यह सुनकर पौंड्रक घबराकर कहता है- हे ब्राह्मण! तुम चाहते क्या हो, हां क्या चाहते हो? तब हनुमानजी कहते हैं- हे पौंड्रक.. यह सुनकर काशीराज कहता है- अरे वासुदेव का नाम आदर से नहीं ले सकते। इस पर हनुमानजी कहते हैं कि आदर उसी को दिया जाता है तो दूसरों को सम्मान देता है और ये पौंड्रक और तुम सब भगवान का अनादर कर रहे हो। तुममें से कोई भी आदर के योग्य नहीं है। हे पौंड्रक तुमने अपने आप को भगवान कहलवाकर मेरे स्वामी और सच्चे भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया है। तुमने उनका स्वांग भरकर एक नकली गदा, पदम, शंख और एक नकली सुदर्शन चक्र भी ग्रहण किया है। मैं तुम्हें चेतावनी देने आया हूं कि तुम अपना ये नाटक बंद करो और अपने राज्य में स्त्रियों का अनादर करना छोड़ दो और धर्म के रास्ते पर आ जाओ। वर्ना मैं तुम्हारे इस नाटक के साथ साथ तुम्हारे इस राजमहल को भी नष्ट कर दूंगा, जिसे तुमने नाटक घर बनाकर रखा है।