सिनेमाघरों में इस समय इक्का-दुक्का फिल्में ही रिलीज हो रही हैं और इस सप्ताह किआरा आडवाणी की इंदू की जवानी रिलीज हुई। स्टोरी लाइन तो ठीक-ठाक है, लेकिन फिल्म इतनी कमजोर बनी है कि झेलना मुश्किल हो जाता है। खासतौर पर दूसरा हाफ तो बर्दाश्त के बाहर है। दुर्गामति में अशोक ने अपनी ही लिखी कहानी का कबाड़ा किया था और इंदू की जवानी में यह काम अबीर सेनगुप्ता ने किया है।
गाजियाबाद में रहने वाली इंदू (किआरा आडवाणी) एअर होस्टेस बनना चाहती है। सतीश (राघव राज कक्कड़) उसका बॉयफ्रेंड है जो इंदू के साथ सिर्फ शारीरिक संबंध बनाना चाहता है। इंदू का मानना है कि शादी के पहले यह ठीक नहीं है और इसी को लेकर दोनों में ब्रेकअप हो जाता है।
इंदू की दोस्त सोनल (मल्लिका दुआ) उसे डेटिंग एप्प के बारे में बताती है और इंदू की मुलाकात इस एप्प के जरिये समर (आदित्य सील) से होती है। समर पाकिस्तानी निकलता है और इंदू उसे पाकिस्तानी आतंकवादी समझ लेती है।
इस कहानी पर लिखा स्क्रीनप्ले इतना घटिया है कि दर्शकों का इम्तिहान लेता है। खासतौर पर इंटरवल के बाद तो फिल्म पटरी से ही उतर जाती है। एक के बाद एक इतने बचकाने सीन कॉमेडी के नाम पर परोसे गए हैं कि दिमाग घर पर रख कर आओ तो भी हंसी नहीं आए।
इंदू का किरदार भी ठीक से नहीं लिखा गया है। कभी उसे ऐसी लड़की बताया गया है जो सेक्स को लेकर ज्यादा जानती नहीं है तो दूसरी ओर उसे इतना आधुनिक बताया गया है कि वह एअर होस्टेस बनना चाहती है। समझ में ही नहीं आता कि वह गांव में रह रही है या शहर में? कुल मिलाकर लेखक ने अपनी सहूलियत के हिसाब से सीन बना लिए हैं।
भारत-पाकिस्तान के रिश्ते को लेकर जो हो-हल्ला मचाया गया है वो बिलकुल भी नहीं जमता। पाकिस्तान को कोस कर भारतीय दर्शकों को खुश करने की कोशिश की गई है, लेकिन यह थोपी हुई लगती है।
कॉमेडी के नाम पर जो हरकत की गई है उसे देख हंसी नहीं बल्कि गुस्सा आता है। समझ ही नहीं आता कि इस तरह की फिल्में आखिर किसलिए बनाई गई है। गाने बिना सिचुएशन के डाले गए हैं।
अबीर सेनगुप्ता का निर्देशन लेखन के अनुरूप ही कमजोर है। कॉमेडी फिल्म बनाना आसान बात नहीं है और इसमें अबीर बुरी तरह असफल रहे हैं।
किआरा आडवाणी ने जो दर्शक 'कबीर सिंह' और 'गुड न्यूज' से कमाए थे वो 'इंदू की जवानी' से गंवा सकती हैं। उनका अभिनय बहुत खराब है। आदित्य सील कहीं से भी हीरो नहीं लगते। मल्लिका दुआ, राघव राज कक्कड़ और शिवम कक्कड़ ही थोड़ा हंसाने में सफल रहे हैं।
कुल मिलाकर इंदू की जवानी में एक भी ऐसी बात नहीं है कि कोरोनाकाल में जोखिम उठाकर सिनेमाघर का टिकट खरीदा जाए।