कर्नाटक की कैबिनेट ने फ़ैसला किया है कि बीपीएल कार्ड धारकों (ग़रीबी रेखा से नीचे) को एक जुलाई से चावल के बजाय नकद रुपये दिए जाएंगे। ये राशि 34 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दी जाएगी।
खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री केएच मुनियप्पा ने बताया, "जैसे ही हम व्यवस्था करने में सक्षम होंगे, हम चावल की आपूर्ति शुरू कर देंगे। तब तक हम 34 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से पांच किलोग्राम चावल के बराबर रुपये सीधे ट्रांसफ़र करेंगे।"
इस बैठक के बाद राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी सरकार खुले बाज़ार से चावल की ख़रीद करेगी और इस योजना को लागू करेगी। उन्होंने कहा, “हम लोग अगले ही दिन निविदा आमंत्रित करने जा रहे हैं।“
दरअसल कांग्रेस ने 10 मई को हुए विधानसभा चुनाव से पहले मतदाताओं से पांच गारंटी वाले वादे किए थे, इनमें अन्न भाग्य योजना भी शामिल थी।
इस योजना के मुताबिक, सरकार में आने के बाद कांग्रेस सरकार बीपीएल कार्ड धारकों को दस किलोग्राम मुफ्त चावल देने वाली थी।
लेकिन केंद्र सरकार ने ओपन मार्केट सेल्स स्कीम में बदलाव लाते हुए कहा कि फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने पहले कर्नाटक को 2.3 लाख मीट्रिक टन चावल देने का भरोसा दिया था, उसकी आपूर्ति नहीं हो पाएगी। इस फ़ैसले के चलते कांग्रेस की राज्य सरकार की मुश्किलें काफी बढ़ गईं।
इसके बाद कर्नाटक सरकार ने तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और पंजाब से चावल ख़रीदने की कोशिश की लेकिन उसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इसके चलते सरकार अपना चुनावी वादा समय से पूरा नहीं कर सकी और इसे टालना पड़ा।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बीबीसी हिंदी से कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा सहकारी संघीय व्यवस्था की बात करते रहे हैं। अगर चावल का भंडार नहीं होता तो मैं मुश्किल समझ सकता था, लेकिन केंद्र के पास चावल का पर्याप्त भंडार है और फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को राज्यों को आपूर्ति करने में भी कोई मुश्किल नहीं है।"
उन्होंने कहा, "ऐसे में यह एक राजनीतिक फ़ैसला है और मेरा मानना है कि यह निश्चित तौर पर केंद्र और राज्य के आपसी संबंधों को प्रभावित करेगा।”
राज्य और केंद्र के संबंधों पर सवाल
सिद्धारमैया ने इस मुद्दे पर यह भी कहा, “हम लोग जिस तरह से सहकारी संघीय व्यवस्था के अधीन काम कर रहे हैं, उसमें भारत सरकार का यह कर्तव्य है कि गोदाम में प्रचुर मात्रा में चावल होने के चलते वह उसकी आपूर्ति करे। हमलोग कोई मुफ्त में चावल नहीं मांग रहे हैं। हम उसका भुगतान कर रहे हैं।”
यह कोई पहला मौका नहीं है कि सिद्धारमैया ने केंद्र और राज्य के आपसी संबंधों को लेकर सवाल उठाया है। इससे पहले उन्होंने 2018 में केंद्र से मिलने वाले आवंटन को लेकर दक्षिणी राज्यों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाया था।
उन्होंने तब कहा था, “ऐतिहासिक तौर पर, दक्षिण भारत, उत्तर भारत को सब्सिडी देता आया है। विंध्य के दक्षिण में स्थित छह राज्य कहीं ज़्यादा कर का भुगतान करते हैं और उन्हें कम आवंटन मिलता है।"
"उत्तर प्रदेश राजस्व के तौर पर केंद्र के पास एक रुपया जमा कराता है, तो उसे बदले में केंद्र से 1।79 रुपये मिलते हैं। जबकि कर्नाटक को प्रति रुपये महज 47 पैसे मिलते हैं। इस क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने की ज़रूरत है और विकास के लिए इनाम कहां है?”
राजनीतिक और आर्थिक विश्लेषक भी इस बात से सहमत हैं कि मौजूदा चावल विवाद से राज्य और केंद्र के रिश्ते में तल्खी बढ़ेगी। हालांकि वे इसके लिए दूसरी वजहें भी गिनाते हैं।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ में सोशल साइंसेज के डीन प्रोफेसर नरेंद्र पानी कहते हैं, “दरअसल अन्न भाग्य योजना के तहत चावल आपूर्ति करने की स्थिति में अगले चुनाव के समय आम लोगों के सामने कौन इसका श्रेय लेता, इसको लेकर अस्पष्टता की स्थिति बन गई थी। केंद्र सरकार के फ़ैसले की असली वजह यही लगती है।”
क्या था मुद्दा
कांग्रेस पार्टी ने राज्य में चुनाव की घोषणा होने से काफी पहले ही पांच वादों को लेकर गारंटी दी थी।
ये थे वादे
हर घर को गृह ज्योति योजना के तहत 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली आपूर्ति
अन्न भाग्य योजना के तहत बीपीएल कार्ड धारकों को 10 किलोग्राम चावल की आपूर्ति
गृह लक्ष्मी योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को 2000 रुपये का भुगतान
शक्ति योजना के तहत राज्य की बस सेवाओं में महिलाओं की मुफ्त यात्रा
युवा निधि योजना के तहत सभी स्नातकों को तीन हज़ार का भत्ता
डिप्लोमा धारकों को 1500 रुपये का भत्ता
इनमें से शक्ति योजना को सरकार ने 11 जून से लागू कर दिया। जबकि गृह ज्योति और गृह लक्ष्मी योजना के लिए पंजीयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
युवा निधि योजना को अगले छह महीनों में सभी परीक्षा परिणामों के आने के बाद लागू करने की योजना है। लेकिन इनमें जो सबसे आसान गारंटी के तौर पर देखा गया था, उसी अन्न भाग्य योजना को सरकार लागू नहीं कर पायी। क्योंकि केंद्र सरकार ने आख़िरी वक्त में ओपन मार्केट सेल्स स्कीम को बदल दिया।
विवाद की पूरी क्रोनोलॉजी
9 जून- कर्नाटक सरकार ने एफसीआई को 34 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से 2।08 लाख मीट्रिक टन चावल की आपूर्ति के लिए लिखा।
12 जून- एफसीआई के क्षेत्रीय प्रबंधक ने आपूर्ति की मंजूरी दी।
13 जून- केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय ने एफ़सीआई के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि ओपन मार्केट सेल्स स्कीम के तहत राज्य सरकारों के लिए गेहूं और चावल की बिक्री बंद की जा रही है।
केंद्र सरकार ने क्या लिखा?
केंद्रीय मंत्रालय ने लिखा है कि कीमतों पर नियंत्रण के लिए पर्याप्त भंडार का होना ज़रूरी है। हालांकि इसी पत्र में एफ़सीआई को कीमत पर अंकुश रखने के लिए प्राइवेट पार्टी को चावल बिक्री करने की अनुमति दी गई है।
एक वरिष्ठ नौकरशाह ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त के साथ बीबीसी हिंदी से कहा, “ऐसा लग रहा है कि इस स्कीम के चलते केंद्र सरकार ने कर्नाटक पर शिकंजा कसा है।”
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसके बाद तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्रियों से बात की लेकिन अपर्याप्त भंडार और परिवहन के ख़र्चे को देखते हुए कोई समझौता नहीं हो पाया।
इसके बाद कर्नाटक के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मंत्री केएच मुनिय्पा ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की लेकिन केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा कि वह कर्नाटक के हाथों चावल की बिक्री नहीं करेगी।
मुनिय्पा ने इसके बाद पत्रकारों से कहा था, “मैंने उन्हें बताया कि केंद्र के पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए 135 लाख मीट्रिक टन चावल है। इसके अलावा एफसीआई के गोदामों में रिजर्व का भंडार अलग है जो 262 लाख मीट्रिक टन है। इसके बाद भी केंद्र सरकार कर्नाटक को एक किलोग्राम चावल भी नहीं देना चाहती है, यह स्पष्ट है कि राजनीतिक वजहों से यह किया जा रहा है।”
हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने बेंगलुरु साउथ के युवा सासंद तेजस्वी सूर्या को इन आरोपों का जवाब देने के लिए सामने किया है।
सूर्या ने केंद्र सरकार की मंत्रियों की बैठक का हवाला देते हुए कहा कि ओपन मार्केट सेल्स स्कीम को ख़त्म करने का फ़ैसला कर्नाटक के अनुरोध से पहले लिया गया था।
सूर्या के दावे के मुताबिक़, कर्नाटक सरकार के अनुरोध के चार दिन पहले इस बारे में फ़ैसला हो चुका था। इस फ़ैसले की वजह कीमतों में आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी को बताया है। सूर्या के मुताबिक इस मुद्दे पर पहली बैठक दो मई को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई थी।
वहीं दूसरी ओर कर्नाटक सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत केंद्र सरकार बीपीएल कार्ड होल्डरों को आपूर्ति के लिए राज्य सरकार को अनाज देने से इनकार नहीं कर सकती है।
इस विवाद का क्या असर होगा?
प्रोफ़ेसर पानी इस बात से सहमत हैं कि इस पूरे विवाद से केंद्र और राज्य के आपसी रिश्तों पर असर होगा। लेकिन वे एक दूसरी वजह की ओर भी इशारा करते हैं।
उन्होंने कहा, “चावल और गेहूं के उत्पादन में कमी देखने को मिली है। इस साल मानसून के भी सामान्य रहने की उम्मीद नहीं है। इसलिए अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी कोई जोख़िम नहीं लेना चाहते होंगे।”
लेकिन कर्नाटक कृषि मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन और अर्थशास्त्री प्रोफेसर टी प्रकाश कामाराडी इस तर्क से सहमत नहीं हैं।
वे कहते हैं, “चावल की कोई कमी नहीं है और अगले सीजन में गेहूं की बंपर फसल होने वाली है। इसलिए केंद्र सरकार, किसी राज्य के अनुरोध को इनकार नहीं कर सकती। वैसे भी हरित क्रांति के बाद किसी तरह के अनाज का संकट नहीं है। अगर बारिश असमान्य होती है तो इसका असर एक एकड़ से कम खेती करने वाले छोटे किसानों पर ही होगा।”
टी प्रकाश कामाराडी यह भी मानते हैं कि कर्नाटक सरकार को लोगों को चावल की पर्याप्त आपूर्ति करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, “नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद के मुताबिक एक व्यस्क को कम से 300 से 400 ग्राम अनाज चाहिए। इस हिसाब से राज्य सरकार को कम से कम 12 किलोग्राम चावल मुहैया कराना चाहिए।”
राजनीतिक विश्लेषक और जागरण लेकसाइड यूनिवर्सिटी, भोपाल के प्रो-वाइस चांसलर प्रोफेसर संदीप शास्त्री इस पूरे मामले पर कहते हैं, "राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की होड़ में केंद्र-राज्य संबंधों का आपसी समन्वय प्रभावित हो रहा है। पूरी प्रक्रिया बहुत अपारदर्शी है। अगर कोई पारदर्शी फॉर्मूला होता तो चुनाव से पहले ही हमें पता चल जाता कि कर्नाटक को चावल का कितना कोटा आवंटित किया जाएगा।''
हालांकि प्रोफेसर शास्त्री यह मानते हैं कि आज जो हो रहा है, वह कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा, "अतीत में भी, जिसने भी केंद्र में शासन किया, उसने यही किया है। यदि गठबंधन सरकार होती थी, तो वह उन पार्टियों का पक्ष लेती थी जो गठबंधन का हिस्सा थे।''