एनिमल फिल्म समीक्षा : रणबीर कपूर की शानदार एक्टिंग को नहीं मिला कहानी का साथ

समय ताम्रकर
Animal movie review उपनिषद के एक श्लोक में कहा गया है कि पिता-पुत्र का रिश्ता, तीर और कमान के रिश्ते जैसा है। पुत्र रूपी तीर प्रत्यंचा के तनाव से ही निशाने पर लगता है, लेकिन तीर प्रत्यंचा से दुश्मनी करे तो बात बिगड़ जाती है। फिल्म 'एनिमल' पिता-पुत्र के रिश्ते पर आधारित है और इस रिश्ते में तनाव है। 
 
रणविजय सिंह (रणबीर कपूर) अपने पिता बलवीर सिंह (अनिल कपूर) को बेहद चाहता है, लेकिन बचपन से ही उसे शिकायत है कि उसके पिता ने उसे कभी समय नहीं दिया और करोड़ों की लागत वाली अपनी कंपनी को खड़ा करने में ही लगे रहे। रणविजय का व्यवहार बेहद आक्रामक है। उसका मानना है कि वह अरबपति का बेटा है इसलिए जो चाहे वो कर सकता है क्योंकि यह उसका हक है। दूसरी ओर बलवीर को अपने बेटे में क्रिमिनल नजर आता है और उनका रिश्ता एक अजीब मोड़ ले लेता है। 
 
निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा ने 'कबीर सिंह' नामक हिंदी फिल्म इससे पहले बनाई थी। उस फिल्म के कथानक से कई लोग असहमत थे, लेकिन संदीप रेड्डी वांगा की मेकिंग ने सभी को प्रभावित किया। संदीप रेड्डी वंगा की फिल्मों के किरदारों की भावना बेहद त्रीव होती है। उनका रिएक्शन इतना वाइल्ड और चरम पर होता है कि दर्शकों को हिला देता है। एक्शन और बैकग्राउंड म्यूजिक के जरिये वे इसे और तीखा कर देते हैं।
 
'एनिमल' में रणविजय का किरदार कबीर सिंह का ही एक्सटेंशन नजर आता है। जिस तरह से कबीर सिंह आगे-पीछे देखे बिना त्वरित निर्णय लेता था, भावनाओं का ज्वार हमेशा उसमें बहता रहता था, उसकी आक्रामकता कब पागलपन का रूप ले लेती थी ये उसे खुद बता नहीं रहता था, यही झलक फिल्म 'एनिमल' में रणबीर कपूर के निभाए किरदार रणविजय में भी नजर आती है।  
 
'एनिमल' का लेखन, निर्देशन और एडिटिंग की जिम्मेदारी संदीप रेड्डी वंगा ने उठाई है। उन्होंने कैरेक्टर ड्रिवन मूवी लिखी है। सारा फोकस रणबीर के किरदार रणविजय पर किया है। हर सिचुएशन में रणविजय किस तरह से रिएक्ट करता है इसके जरिये उन्होंने दर्शकों को भावनाओं में बहाने की कोशिश की है।
 
स्कूली छात्र के रूप में ही रणविजय अपनी बहन को छेड़ने वाले को धमकाने के लिए कॉलेज में गन लेकर पहुंच जाता है। इस सीन के जरिये दिखाया गया है कि रणविजय अपने परिवार वालों को कितना चाहता है और उनको नुकसान पहुंचाने वालों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। परिवार पर आंच आती है तो उसे बदला लेने के सिवाय कुछ नजर नहीं आता। 
 
लेकिन अपने इस किरदार को उभारने में निर्देशक इतना खो गए कि फिल्म में कहानी के नाम पर कुछ नहीं मिलता। इंटरवल तक तक आप रणविजय की हरकतों को देख अचंभित हो सकते हैं क्योंकि उसकी अनिश्चितता (unpredictability) ही यहां पर स्कोरिंग पाइंट्स है, हालांकि कहानी बिलकुल भी आगे नहीं बढ़ती। लेकिन इस हाफ में कुछ अच्छे सीन देखने को मिलते हैं। रणविजय की जुनून से भरी कुछ हरकते अच्छी लगती हैं। इंटरवल के ठीक पहले 18 मिनट का एक्शन सीन जबरदस्त है। 
 
इंटरवल के बाद फिल्म का ग्राफ नीचे आ जाता है। कहानी एक लूप में चलती है और दिशा भटक जाती है। कुछ ऐसे किरदार और सीन आते हैं जो फिल्म में कुछ जोड़ते नहीं हैं। कुछ दृश्य तो हद से ज्यादा लंबे हो गए हैं। ऐसा लगता है कि अब फिल्ममेकर के पास देने के लिए नया नहीं है। क्लाइमैक्स अच्छा है, लेकिन शानदार नहीं। विदेशी धरती पर जाकर जिस कदर रणविजय खूनखराबा मचाता है वो स्वाभाविक नहीं लगता।
 
रणविजय के पिता पर हमले वाला ट्रैक खोखला लगता है क्योंकि यहां पर भी कुछ ठोस दिखाने के बजाय इस इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया गया है कि रणविजय इस घटना से 'पागल' सा हो गया है और उसे हर समस्या का जवाब सिर्फ हिंसा ही नजर आता है। फिल्म पर 'गॉडफादर' का भी प्रभाव नजर आता है।  
 
संदीप को कबीर सिंह के हैंगओवर से बाहर आना होगा। 'एनिमल' में रणविजय का किरदार बार-बार कबीर की याद दिलाता है और 'एनिमल' कबीर सिंह की ही कहानी लगती है। 
 
संदीप रेड्डी वंगा लेखक के बजाय निर्देशक बेहतर साबित हुए। उनका मेकिंग और प्रस्तुतिकरण ही फिल्म से कुछ हद तक दर्शकों को जोड़े रखता है। फिल्म में हिंसा का बोलबाला है, लेकिन ड्रामैटिक सीन भी खूब है और किरदारों के व्यवहार और बोलचाल में भी हिंसा महसूस की जा सकती है। एक्शन सीन में भी गाने और इमोशन डालकर उन्होंने हर बात को अंडरलाइन करने की कोशिश की है। 
 
संदीप ने फिल्म की एडिटिंग भी की है और अपने काम से उन्हें इतना ज्यादा प्यार हो गया है कि वे दृश्यों को छोटा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। 203 मिनट की लंबाई ज्यादा हो गई है और फिल्म को आसानी से 45 मिनट कम किया जा सकता था। 
 
फिल्म में गानों की भी भरमार है और कुछ सुनने में अच्छे हैं। सिनेमाटोग्राफी, प्रोडक्शन, बैकग्राउंड म्य‍ूजिक शानदार है। फिल्म में कहीं-कहीं बैकग्राउंड म्यूजिक इतना लाउड हो गया है कि कलाकारों द्वारा बोले गए संवाद सुनाई नहीं देते।  
 
रणबीर कपूर की एक्टिंग इस फिल्म का हासिल है। उन्होंने अपने किरदार को इस तरह से जिया है कि लगता ही नहीं वे एक्टिंग कर रहे हैं। रणविजय के अंदर के 'एनिमल' को उन्होंने बाहर निकाल कर रख दिया है। किरदार की बेशर्मी और एटीट्यूड उनकी एक्टिंग में उभर कर सामने आती है। एक्शन में भी वे जमे हैं और इस फिल्म के बाद उनकी फैन फॉलोइंग में इजाफा होना है। 
 
अनिल कपूर मंझे हुए कलाकार हैं और उन्होंने अपने कैरेक्टर को एक्टिंग के जरिये गहराई दी है। रश्मिका मंदाना को ज्यादा करने को कुछ नहीं था। जिस सीन में उन्हें मौका मिला उसमें उन्होंने संवाद इस तरह से बोले कि उनमें से ज्यादातर समझ ही नहीं आते। रश्मिका की एक्टिंग एवरेज है। बॉबी देओल ने यह किरदार निभाने के लिए हां कैसे कह दिया? बहुत ही कम स्क्रीन टाइम उन्हें मिला। 
 
'एनिमल' में रणबीर अपनी एक्टिंग के दम पर दर्शकों को एंगेज रखते हैं, लेकिन बढ़िया कहानी का साथ मिलता तो उनके प्रयास में चार चांद लग जाते। 

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