धोखा राउंड द कॉर्नर: फिल्म समीक्षा

शनिवार, 24 सितम्बर 2022 (14:10 IST)
धोखा राउंड द कॉर्नर उन फिल्मों में से है जिसे दस मिनट देखने के बाद ही आप समझ जाते हैं कि आपके साथ धोखा हुआ है। फिल्म की शुरुआत ही बता देती है कि अंजाम कैसा होने वाला है। कहने को तो यह सस्पेंस थ्रिलर है, लेकिन एक्टिंग, डायरेक्शन, डायलॉग पर आप हंस जरूर सकते हैं। 
 
यथार्थ सिन्हा (आर माधवन) और उनकी पत्नी सांची (खुशाली कुमार) की रिलेशनशिप बदतर है। एक दिन हक गुल (अपारशक्ति खुराना) नामक आतंकवादी पुलिस से भाग कर सांची के घर में घुस जाता है। उस समय यथार्थ घर से बाहर है। सांची को पकड़ हक गुल कुछ डिमांड करता है जिसके लिए पुलिस इंस्पेक्टर मलिक (दर्शन कुमार) राजी नहीं है। 
 
कुछ टर्न्स और ट्विस्ट के साथ फिल्म को खत्म किया गया है और आगे क्या होने वाला है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, इसको लेकर दर्शकों में मतभेद हो सकता है, लेकिन जल्दी ही यह मजा खत्म हो जाता है क्योंकि जिस तरह से कहानी को परदे पर दिखाया गया है वो बेहद बोरिंग है। 
 
बिना किरदारों को स्थापित किए सीधे फिल्म शुरू कर दी गई जिससे दर्शकों पर फिल्म पकड़ ही नहीं बना पाती। क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है जैसी बातों के बारे में जल्दी ही दर्शक सोचना बंद कर देते हैं।  
 
फिल्म हर डिपार्टमेंट में कमजोर है। यह फिल्म किसी तरह का टेंशन या सस्पेंस पैदा ही नहीं कर पाती। लेखन में कई बेसिक गलतियां हैं। कई ऐसे क्षण आते हैं जब दर्शक सोचते हैं कि पुलिस को ऐसा करना चाहिए या आतंकवादी को वैसा करना चाहिए, लेकिन ये किरदार कुछ नहीं करते हैं। 
 
कुकी गुलाटी ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है, लेकिन दोनों में से कौन सा काम ज्यादा बुरा है कहना मुश्किल है। उनका निर्देशन बिखरा हुआ है और कहीं भी उनकी उपस्थिति महसूस नहीं होती। 
 
आर माधवन ने अधूरे मन से काम किया है और यह बात कई दृश्यों में नजर आती है। खुशाली कुमार एक ही एक्सप्रेशन में नजर आईं। उन्हें डायलॉग डिलीवरी पर मेहनत की जरूरत है। दर्शन कुमार भी फीके रहे। अपारशक्ति खुराना ने ही मन लगा कर काम किया है। तकनीकी रूप से भी फिल्म औसत है। 
 
कुल मिलाकर धोखा देख कर दर्शकों को महसूस होता है कि उनके साथ ही धोखा हुआ है। 
 

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