैं कि पौंड्र राज्य की इन स्त्रियों के लिए मैं चिंतित हूं और आप यहां बैठे-बैठे देख रहे हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब मेरी आवश्यकता होगी तो मैं स्वयं पौंड्रक का वध करूंगा। तब रुक्मिणी कहती है- इसका मतलब इस वक्त आपकी आवश्यकता नहीं है, तब इन स्त्रियों को कौन बचाएगा? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप चिंता न करें देवी पौंड्रक की इन नगरी में स्वयं हनुमान पहुंच गया है..वो देखो। और जहां हनुमान हो वहां कोई भी रावण किसी भी स्त्री की मर्यादा से खिलवाड़ नहीं कर सकता। 
 
उधर, हनुमानजी बालक को अपनी पूंछ से आसमान में झुला-झुला रहे होते हैं तो इधर एक महिला बचाओ-बचाओ कहते हुए भाग रही रही है जिसे वह बालक देख लेता है और जोर-जोर से चीखता है- दीदी दीदी। हनुमानजी ये देख और सुनकर सतर्क हो जाते हैं। हनुमानजी भी उस महिला की चीख सुनते हैं। वह बालक कहता है- हनुमानजी मेरी दीदी को बचा लीजिये। यह सुनकर हनुमानजी उस बालक को अपनी पूंछ छोटी करके भूमि पर अपने पास उतार लेते हैं तभी उसकी दीदी चीखते हुवे वहां पहुंच जाती है। तभी हनुमानजी खड़े होकर अपना भेष बदल लेते हैं।
 
बालक कहता है कि हनुमानजी मेरी दीदी को बचा लीजिये। उस बालक की दीदी उसके पास आ जाती है और हनुमानी का हाथ पकड़कर कहती है- बचाओ बचाओ मुझे बचाओ। तभी सेनापति दूर्धर घोड़े पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ वहां पहुंच जाता है और कहता है सैनिकों पकड़ लो इस सुंदरी को। सैनिक उसके पास बढ़ने लगते हैं तो ब्राह्मण भेषधारी हनुमानजी कहते हैं- ठहरो! हे अत्याचारी दानव इस नारी को कोई हाथ नहीं लगाएगा। यह सुनकर सेनापति दूर्धर कहता है- हे ब्राह्मण तुम बुढ़े हो चुके हो पहले अपने प्राणों की चिंता करो। इस आयु में तुम इस सुंदरी का क्या करोगे? 
 
यह सुनकर हनुमानजी क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं- हे उन्मत मानव क्या तुम्हें शिक्षा नहीं मिलती की पराई स्त्री माता के समान होती है, देवी होती है और उसकी पूजा की जाती है। यह सुनकर दूर्धर कहता हैं- हां ये तुमने ठीक कहा कि उसकी पूजा की जाती है। हम भी तो उसको अपने मन-मंदिर में बैठाकर उसकी पूजा करना चाहते हैं। फिर तुम हमें रोक क्यों रहे हो?
 
यह सुनकर हनुमानजी उस बालक और महिला को पीछे खड़ा करके कहते हैं कि तुम यूं नहीं मानोगे। लगता है कि मुझे अपने बल का प्रयोग करना ही पड़ेगा। यह सुनकर दूर्धर जोर-जोर से हंसकर कहता है- सुनो सैनिकों ये ब्राह्मण अपने आप को बलवान समझता है जाओ इस ब्राह्मण को यमलोक का मार्ग दिखाओ।  
 
सभी सैनिक हनुमानजी की छाती पर भाले लगा देते हैं और अपने बल से वह भाले से उनकी छाती को छेदना का प्रयास करते हैं- परंतु वे सभी भाले मुड़कर बांके हो जाते हैं। फिर हनुमानजी दो सैनिकों को उठाकर आसमान में फेंक देते हैं और दो को भूमि पर पटक देते हैं। यह देखकर बाकी सैनिक भाग जाते हैं और अकेला दूर्धर ही वहां रह जाता है। बालक की दीदी भी चौंक जाती है। फिर दूर्धर घोड़े पर से नीचे उतरकर अपनी तलवार निकालकर आगे बड़ता है तो हनुमानजी अपने असली रूप में प्रकट होकर गदा को कंधे पर धारण कर लेते हैं। यह देखकर दूर्धर कहता है- अच्छा तो तुम मायावी भी हो। हनुमानजी कहते हैं- हां। फिर वह दूर्धर को गदा से धो देते और फिर उसे गर्दन से पकड़ कर मारते हुए आसमान में ले उड़ते हैं। 
 
बहुत उपर ले जाकर उसे छोड़ देते हैं। दूर्धर नीचे गिरते हुए अचानक ही स्थिर होकर एक विशालकाय राक्षस में बदल जाता है और जोर-जोर से हंसने लगता है। फिर वह आसमान में हनुमानजी के समक्ष पहुंचकर अपनी मायावी विद्या से एक आग का गोला हनुमानजी की ओर फेंकता है तो हनुमानजी उसे अपनी गदा से निष्फल कर देते हैं। नीचे खड़ा वह बालक और उसकी दीदी ये दृष्य देखते रहते हैं। दूर्धर कई तरह के अस्त्रों का हनुमानजी पर प्रयोग करता है परंतु वह सभी निष्फल हो जाते हैं तब वह घबराकर आकाश मार्ग से भागने लगता है तो हनुमानजी भी उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे हो लेते हैं। 
 
फिर हनुमानजी एक जगह उसे अपनी गदा से उसके सिर पर वार करते हैं तो वह घायल होकर नीचे एक महल की छत पर गिरता है जहां पर खड़े सैनिकों के सामने वह तड़फ-तड़फ कर मर जाता है। सैनिक उसे उठाकर ले जाते हैं। यह देखकर हनुमानजी पुन: उस बालक और उसकी दीदी के पास लौट आते हैं। बालक जोर से जयकारा लगाता है- पवनपुत्र हनुमान की, तो उसकी बहन कहती है- जय। फिर दोनों हनुमानजी को प्रणाम करते हैं तो हनुमानजी उन्हें आशीर्वाद देकर वहां से चले जाते हैं। 
 
उधर, पौंड्रक के समक्ष उसके दरबार में दूर्धर की लाश को रख दिया जाता है। वासुदेव पौंड्रक कहता है- ये कौन हैं, किसकी लाश है कहां से आई है? जारा देखो इसे। तब एक दरबारी (उसका भाई) देखकर बताता कि वासुदेव ये तो अपना सेनापति दूर्धर है। यह सुनकर पौंड्रक सहित सभी चौंक जाते हैं। पौंड्रक कहता है- हमारे सेनापति की लाश हमारे सामने, ये कैसे हो सकता है? किसने किया ये महापाप? हम उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे। हम उसे जीवित जला देंगे।
 
यह सुनकर काशीराज कहता है- नहीं वासुदेव। हमारे होते आप कष्ट नहीं उठाएंगे। हम उस धृष्ट के टूकड़े-टूकड़े कर देंगे। तब वह दरबारी कहता है कि मैं शपथ लेता हूं कि मैं अपनी तलवार तब तक म्यान में नहीं रखूंगा तब तक उस हत्यारे की हत्या नहीं कर देता। तब काशीराज कहता है- हां हम सभी शपथ लेते हैं कि हम उसके मुंड को काटकर वासुदेव के चरणों में डाल देंगे। सभी दरबारी उठकर शपथ लेते हैं। तब पौंड्रक कहता है कि तुम लोग उस कायर हत्यारे का वध नहीं करोगे केवल उसे बंदी बनाकर हमारे चरणों में डाल दोगे। हम स्वयं अपने हाथों से उसके टूकड़े-टूकड़े कर देंगे। यह सुनकर सभी कहते हैं- जो आज्ञा वासुदेव। 
 
यह सुनकर उसकी पत्नी तारा कहती है कि किसे दंड देंगे आप, किसे बंदी बनाएंगे आप? क्या आप जानते भी हैं कि वह कौन है? दूर्धर का हत्यारा तो अज्ञात है और आप व्यर्थ ही हवा में तलवारें चला रहा हैं। यह सुनकर पौंड्रक कहता है- यही तो हम जानना चाहते हैं कि कौन है वो धृष्ट और वो कायर जिसने चोरी-चोरी छलपूर्वक एक योद्‍धा की हत्या की और अब वह मुंह छुपाए बैठा है, कौन है वो।...
 
पौंड्रक के यह कहते ही हनुमानजी ब्राह्मण भेष में खंभे के पीछे प्रकट हो जाते हैं और फिर वे चलकर सभा में पड़ी लाश के पास उपस्थित होकर कहते हैं- मैं हूं जिसने तुम्हारे अत्याचारी सेनापति को नर्क का रास्ता बताया है, मैं ही हूं वो। यह सुन और देखकर सभी चौंक जाते हैं। तब पौंड्रक कहता है- तुम? तुमने हमारे सेनापति की हत्या की, तुमने हमारे दूर्धर की हत्या की...असंभव। तुम तो एक बूढ़े और निर्बल मनुष्य हो जो अपने कंपकपाते हाथों से भोजन एक निवाला तक नहीं उठा सकता वह शस्त्र क्या उठाएगा। 
 
तब काशीराज कहता है कि ये कोई पागल बूढ़ा लगता है यहां कैसे आ गया? तब दूसरा दरबारी कहता है सैनिकों इस पागल बूढ़े को बंदी बना लो। यह सुनकर सभी सैनिक हनुमानजी के पास पहुंचते हैं तो वे उन्हें अपनी भुजाओं से दूर फेंक देते हैं। यह देखकर सभी दरबारी अपनी-अपनी तलवार निकल लेते हैं। सभी सैनिकों को हनुमानजी अच्छे से धोकर उनका वध कर देते हैं। यह देखकर वासुदेव पौंड्रक घबरा जाता है। वहां सन्नाटा छा जाता है।
 
यह देखकर कशीराज कहता है- ये तो बहुत ही शक्तिशाली है। अवश्य ही कोई मायावी होगा। यह सुनकर पौंड्रक घबराकर कहता है- हे ब्राह्मण शीघ्र बताओ तुम कौन हो? और ये क्या माया रची है तुमने, बताओ कौन हूं तुम हां। तब हनुमानजी कहते हैं- हे बहुरूपी पौंड्रक मैं यहां अपनी पहचान बताने नहीं आया हूं बल्कि ये बताने आया हूं कि तुम कौन हो। मैं तुम्हें तुम्हारी वास्तविक छवि दिखाने आया हूं। मैं तुम्हारे स्वांग, तुम्हारे ढोंग और तुम्हारे नाटक का भांडा फोड़ने आया हूं। तुम अपने आपको वासुदेव कहते हो, भगवान कहलाते हो। वासुदेव भगवान कहने के लिए तुमने इन चापलूसों की सेना खड़ी की है जो केवल तुम्हारी सिखाई हुई भाषा बोलते हैं।
 
तभी एक दरबारी (पौंड्रक का भाई) अपनी तलवार निकालकर कहता है- वासुदेव! ये क्या अनाप-शनाप बक रहा है। आप आज्ञा दीजिये, मैं अभी इसका सिर उड़ा देता हूं। इस पर हनुमानजी उसे कहते हैं- रुक जाओ वहीं। पौंड्रक की बोली बोलने वाले तोते। यदि तुने या किसी ने भी एक पग भी आगे बढ़ने की मूर्खता दिखाई तो उसका भी वही परिणाम होगा जो तुम्हारी सेना का हुआ। 
 
यह सुनकर पौंड्रक घबराकर कहता है- हे ब्राह्मण! तुम चाहते क्या हो, हां क्या चाहते हो? तब हनुमानजी कहते हैं- हे पौंड्रक.. यह सुनकर काशीराज कहता है- अरे वासुदेव का नाम आदर से नहीं ले सकते। इस पर हनुमानजी कहते हैं कि आदर उसी को दिया जाता है तो दूसरों को सम्मान देता है और ये पौंड्रक और तुम सब भगवान का अनादर कर रहे हो। तुममें से कोई भी आदर के योग्य नहीं है। हे पौंड्रक तुमने अपने आप को भगवान कहलवाकर मेरे स्वामी और सच्चे भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया है। तुमने उनका स्वांग भरकर एक नकली गदा, पदम, शंख और एक नकली सुदर्शन चक्र भी ग्रहण किया है। मैं तुम्हें चेतावनी देने आया हूं कि तुम अपना ये नाटक बंद करो और अपने राज्य में स्त्रियों का अनादर करना छोड़ दो और धर्म के रास्ते पर आ जाओ। वर्ना मैं तुम्हारे इस नाटक के साथ साथ तुम्हारे इस राजमहल को भी नष्ट कर दूंगा, जिसे तुमने नाटक घर बनाकर रखा है।
 
यह सुनकर पौंड्रक की पत्नि तारा कहती है- हे ब्राह्मण। क्या आप अपना परिचय नहीं देंगे, अपना नाम नहीं बताएंगे? तब हनुमानजी विनम्रता से हाथ जोड़कर तारा को कहते हैं- हे देवी! इन नास्तिकों के बीच में मैं अपना परिचय देना नहीं चाहता था, परंतु आपकी बात टाल नहीं सकता। मेरा नाम हनुमान है.. पवनपुत्र हनुमान। 
 
यह सुनकर पौंड्रक सहित सभी चौंक जाते हैं। पौंड्रक कहता है- हनुमान! सभी के मुख से निकल पड़ता है- हनुमान! पौंड्रक की पत्नि तारा भी कहती है- हनुमान! वही जिसने लंका में सीता मैया के सम्मान की रक्षा की थी। तब हनुमानजी कहते हैं- वो मेरा सौभाग्य था और दुर्भाग्य यह था कि मैं उस युग के राणव का वध नहीं कर सकता परंतु मुझे खुशी है कि मैंने इस युग के राणव के एक चेले का वध किया है।
 
यह सुनकर महारानी तारा उन्हें प्रणाम करती है तो पौंड्रक कहता है- महारानी तारा! तुम इसे प्रणाम कर रही हो। ये मायावी झूठ बोल रहा है। ये हनुमान हो सही नहीं सकता।...यह सुनकर हनुमानजी हंसते हैं। तब पौंड्रक कहता है- हनुमान तो त्रैतायुग में था और ये द्वापर युग चल रहा है। क्या कोई हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है..नहीं। तब उसकी पत्नी कहती है कि जिसे श्रीराम ने चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया है वह हजारों तो क्या लाखों वर्षों तक जीवित रह सकता है। यह सुनकर पौंड्रक कहता है- परंतु ये हनुमान हो ही नहीं सकता। यदि ये हनुमान है तो इसकी पूंछ कहां है, कहां हैं इसकी पूंछ हां?
 
यह सुनकर हनुमानजी हंसते हैं और कहते हैं कि मैंने अपनी पूंछ से बड़े-बड़े दानव और राक्षसों का विनाश किया है और इसका नवीनतम परिणाम तुम्हारे सामने है और फिर जब आवश्यक होगी तब तुम्हें अपनी पूंछ की शक्ति भी‍ दिखाऊंगा। जब तक के लिए जय श्रीराम। यह कहकर हनुमानजी आंखें बंद करके अदृश्‍य होने वाले रहते हैं तो पौंड्रक कहता है- ठहरो। हे बहुरुपिये तुम यहां आ तो गए हो परंतु यहां से जीवित नहीं जा सकते... हां नहीं जा सकते। जय श्रीराम, जय श्रीकृष्णा।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी