पश्चिम बंगाल चुनाव: क्या टर्निंग प्वाइंट साबित होगी ममता की चोट?

BBC Hindi

शनिवार, 13 मार्च 2021 (08:33 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
"दीदी हमेशा जुझारू रही हैं। उन पर पहली बार हमला नहीं हुआ है। लेकिन मुझे भरोसा है कि वे इससे उबर कर और ज़्यादा जोश के साथ मैदान में उतरेंगी।"---कोलकाता के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के वुडबर्न वार्ड में दाख़िल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हाल-चाल लेने दक्षिण 24-परगना के डायमंड हार्बर से पहुँचे बापन पात्र जब यह बात कहते हैं तो उनके समर्थन में कई और आवाज़ें उठ जाती हैं।
 
उसी ज़िले के नामख़ाना से आए अब्दुल शेख़ कहते हैं, "दीदी पर हमला हुआ है या यह एक हादसा है, इसका पता तो जाँच से चलेगा। लेकिन यह तो सच है कि उनको गंभीर चोटें आई हैं। दीदी जैसी नेता के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था।"
 
लेकिन दूसरी ओर, नंदीग्राम के जिस बिरुलिया इलाक़े में बुधवार शाम को ममता बनर्जी को चोट लगी वहां के कुछ लोग बदनामी और आरोपों की वजह से नाराज़ हैं।
 
एक स्थानीय दुकानदार शीर्षेंदु कुमार (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "बिना किसी ठोस सबूत के साज़िश और हमले का आरोप लगाना सही है। हम भला अपनी प्रिय नेता के ख़िलाफ़ साज़िश क्यों करेंगे? यह महज़ एक हादसा था।"
 
लेकिन क्या यह घटना मौजूदा विधानसभा चुनावों का टर्निंग प्वायंट साबित हो सकता है? इस सवाल पर ज़्यादा लोगों की राय हां में है। लेकिन फ़ायदा किसको होगा और किसको नुक़सान, इसपर तुंरत आकलन नहीं किया जा सकता।
 
फ़िलहाल लोगों की सहानुभूति ममता बनर्जी के साथ है। इससे एक जुझारू नेता और स्ट्रीट फ़ाइटर के तौर पर उनकी छवि और मज़बूत हुई है।
 
नंदीग्राम पर असर
लेकिन अगर जैसा कि लोग मानते हैं, इस घटना से ममता के प्रति सहनुभूति उमड़ती है तो दो पैमानों पर उसका विश्लेषण किया जा सकता है।
 
पहला है नंदीग्राम और उसके आसपास की वे सीटें जिनपर पहले और दूसरे चरण में मतदान होना है। इनमें पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया की सीटें शामिल हैं।
 
ख़ुद ममता जिस नंदीग्राम से मैदान में हैं वहां दूसरे चरण में पहली अप्रैल को मतदान होना है। ऐसे में न चाहते हुए भी प्लास्टर और व्हील चैयर के साथ मैदान में उतरना ममता और उनकी पर्टी की मजबूरी है। इसकी वजह यह है कि राज्य की तमाम सीटों पर वे पार्टी की अकेली स्टार प्रचारक हैं।
 
दूसरी ओर, बीजेपी के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे।पी।नड्डा से लेकर दिलीप घोष, शुभेंदु अधिकारी और मिथुन चक्रवर्ती जैसे नेताओँ की लंबी सूची है।
 
ममता ने मंगलवार को नंदीग्राम में रैली की थी। लेकिन उसके बाद शुभेंदु तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ कल से ही इलाक़े में हैं। उन्होंने शुक्रवार को नामांकन पत्र भी दाख़िल किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भी पूर्व मेदिनीपुर में रैलियां करनी हैं। मोदी 18 और 20 मार्च को बंगाल के दौरे पर आएंगे।
 
जहां तक नंदीग्राम के वोटरों का सवाल है वहां किसी ने अब तक अपनी मुठ्ठी नहीं खोली है। शायद चुनाव बाद की संभावित परिस्थिति से बचने के लिए कोई खुल कर किसी के बारे में चर्चा करने से बच रहा है। दो दिग्गजों के मैदान में उतरने से वहां लोगों में डर का माहौल है।

इलाक़े में क़रीब 30 फ़ीसद अल्पसंख्यक वोटर हैं और 70 फ़ीसद हिंदू। इनमें दलितों की भी ख़ासी आबादी है। वहां दोनों पार्टियां धार्मिक कार्यक्रमों और मंदिरों में पूजन दर्शन पर ज़्यादा ध्यान दे रही हैं। ख़ुद ममता ने भी बीजेपी के हिंदू कार्ड के मुक़ाबले के लिए ख़ुद को ब्राह्मण की बेटी बताया था और मंच से चंडीपाठ किया था।
 
लेफ़्ट-कांग्रेस गठजोड़ ने पहले यह सीट इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) को देने का फ़ैसला किया था। लेकिन अब सीपीएम यहां ख़ुद चुनाव लड़ेगी। इससे बीजेपी ख़ेमें में कुछ चिंता बढ़ी है। लेकिन शुभेंदु अधिकारी का दावा है कि यहां उनकी जीत तय है।
 
डॉक्टरों की राय में ममता को कम से कम दो सप्ताह तक व्हील चेयर पर रहना होगा। इससे उनकी गतिविधियों पर असर ज़रूर होगा। लेकिन बावजूद इसके उन्होंने इसी हालत में चुनाव अभियान पर निकलने की बात कही है।
 
टीएमसी प्रमुख ने उम्मीद जताई है कि वे दो-तीन दिनों के भीतर ही फ़ील्ड में उतर सकेंगी। बृहस्पितवार को जारी एक वीडियो संदेश में उनका कहना था, "पांव में शायद प्लास्टर रहेगा। लेकिन मैं मैनेज कर लूंगी। मैं एक भी मीटिंग रद्द नहीं करूंगी। लेकिन हो सकता है मुझे कुछ दिनों तक व्हील चेयर पर ही घूमना पड़े।"
 
ममता ने तो 13 मार्च से ही व्हील चेयर और पांव में प्लास्टर के साथ चुनाव अभियान पर निकलने की बात कही थी।
 
लेकिन टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी बताते हैं, "डॉक्टरों की सलाह पर तारीख़ एकाध दिन आगे बढ़ सकती है। इसका फ़ैसला अस्पताल से रिहाई के समय डॉक्टरों के निर्देश पर किया जाएगा। अगले पाँच दिनों में ममता को मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया ज़िलों में एक दर्जन चुनावी रैलियों को संबोधित करना है।"
 
पूर्व मेदिनीपुर जिले की नंदीग्राम सीट पर बुधवार शाम को नामंकन पत्र दाखिल करने के बाद शाम को एक मंदिर से वापस लौटते समय सड़क के दोनों और खडी भारी भीड़ के बीच अचानक कार का दरवाजा बंद होने की वजह से ममता को बाएं पैर, कंधे और गले में काफी चोट आई थी। उनको तत्काल ग्रीन कारीडोर के जरिए कोलकाता ले आकर एसएसकेएम अस्पताल में दाखिल कराया गया था। उस समय खुद ममता ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत चार-पांच बाहरी लोगों ने उनकी कार के दरवाजे को जबरन बंद कर दिया था जिससे वे घायल हो गई हैं।
 
पश्चिम बंगाल के मौजूदा चुनावों पर इस मामले का क्या असर होगा? कोलकाता में सेंटर फार स्टडीज इन सोशल साइंसेज के शैवाल कर का कहना है, "चुनावी नतीजों पर कितना असर होगा, इस बारे में तो अभी कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। लेकिन इस घटना ने राज्य में चुनावी तस्वीर का रुख जरूर बदल दिया है। बुधवार शाम से ही हर तरफ इसी मामले की चर्चा है। न सिर्फ बंगाल में, बल्कि पूरे देश में। इसका फायदा ममता को मिल सकता है।"

लेकिन राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीर कुमार पाल कहते हैं, "यह मामला एक दोधारी तलवार बन सकता है। अगर जांच में यह बात सामने आई कि यह महज एक हादसा था तो इसका उल्टा असर भी हो सकता है। चुनाव आयोग के रवैए से साफ है कि इस मामले का खुलासा शीघ्र हो जाएगा।"
 
जुझारू नेता की छवि
ये हमला है या हादसा, अभी इस पर कुछ भी पक्के तौर पर जाँच रिपोर्ट आने के बाद ही कहा जा सकता। लेकिन हमलों से जूझते हुए ही उनकी जुझारू नेता की जो मजबूत छवि बनी उसने उनको कांग्रेस अलग होकर नई पार्टी बनाने और मुख्य विपक्ष पार्टी के तौर पर टीएमसी को स्थापित कर 34 साल से जमी लेफ्ट की सरकार को उखाड़ कर सत्ता में पहुंचने का रास्ता बनाया था।

16 अगस्त 1990 को कोलकाता में घर के पास ही हाजरा मोड़ पर सीपीएम के युवा संगठन डीवाईएफआ के नेता लालू आलम ने लाठी के वार से उनका सिर फोड़ दिया था। सिर पर पट्टी बांधे सड़कों पर उथरीं ममता की उस छवि ने उनको घर-घर में लोकप्रिय बना दिया था।
 
उसके तीन साल बाद 1993 में एक मूक-बधिर बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने की मांग में उन्होंने राइटर्स बिल्डिंग में मुख्यमंत्री ज्योति बसु के आवास पर धऱना दिया था। उस समय पुलिसवालो ने उनको बाल पकड़ कर घसीट कर वहां से निकाला था और गिरफ्तार कर लालाबाजर ले गए थे।

टीएमसी के गठन के बाद भी उन पर खासकर लेफ्ट के मजबूत गढ़ रहे पश्चिम मेदिनीपुर जिले के चमकाईतला और केशपुर मेंहमले हो चुके हैं। उसी जिले में राजनीतिक हिंसा में पार्टी के 11 सदस्यो की हत्या के बाद छोटो आंगड़िया जाने पर ममता की कार पर देसी बम फेंका गया था। लेकिन वे बाल-बाल बच गई थीं।
 
वर्ष 2006 और 2007 में भी उन पर कई बार हमले हुए। सिंगुर में अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान पुलिसवालों ने उनको घसीटते हुए बीडीओ के दफ्तर के सामने से हटाया था। इन सभी घटनाओं ने एक नेता के तौर पर उन्हें स्थापित ही किया।
 
दुविधा में बीजेपी
वैसे, ममता के साथ असल में हुआ क्या था, यह तो शायद विस्तृत जांच के बाद ही सामने आए। लेकिन यह सही है कि उनको लगी चोटों ने बुधवार शाम से ही पश्चिम बंगाल में चुनाव अभियान की तस्वीर बदल दी है।
 
उससे पहले तक ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक लग रही बीजेपी अब इस घटना के बाद अपनी रणनीति में बदलाव पर विचार कर रही है।। यही वजह है कि बृहस्पतिवार से अब तक किसी भी नेता ने अपने प्रचार अभियान के दौरान ममता, उनकी पार्टी और भतीजे अभिषेक बनर्जी, तोलाबाजी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर एक शब्द तक नहीं कहा है। ममता के खिलाफ मैदान में उतरने वाले शुभेंदु अधिकारी कल से ही नंदीग्राम इलाके में हैं। लेकिन उन्होंने न तो इस घटना का जिक्र किया है और न ही टीएमसी का।
 
ममता को लगी चोट के बाद बीजेपी के प्रदेश नेताओं ने इसे एक सुर में नौटंकी करार दिया था। हालांकि ममता के साथ हुई घटना पर बीजेपी में दुविधा साफ नजर आ रही है।
 
घटना के अगले दिन शमीक भट्टाचार्य, तथागत राय औऱ लाकेट चटर्जी समेत कई नेता ममता से मुलाकात करने के लिए अस्पताल पहुंचे थे। लेकिन डाक्टरों ने ममता के स्वास्थ्य का हवाला देकर मिलने की अनुमति नहीं दी। अस्पताल पहुंचे बीजेपी के तमाम नेताओं ने जहां ममता के शीघ्र स्वास्थ होने की कामना की, वहीं प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दोहराया, "नंदीग्राम से बचने का कोई रास्ता नहीं देख कर ही ममता ने यह नाटक किया है। वे नंदीग्राम में भी हारेंगी और बंगाल में भी। खंभे से टकरा कर मुख्यमंत्री बीजेपी के माथे इसका दोष मढ़ रही हैं।"
 
दूसरी ओर, ममता के धुर विरोधी माने जाने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने भी ममता के साथ हुई घटना को पाखंड बताया था। उसके बाद ख़बरें आई कि अधीर को लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता की जिम्मेदारी से भी सामयिक तौर पर मुक्त कर दिया गया है। हालांकि कांग्रेस औऱ खुद अधीर ने चुनावी व्यस्तता को इसकी वजह बताया है। लेकिन पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलकों में इस फैसले को ममता के खिलाफ उनकी टिप्पणी से जोड़ कर देखा जा रहा है।
 
ममता के घायल होने की खबर सुनने के बाद से ही महानगर और आसपास के इलाकों से टीएमसी समर्थकों का एसएसकेएम अस्पताल के बाहर जमावड़ा लगा है। उन पर कथित हमले के विरोध में टीएमसी कार्यकर्ताओँ ने बृहस्पतिवार को राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया, हाइवे और रेल की पटरियों पर धरना देकर वाहनों और ट्रेनों की आवाजाही ठप कर दी। इसी वजह से ममता को अस्पताल से जारी वीडियो संदेश में टीएमसी के कार्यकर्ताओं-समर्थकों से संयत रहने की अपील करनी पड़ी।
 
ममता ने कहा है कि वे जल्दी ही मैदान में उतरेंगी। इस घटना के बाद बीजेपी और चुनाव आयोग के साथ बढ़ती तकरार अब बंगाल की राजनीति की चर्चा के केंद्र में आ गई है। दोनों राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडलों ने चुनाव आयोग से इस घटना की जांच की मांग की है ताकि हकीकत सामने आ सके।
 
पूरे मामले की जाँच जारी है
घटना के अगले दिन मौके पर पहुंचे पूर्व मेदिनीपुर जिले के पुलिस अधीक्षक प्रवीण प्रकाश ने पत्रकारों से कहा, "मौके पर भारी भीड़ थी और कोई साफ फुटेज भी उपलब्ध नहीं है। इसलिए फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि घटना की वजह क्या थी।" इस बीच राज्य गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया है कि एसपी ने पुलिस महानिदेशक को जो प्राथमिक रिपोर्ट भेजी है उसमें इसके हादसा होने का संकेत दिया गया है। लेकिन फ़िलहाल विस्तृत रिपोर्ट नहीं मिली है।
 
ममता की हालत कैसी है? एसएसकेएम अस्पताल के निदेशक मणिमय बनर्जी ने बृहस्पतवार शाम को बताया था, "उनके बाएं पांव की हड्डी में चोट है। साथ ही सोडियम का स्तर भी कम है। हम उनकी हालत की समीक्षा कर रहे हैं। उसके बाद ही उनको अस्पताल से छोड़ने के बारे में फैसला किया जाएगा। अभी कुछ और जांच की जाएगी।"

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