पर्यटकों की बाट जोहता अरुणाचल प्रदेश

- ईटानगर से रविशंकर रवि

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भूटान, चीन और म्यांमार की सीमा से सटे और हिमालय की गोद में बसे अरुणाचल प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। अरुणाचल की बहुरंगी संस्कृति लोगों को आकर्षित करती है। अरुणाचल में एक तरफ तो विभिन्न जनजातीय समूहों के उत्सव, उनके लोक संगीत की जीवंत परंपरा है तो दूसरी तरफ हरे-भरे ऊँचे-ऊँचे पहाड़, घने जंगल और उसके बीच से गुजरने वाली बलखाती सड़कें हैं जो लोगों को बरबस मुग्ध कर देती हैं। पूरे भारत में त्वांग में सबसे पहले सूरज निकलता है और इसे निहारने के लिए पर्यटक भी खूब आते हैं।

वन्य जीवों और कीटों की सैकड़ों लुप्त होती प्रजातियों का दीदार अरुणाचल में सहज संभव है। यहाँ पाए जाने वाले विभिन्न तरह के पेड़-पौधे शोधकर्ताओं के लिए खास हैं तो पहाड़ों से उतरती नदियाँ जल क्रीड़ा का साहसिक अवसर प्रदान करती हैं। राफ्टिंग के लिए इससे बेहतर जगह और कोई नहीं है। चीन की सीमा पर बर्फबारी का आनंद है तो वर्षा वन शोधार्थियों के लिए वरदान है।

अरुणाचल जाने के लिए भारतीय नागरिकों को भी इनरलाइन परमिट लेना होता है। अपना परिचय देने पर अरुणाचल हाउस से यह सहज ही मिल जाता है। पर्यटक इसे दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी में भी प्राप्त कर सकते हैं।
यह कहा जा सकता है कि प्रकृति ने अरुणाचल को अपने हाथों से सजाया है। यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों से अरुणाचल सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चला रही है। अरुणाचल में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सबकुछ है, सिर्फ मार्केटिंग की जरूरत है। अरुणाचल का शांत माहौल यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है। अरुणाचल में अपराध का ग्राफ बेहद कम है।

यहाँ के लोग सामान्यत सीधे हैं। अन्य पर्यटन स्थलों की तरह यहाँ के स्थानीय लोग पर्यटकों को ठगते नहीं बल्कि उल्टे ठगे जाते हैं। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए त्वांग में बौद्ध महोत्सव आरंभ किया गया है। गुवाहाटी से त्वांग का सफर बहुत मजेदार होता है।

गुवाहाटी से सुबह चलकर पाँच-छह घंटे में अरुणाचल के प्रवेशद्वार भालुकपोंग पहुँचा जा सकता है। वहाँ से जंगल और पहाड़ियाँ आरंभ हो जाती हैं।

टेंगा तक रास्ता टेंगा नदी के किनारे-किनारे चलता है। पहाड़ी से गिरता पानी रात में काफी शोर करता है। शाम तक आराम से बोमिडिला पहुँचा जा सकता है, वहाँ पर ठहरने का बेहतर इंतजाम है। बाजार और होटल के अलावा टूरिस्ट लॉज और सर्किट हाउस हैं। दूसरे दिन सुबह वहाँ से त्वांग की तरफ बढ़ा जा सकता है। दोपहर बाद आप सेला दर्रे से गुजरकर त्वांग पहुँच सकते हैं। सेला दर्रे सबसे ऊँची पहाड़ी है। रास्ते में सेना के ठिकाने जगह-जगह पर मिल जाते हैं। त्वांग से चीन सीमा पास में है।

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अरुणाचल जाने के लिए भारतीय नागरिकों को भी इनरलाइन परमिट लेना होता है। अपना परिचय देने पर अरुणाचल हाउस से यह सहज ही मिल जाता है। पर्यटक इसे दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी में भी प्राप्त कर सकते हैं। पर्यटकों की बढ़ती संख्या देखकर अरुणाचल सरकार ने जगह-जगह पर टूरिस्ट लॉज बनवाए हैं। वहाँ ठहरने और खाने का बेहतर इंतजाम है हालांकि अरुणाचल में अच्छे होटलों की कमी है पर त्वांग में कुछ अच्छे होटल जरूर मिल जाते हैं।

अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू अपने राज्य में पर्यटन को आय का आधार बनाना चाहते हैं। पर्यटन के विकास के लिए वे अपने स्तर से बहुत कुछ कर रहे हैं इसलिए वे जहाँ भी जाते हैं लोगों से पर्यटकों का सम्मान करने का आग्रह जरूर करते हैं। वे चाहते हैं कि हर मंत्री और विधायक अपने-अपने क्षेत्र में लोगों से पर्यटकों के साथ अतिथि जैसा व्यवहार करने का आग्रह करें।

अरुणाचल में एक तरफ तो विभिन्न जनजातीय समूहों के उत्सव, उनके लोक संगीत की जीवंत परंपरा है तो दूसरी तरफ हरे-भरे ऊँचे-ऊँचे पहाड़, घने जंगल और उसके बीच से गुजरने वाली बलखाती सड़कें हैं जो लोगों को बरबस मुग्ध कर देती हैं।
उन्होंने बोमडिला स्थित बुद्धपार्क में नववर्ष के उत्सव-लोसर के दौरान बातचीत के अवसर पर कहा कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बाहर से आए लोगों के साथ अच्छा व्यवहार जरूरी है। बाहरी लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए। उनसे होटलों में उचित किराया तथा दुकान में उचित मूल्य लिया जाना चाहिए। खांडू का मानना है कि अरुणाचल में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। प्रकृति ने इस प्रदेश को अनुपम उपहार दिया है।

प्रदेश की बहुरंगी संस्कृति है। हर माह में किसी न किसी जनजाति का कोई न कोई उत्सव होता है। जिन्हें पयर्टक पसंद करेंगे। उन्होंने बताया कि इसी मकसद से त्वांग में बौद्ध महोत्सव आरंभ किया गया है। राज्य सरकार पर्यटकों के लिए जरूरी सुविधाएँ जुटा रही है।

होटल, गेस्ट हाउस बनाए जा रहे हैं। अरूणाचल भारत के पर्यटन के मानचित्र में शामिल हो चुका है। अब तो गुवहाटी-त्वांग के बीच रोजाना हेलिकॉप्टर सेवा आरंभ हो रही है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बेहतर सड़क संपर्क व्यवस्था की जा रही है।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि अरूणाचल के लिए पर्यटन एक उद्योग है। केंद्र सरकार इसके लिए पर्याप्त मदद कर रही है। इसके विकसित होने से स्थानीय लोगों की आय बढ़ेगी। अरूणाचल की संस्कृति का बाहर प्रचार होगा। स्थानीय कारीगरों की कलाकृतियाँ बिक सकेंगी। इसमें तभी सफलता मिलेगी जब लोग सहयोग करेंगे। अरूणाचल प्रदेश में नए वर्ष का उत्सव सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।

बौद्ध धर्म को मानने वाले मोंपा और शेरडुकपेन जनजाति के लोगों का नववर्ष उत्सव 'लोसर' जब अंतिम दौर में होता है तो निशी, आपातानी आदि जनजातियाँ न्योकुम उत्सव मनाने की तैयारी में लग जाते हैं। इन उत्सवों में सांस्कृतिक परंपराओं के साथ सामाजिक चेतना भी महसूस की जा सकती है। अपनी परंपराएँ बचाने की पहल और बेचैनी भी इन उत्सवों में साफ दिखती है।

जनजातीय समाज दर्शक बनने की बजाय उत्सवों में खुद भाग लेता है इसलिए सामूहिकता जनजातीय समाज में बची हुई है। गाँव के लोग पहले से ही अपने परंपरागत लोकनृत्यों का अभ्यास करने लगते हैं। उनके विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्रकृति के प्रति सहचर की भावना होती है। सबसे खास बात यह है कि उनके धार्मिक विधि-विधानों व रीति-रिवाजों में आडंबर नहीं है।

अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने के लिए कई समूह इस बात की कोशिश भी कर रहे हैं कि बदलते समय के अनुसार रीति-रिवाजों में संशोधन हो लेकिन आस्था बनी रहे। जनजातीय समाज का खुलापन और महिलाओं की सहभागिता भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। जनजातीय समाज के किसी भी उत्सव में पुरुषों के समान ही महिलाओं की भागीदारी होती है।

देर रात तक चलने वाले कार्यक्रमों में वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। औरत-मर्द सभी मद का सेवन करते हैं लेकिन किसी भी औरत के साथ छेड़छाड़ की घटना नहीं होती है। सब मिलकर नाचते-गाते और खाते हैं। औरते दर रात भी सुरक्षित घर लौट आती है इसलिए जनजातीय समाज आज भी स्त्री स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिहाज से बेहतर है।

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