पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चुनावों के दौरान यह वादा किया था कि वो महज़ चार हफ़्ते में राज्य को ड्रग्स मुक्त बना देंगे। क़रीब देढ़ साल बीत जाने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका है। उन्हें अब आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब की सरकार ने इस समस्या के निपटने के लिए कई उपाय अपनाए हैं।
उन उपायों में से एक उपाय है नशा मुक्ति केंद्र का। पिछले कुछ महीनों में यहां आने वाले मरीजों की संख्या एकाएक उछाल देखी गई है। यह पहली बार नहीं है जब इस तरह के उपाय किए गए हों, पहले की सरकारों ने भी ऐसा किया था। इससे पहले की एनडीए सरकार ने भी साल 2014 में इस तरह की कोशिश की थी।
नशे की लत के शिकार लोगों को बसों में भर-भर कर नशा मुक्ति केंद्र पहुंचाया जाता था। ये काम अक्सर पुलिस वाले करते थे ताकि जो लक्ष्य तय किए गए थे, उसे पूरा किया जा सके। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2014 में ऐसे मरीज़ों की संख्या क़रीब 2.89 लाख थी। आगे के सालों में इनकी संख्या घटती चली गई।
2015 में नशा मुक्ति केंद्र में आने वाले मरीज़ों की संख्या 1.89 लाख थी. 2016 में संख्या में और गिरावट देखी गई और आंकड़ा 1.49 लाख पर पहुंच गया। वहीं 2017 में मरीज़ों की संख्या 1.08 लाख हो गई। अब सवाल यह उठता है कि क्या वर्तमान सरकार के उठाए गए क़दम पंजाब को ड्रग्स मुक्त बना पाएंगे? या फिर ये उपाय राजनीतिक हो-हल्ला बन कर रह जाएंगे।
मरीज़ों की संख्या क्यों बढ़ी?
राज्य के सभी ज़िलों में नशा मुक्ति केंद्र पहले से चल रहे हैं। इसके अलावा सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में तीन ज़िलों में विशेष क्लिनिक की शुरुआत की थी। बाद में अन्य ज़िलों में भी इसे खोला गया। इन विशेष क्लिनिकों पर ओपीडी मरीज़ों को विशेष तवज्जो दी जाती है। अक्टूबर 2017 से जुलाई 2018 तक यहां आने वाले मरीज़ों की कुल संख्या 21,263 थी।
इनमें से केवल जुलाई में 13,589 मरीज़ यहां इलाज करवाने पहुंचे थे। एकाएक संख्या में आए उछाल के पीछे विभाग के अधिकारी कई कारण बताते हैं। स्वास्थ्य विभाग के अवर सचिव बी श्रीनिवासन कहते हैं कि सरकार के प्रयासों के बाद लोग जागरूक हो रहे हैं और वे नशा मुक्ति केंद्र की ओर रुख़ कर रहे हैं।
वो कहते हैं, "स्वास्थ्य विभाग ने विशेष क्लिनिक खोले हैं। इन क्लिनिकों में नशे की लत के शिकार लोगों को भर्ती नहीं किया जाता है। वो अपने परिवार के साथ रह कर इलाज करवा सकते हैं। यही वजह है कि मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है।"
विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि नशा मुक्ति के काम में पुलिस को जब से शामिल किया गया है, मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है। पुलिस ऐसे लोगों को पकड़ कर इन विशेष क्लिनिकों में पहुंचा रही है। दूसरा कारण यह है कि आने वाले दिनों में पंजाब में पंचायत चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सरकार इस क्षेत्र में सक्रियता दिखाना चाहती है।
संभावित उम्मीदवार युवाओं को क्लिनिक पहुंचा रहे हैं। चूंकि इलाज मुफ़्त है, इसलिए ये उम्मीदवार नशे की लत से पीड़ित परिवारों में अपनी छवि अच्छी बनाना चाहते हैं।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
डॉक्टरों का कहना है कि अगर मरीज़ को जबरन इस इलाज के लिए लाया जाता रहा तो यह योजना सफल नहीं हो पाएगी। उनका मानना है कि नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए ख़ुद की इच्छाशक्ति ज़रूरी है।
राज्य में ड्रग्स आसानी से मिल जाते हैं और दोस्तों के उकसाने पर मरीज़ों को इसकी लत लग जाती है। 20 साल की पूनम को ड्रग्स की लत थी। उनका ब्वॉयफ़्रेंड हेरोइन की खरीद-बिक्री करता था। उसने पूनम को ड्रग्स की लत लगाई।
पूनम बताती हैं कि वो दिन में तीन से चार बार ड्रग्स लेती थीं। उन्होंने इस लत से छुटकारा पाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती होने का फ़ैसला किया। जैसे ही वो वहां से बाहर निकलीं, पूनम फिर से ड्रग्स का इस्तेमाल करने लगीं। उनका ब्वॉयफ़्रेंड फिर से उन्हें हेरोइन देने लगा था। कुछ हफ़्ता पहले पूनम का ब्वॉयफ़्रेंड उनसे पैसे की मांग करने लगा। हर वक्त के लिए वो उससे पैसे मांगता जिसके बाद फिर से उन्हें नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया गया है।
डॉक्टर कहते हैं, "पुलिस और पंचायत चुनावों के उम्मीदवार नशे की लत के शिकार लोगों को क्लिनिक ला रहे हैं। लेकिन जैसे ही यह मुहिम कमज़ोर पड़ेगी, यह संभावना है कि मरीज़ फिर से अपने पुरानी आदत पर लौट जाएं। कुछ ऐसा ही साल 2014 में हुआ था। राज्य को ड्रग्स की लत से छुटकारा दिलाने के लिए ठोस योजना की ज़रूरत है।"
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक शशिकांत कहते हैं कि 2007 से पंजाब को ड्रग्स की मुसीबत से निकालने की बात हो रही है पर इस पर काम बहुत कम हुआ। वो कहते हैं कि जब तक कई विभाग मिल कर इस दिशा में काम नहीं करेंगे, तब तक इस मुसीबत से पार पाना मुश्किल है।
उन्होंने कहा, "सबसे पहले ड्रग्स की आसानी से उपलब्धता रोकनी होगी। जो लोग ड्रग्स के व्यापार से जुड़े हैं, उन पर कार्रवाई करनी होगी। मरीज़ों और उनके परिवारों को काउंसलिंग की सुविधा देनी चाहिए।" शशिकांत कहते हैं कि जब तक संजीदगी से इस पर काम नहीं किया जाएगा, राज्य को इस मुसीबत से बाहर निकालना मुश्किल है।