शेरो-शायरी : अनुभूति के शेर...

- अनूप तिवारी 


 

दीवानगी के रिश्ते बह गए जिंदगी के सैलाब में 
हम भी उस्ताद हो गए जिंदगी के तूफानों में 
 
ऐ हसीनों, तुमने पूछा होता कभी सवाल जिंदगी का 
तो हम भी आशिक होते, तुम होते तो न ये हार होती न जीत
जिंदगी के गुलशन में बहार ही बहार होती 
 
देखा जो तेरे हुस्न को तो मदहोश थे हम आजमाया 
जो तेरी सीरत को तो अपने हाथों की उंगलियां ज्यादा पाईं हमने
 
अब किधर जा रहा है मुश्किल के ये भी हासिल 
वो भी हासिल एक हम ही हैं जो बेसाहिल 
 
नदिया-दरिया में बाढ़ आना हर मौसम हर बारिश
हर वक्त-वक्त की बात है
पर समंदर, तूफान, सुनामी आना सितारों के गर्दिश में होने की बात है 
 
रक्तरंजित है तन और मन कैसे मुस्कुराए कोई 
आह नहीं लबों पे जख्मों पे अपने कराहने को 
 
प्यार कहती है दुनिया जिसे हम भी कह लेते झूठा ही सही 
तेरे प्यार के भरम में हम भी जी लेते इतना तो हक था हमें
 
के तुम्हें एक बार ही सही अपना हमदम कह लेते झूठा ही सही 
एक इशारा भर तुम कर देते तो प्यार हम भी कर लेते

तेरा आना मेरी जिंदगी में बहुत तो नहीं मगर ये सासें 
घुटन से नहीं इत्मीनान से निकलेगी इतना ऐतबार है मुझे 
 
अगर तुम मेरे हमदर्द होते तो ये दर्द न होता 
जमाना इतना दिलकश होता तो इसे दरकिनार न किया होता
 
गर्दिशों में घिर तो गया हूं लेकिन 
और भी मकबूल बनकर निकल आया हूं  
 
मत जलाओ उन चिरागों को जिनसे हम अपना 
दामन जला बैठते हैं ऐसे उजाले से तो अंधेरा अच्छा 
 
जिंदगी का आशियाना हमसे बनता नहीं लाख 
खुबसूरत हो मोहब्बत का बाग लेकिन हमसे संवरता नहीं 
 
बदलता है ज़माने का रंग-ए-दस्तूर 
बदले तुम भी तो तुम्हारा क्या कसूर। 

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