नई दिल्ली। 18वें एशियाई खेलों में कांस्य और रजत पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष और महिला कबड्डी टीमें दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद इंदिरा गांधी स्टेडियम में शनिवार को मैच खेलने नहीं पहुंचीं जिससे पूरा प्रकरण ही एक तमाशा बनकर रह गया।
एशियाई खेलों में उतरने वाली टीम और इन टीमों में न चुने गए खिलाड़ियों के बीच यह मुकाबला होना था लेकिन एशियाई खेलों की कबड्डी टीमें इस मुकाबले के लिए नहीं पहुंचीं।
दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसपी गर्ग को इस मैच के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था और उनके साथ खेल मंत्रालय के एक अधिकारी भी थे।
दरअसल, एशियाई खेलों के लिए भारतीय कबड्डी टीमों के रवाना होने से पहले पूर्व कबड्डी खिलाड़ी महिपाल सिंह ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और उन्होंने भारतीय एमेच्योर कबड्डी महासंघ (एएफकेआई) पर घूस लेकर खिलाड़ियों के चयन का आरोप लगाया था। इसके बाद अदालत ने निर्णय लिया था कि खेलों के समापन के बाद एक मैच का आयोजन किया जाएगा ताकि यह पता चल पाए कि खिलाड़ियों के चयन के मामले में महिपाल के आरोप सही हैं या नहीं?
स्टेडियम में महिपाल और एएफकेआई के अधिकारी भी मौजूद थे लेकिन खिलाड़ी नहीं पहुंचे और मैच विपक्षी धड़े के खिलाड़ियों के बीच खेला गया। इस मैच के लिए भारी संख्या में मीडियाकर्मी भी पहुंचे लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी।
न्यायाधीश एसपी गर्ग ने विपक्षी धड़े के खिलाड़ियों के बीच खेले गए दोस्ताना मैचों का लुत्फ तो उठाया, पर मीडिया के बार-बार पूछे जाने के बावजूद उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि वे मैच देखने आए थे और मैच देख रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे क्या एक्शन लेने जा रहे हैं? तो उन्होंने इतना ही बताया कि वे अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेंगे।
भारतीय पुरुष कबड्डी टीम ने एशियाई खेलों में लगातार 7 बार स्वर्ण पदक जीता था लेकिन उसे सेमीफाइनल में ईरान से हारना पड़ा था और उसे बाद में कांस्य पदक मिला था। पिछली 2 बार की चैंपियन महिला टीम फाइनल में ईरान से हारकर रजत पर ही ठिठक गई थी। दोनों टीमों की पराजय से इस बात को बल मिला था कि कबड्डी टीमों की चयन प्रक्रिया में कहीं न कहीं कुछ खामी थी।
आश्चर्यजनक था कि अदालत के आदेश के बावजूद एशियाड में खेलने गए खिलाड़ी इस मुकाबले के लिए नहीं आए। जकार्ता एशियाड में खेलीं टीमों को चुनौती देने देशभर के लगभग 80 खिलाड़ी पहुंचे और उन्होंने आपस में मैच खेला। स्टेडियम में मौजूद अधिकारियों में से कोई भी सही स्थिति बताने के लिए तैयार नहीं था। आए हुए खिलाड़ी अलग-अलग जगहों पर बैठे हुए थे।
मीडिया को जिस मुकाबले का इंतजार था वह तो नहीं हुआ लेकिन जो कुछ हुआ, वह किसी तमाशे से कम नहीं था। यह माना जा रहा है कि इस विवाद के पीछे कबड्डी फेडरेशन और हाल में घोषित न्यू कबड्डी फेडरेशन के बीच वर्चस्व बनाने की लड़ाई है।
कबड्डी फेडरेशन पिछले कई वर्षों से प्रो. कबड्डी लीग का आयोजन कर रहा है और नई बनी फेडरेशन ने भी अपनी कबड्डी लीग कराने का ऐलान किया है। कबड्डी पर वर्चस्व बनाने को लेकर संघर्ष तेज होता जा रहा है लेकिन इस लड़ाई में नुकसान भारतीय कबड्डी का हो रहा है। (वार्ता)