Surya grahan kaise hota hai: सूर्य ग्रहण एक खगोलीय खटना है। 8 अप्रैल को सूर्य ग्रहण 2024 (Surya Grahan 2024) होगा जो भारत में नहीं दिखाई देगा। भारत में सूर्य ग्रहण की घटना को शुभ घटना के रूप में नहीं गिना जाता है। जहां पर यह नजर आता है वहां पर इसका सूतक काल मान्य होता है। आओ जानते हैं कि सूर्य ग्रहण कैसे क्यों होता है और यह कितने प्रकार से होता है।
कैसे होता है सूर्य ग्रहण- How does a solar eclipse happen :-
सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चंद्रमा द्वारा आवृत्त हो जाए। यानी चंद्रमा के पीछे वह छुप जाए।
धरती सूरज की परिक्रमा करती है और चंद्रमा धरती की परिक्रमा करता है।
जब सूर्य और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो वह सूर्य की रोशनी को कुछ समय के लिए ढक लेता है। इस घटना को ही सूर्य ग्रहण कहते हैं।
सरल अर्थों में जब पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है तब सूर्य ग्रहण होता है और जब पृथ्वी सूर्य तथा चंद्रमा के बीच आती है, तब चंद्र ग्रहण होता है।
Solar Eclipse
सूर्य ग्रहण के प्रकार- Types of solar eclipse:-
1.पूर्ण सूर्य ग्रहण (Full Solar Eclipse) : इसे खग्रास ग्रहण भी कहते हैं। चंद्रमा जब सूर्य को पूर्ण रूप से ढक लेता है तो ऐसे में चमकते सूरज की जगह एक काली तश्तरी-सी दिखाई है। इसमें सबसे खूबसूरत दिखती है 'डायमंड रिंग।' चंद्र के सूर्य को पूरी तरह से ढकने से जरा पहले और चांद के पीछे से निकलने के फौरन बाद काली तश्तरी के पीछे जरा-सा चमकता सूरज हीरे की अंगूठी जैसा दिखाई देता है। संपूर्ण हिस्से को ढकने की स्थिति खग्रास ग्रहण कहलाती है।
2. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse) : इसे खंडग्रास ग्रहण भी कहते हैं। आंशिक ग्रहण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा एक सीधी लाइन में नहीं होते और चंद्रमा सूर्य के एक हिस्से को ही ढंक पाता है। यह स्थिति खण्ड-ग्रहण कहलाती है खंडग्रास का अर्थ अर्थात वह अवस्था जब ग्रहण सूर्य या चंद्रमा के कुछ अंश पर ही लगता है। अर्थात चंद्रमा सूर्य के सिर्फ कुछ हिस्से को ही ढंकता है।
3. वलयाकार सूर्य ग्रहण (Elliptical Solar Eclipse) : इसे कंगन या कंकणाकृति सूर्य ग्रहण भी कहते हैं। सूर्य ग्रहण में जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होता है और इस दौरान पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। ऐसे में सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्य ग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
कंकणाकृति सूर्यग्रहण ( kankanakruti suryagrahan ): सूर्य, चंद्र और धरती जब एक सीध में होते हैं अर्थात चंद्र के ठीक राहु और केतु बिंदु पर ना होकर ऊंचे या नीचे होते हैं तब खंड ग्रहण होता और जब चंद्रमा दूर होते हैं तब उसकी परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती तथा बिंब छोटे दिखाई देते हैं। उसके बिम्ब के छोटे होने से सूर्य का मध्यम भाग ढक जाता है। जिससे चारों और कंकणाकार सूर्य प्रकाश दिखाई पड़ता है। इस प्रकार के ग्रहण को कंकणाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं। ग्रहण के दौरान सूर्य में छोटे-छोटे धब्बे उभरते हैं जो कंकण के आकार के होते हैं इसीलिए भी इसे कंकणाकृति सूर्यग्रहण कहा जाता है। इसके अलावा रिंग फायर सूर्य ग्रहण इसी वलयकार सूर्य ग्रहण के ही रूप हैं। नीचे इसका चित्र देखा जा सकता है।
मुख्य रूप से उपरोक्त तीन प्रकार के सूर्य ग्रहण ही दिखाई देते हैं लेकिन कभी-कभी कुछ दुर्लभ घटना भी होता है। दुर्लभ सूर्य ग्रहण में हाइब्रिड सूर्य ग्रहण होता है। इस प्रकार के सूर्य ग्रहण में शुरुआत में तो यह वलयाकार सूर्य ग्रहण के रूप में दिखाई देता है फिर धीरे-धीरे पूर्ण सूर्य ग्रहण हो जाता है और उसके बाद फिर से धीरे-धीरे वलयाकार स्थिति दिखाई देने लगती है। यही हाइब्रिड सूर्य ग्रहण कहलाता है और बहुत कम दिखता है।