यूपी में चला पहलवान का 'दांव'

मंगलवार, 6 मार्च 2012 (20:24 IST)
PTI
उत्तरप्रदेश की राजनीति में नए इतिहास लिखते रहे सपा मुखिया मुलायमसिंह यादव ने अपनी धुरविरोधी बसपा मुखिया मायावती से पांच साल पहले मिली हार का पूर्ण बहुमत के साथ उसी अंदाज में बदला लेकर एक नया कीर्तिमान कायम कर दिया है।

अपने समर्थको में 'धरतीपुत्र’ और 'नेताजी’ के नाम से लोकप्रिय रहे यादव का जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को एक साधारण किसान सुघरसिंह के घर में हुआ था। यादव की प्रारंभिक शिक्षा इटावा में हुई और केके कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद वे शिक्षक बने, मगर बचपन से पहलवानी का शौक समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया के आदर्शों और नीतियों के प्रभाव में राजनीति में रुचि में बदल गया और वे राजनीति के अखाड़े में उतर पड़े।

उन्होंने वर्ष 1967 में समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और विधायक बने और इसके साथ शुरु हुई उनकी राजनीतिक यात्रा निरंतर नई उपलब्धियों के साथ आगे बढ़ती गई।

वर्ष 1975 में लगे आपातकाल के दौरान गैर कांग्रेसी दलों के तमाम दिग्गजों के साथ जेल जाने वाले युवा मुलायम दोबारा 1977 में विधानसभा पहुंचे और रामनरेश यादव के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई जनता पार्टी की सरकार में पहली बार मंत्री बने।

डॉ. लोहिया के बाद यादव ने अपनी राजनीतिक यात्रा को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह की छत्रछाया में आगे बढ़ाया और राजनीति के पारखी चौधरी ने उन्हें वर्ष 1980 में अपनी पार्टी लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा और वे वर्ष 1980 में विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने।

बोफोर्स तोप खरीद घोटाले से उठी आंधी में वर्ष 1989 में जब कांग्रेस की सरकार धराशायी हुई और जनता दल को राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ तो यादव ने उस सरकार का नेतृत्व किया और पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1990 में जब राममंदिर की लहर में भाजपा की समर्थन वापसी के बाद केन्द्र में विश्वनाथ प्रतापसिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार गिर गई तो उत्तरप्रदेश में भी जनता दो फाड़ हो गई मगर अल्पमत में आ जाने के बावजूद यादव की सरकार कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में बनी रही और 1991 तक कायम रही।

1991 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी जनता पार्टी की करारी हार के चलते मुलायम अपनी सरकार तो गंवा बैठे मगर राजनीति, कला और संघर्ष क्षमता के बल पर उन्होंने वर्ष 1992 में छह दिसंबर को विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे के विध्वंस और तत्कालीन कल्याणसिंह नीत भाजपा सरकार की बर्खास्तगी के बाद अपनी राजनीति को नए तेवर के साथ आगे बढ़ाया।

अपनी संगठन क्षमता के लिए विख्यात यादव ने पुराने समाजवादियों जनेश्वर मिश्र, आजम खां और तब उनके खासमखास रहे बेनी प्रसाद वर्मा आदि को लेकर समाजवादी पार्टी के नाम से नया दल खड़ा किया और वर्ष 1993 में तब राजनीति में अपने पैर जमा रही बसपा के साथ गठबंधन बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा। उन्होंने कांग्रेस तथा जनता दल के बाहरी समर्थन से प्रदेश में वस्तुत: पहली गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

बसपा के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन बहुत दिन तक चल नही पाया। बसपा सरकार से अलग हो गई और मुलायम नीत सरकार गिर गई, जिसके बाद बसपा नेता मायावती पहली बार भाजपा और अन्य दलों के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी। वर्ष 1996 में मुलायमसिंह यादव ने केन्द्र की राजनीति में कदम रखा और तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौडा के संयुक्त मोर्चे की सरकार में रक्षामंत्री बने।

वर्ष 1997 में पहले मायावती के नेतृत्व में बनी बसपा-भाजपा सरकार और फिर सत्ता में रही भाजपा नीत गठबंधन सरकार के दौरान वर्ष 2002 तक यादव की पार्टी विधानसभा में मुख्य प्रतिपक्षी दल रही मगर वे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाते रहे।

वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा 143 सीटों के साथ प्रदेश की राजनीति में पहली बार सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी, मगर विपरीत राजनीतिक समीकरणों के कारण सरकार बनाने से चूक गई और इसके बाद प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में एक बार फिर बसपा-भाजपा गठबंधन की सरकार सत्तारूढ़ हो गई।

मगर भाजपा और बसपा की दोस्ती की तीसरी पाली भी अधिक नहीं चली और वर्ष 2003 में छोटे दलों और निर्दलियों के समर्थन से मुलायमसिंह यादव तीसरी बार मुख्यमंत्री बनकर सरकार बनाने में कामयाब रहे।

मुख्यमंत्री के रूप में उनकी तीसरी पारी 2007 तक चली, मगर उस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में कानून एवं व्यवस्था तथा कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों पर राजनीति सपा, बसपा में ध्रुवीकृत हो गई और उनकी धुरविरोधी बसपा मुखिया मायावती ने 403 सदस्यीय विधानसभा में 206 सीटें जीतकर उन्हें करारी मात दी और अपनी सरकार बना ली।

बहरहाल बचपन से पहलवानी के शौकीन यादव ने राजनीति के अखाड़े में भी अपनी महारथ का परिचय दिया। उन्होंने अपने पुत्र व पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मिलकर 16वीं विधानसभा के लिए पार्टी अभियान को गांव और गलियों तक पहुंचाकर पांच साल पहले मिली हार का उसी अंदाज में पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज करके बदला ले लिया। (भाषा)

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