फिल्म में कहा गया है कि कस्टमर बेवकूफ (हालांकि फिल्म में इससे भी बुरा शब्द है) होता है और उसे क्या बेचना है यह हम डिसाइड करते हैं। मेड इन चाइना देख यह बात महसूस होती है कि क्या इसके मेकर्स ने भी यही बात ध्यान में रख कर फिल्म बनाई है? वैसे भी चाइना के माल पर लोग भरोसा कम करते हैं और यहां तो नाम ही मेड इन चाइना है।
मेड इन चाइना के साथ दिक्कत यह है कि माहौल तो खूब बना दिया गया, लेकिन वैसी चीज दी नहीं गई। पैकेजिंग अच्छा है, लेकिन पैकेजिंग की तुलना में माल कमतर है।
कहानी है रघु (राजकुमार राव) की जो कि अहमदाबाद में रहता है। कई धंधे बदल चुका है, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अपनी पत्नी रुक्मिणी (मौनी रॉय) को वह बेहद चाहता है। कुछ नया आइडिया मिल जाए इस सोच के साथ वह अपने भाई के साथ चीन जाता है, जहां उसकी मुलाकात एक चीनी व्यवसायी और तन्मय शाह (परेश रावल) से होती है।
रघु को मंत्र मिलता है कि अमेरिकी पुरुष हमेशा पैसे को लेकर सोचते रहते हैं तो भारतीय पुरुष सेक्स के दिमाग में सेक्स की बातें कौंधती रहती हैं। वह एक सूप बनाता है जो पौरुष शक्ति वर्धक है। इस सूप की वह डॉक्टर वर्धी (बोमन ईरानी) के साथ मार्केटिंग करता है और उन्हें जबरदस्त कामयाबी मिलती है, लेकिन परेशानी तब आ खड़ी होती है जब भारत की यात्रा पर आए एक चीनी नेता की सूप पीने से मृत्यु हो जाती है।
फिल्म में दो बातों को जोड़ा गया है। एक तो मार्केटिंग के जरिये आप कुछ भी बेच सकते हैं बस बेचना आना चाहिए। खरीददार मौजूद हैं। फिल्म दर्शाती है कि पृथ्वी पर मुफ्त में पानी बह रहा है फिर भी लोग पानी बेचने का धंधा कर रहे हैं। दूसरी बात सेक्स को लेकर है किअभी भी भारतीयों के दिमाग अभी सेक्स को लेकर स्पष्ट नहीं है। वे खुल कर इस बारे में बात नहीं करते हैं।
नि:संदेह आइडिए अच्छे हैं, लेकिन जिस तरह से स्क्रीन प्ले लिखा गया है और कहानी को पेश किया गया है वो दमदार नहीं है। कहने को तो फिल्म दो घंटे दस मिनट की है लेकिन इतनी लंबी लगती है कि ऊब होने लगती है।
फिल्म में कई गैरजरूरी बातें हैं जिनका कहानी से कोई लेना-देना नहीं है। रघु की चीन यात्रा बहुत खींची गई है। वहां पर एक लड़की से मिलना, रघु का अपने बच्चे की स्कूल में जाना वाले प्रसंग फिल्म के लिए बहुत जरूरी नहीं थे।
इसी तरह सूप पीने से एक चीनी की मृत्यु हो जाने वाले मामले को फिल्म में बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया है, लेकिन अंत में कुछ हासिल नहीं होता। निराशा ही हाथ लगती है।
सूप के बिज़नेस की बात रघु अपनी पत्नी से छुपाता क्यों है, ये समझ के परे है जबकि उसकी पत्नी बहुत मॉडर्न है। सेक्स को लेकर खुल के बातें करती हैं। रघु के साथ सिगरेट और शराब पीती है। जब भेद खुल जाता है तो उसकी नाराजगी पर भी सवाल खड़े होते हैं?
रघु और डॉक्टर वर्धी से पूछताछ वाले दृश्यों को ठीक से नहीं लिखा गया है। जब वे यह बताते हैं कि सूप में क्या मिलाते हैं तो पूछताछ कमेटी के सदस्य इस बात से नाराज हो जाते हैं कि वे सेक्स के बारे में क्यों बातें कर रहे हैं? अब इसमें वर्धी की क्या गलती है?
फिल्म में कुछ मजेदार सीन भी हैं जैसे डॉ. वर्धी सेक्स को लेकर सवाल-जवाब करने वाले लोगों के बजाय टीचर-पैरेंट्स मीटिंग में चला जाता है। वहां पर लोग उससे बच्चों के बारे में सवाल पूछते हैं और वह सेक्स को लेकर जवाब देता है और यह बात समझने में काफी देर लगती है कि मामला गड़बड़ है।
रघु और उसकी पत्नी का रिश्ता फिल्म में खूबसूरती के साथ पिरोया गया है और इस रोमांस को और फुटेज दिया जा सकता था।
फिल्म का निर्देशन मिखिल मुसाले ने किया है जिनकी बनाई गई गुजराती फिल्म रांग साइड राजू को सर्वश्रेष्ठ गुजराती फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। मिखिल ने कहानी को रियलिस्टिक टच दिया है, कलाकारों से अच्छा काम लिया है, लेकिन लेखन की गड़बड़ी का असर उनके निर्देशन पर भी हुआ है। फिल्म कई बार दिशा भटक जाती है। जो बात वे कहना चाहते थे वो वे ठीक से कह नहीं पाए।
राजकुमार राव शानदार कलाकार हैं और उन्होंने इस फिल्म में भी बढ़िया एक्टिंग की है। रघु के किरदार को उन्होंने सहजता के साथ स्क्रीन पर उतारा है। मौनी रॉय खूबसूरत लगी हैं। हालांकि उन्हें ज्यादा अवसर नहीं मिले हैं, लेकिन उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है। बोमन ईरानी अपने अभिनय से फिल्म का स्तर ऊपर उठाते हैं। परेश रावल, सुमित व्यास, गजराज राव छोटे-छोटे रोल में असर छोड़ते हैं।
मूवी मेड इन चाइना कहना बहुत कुछ चाहती है, लेकिन कह नहीं पाती है।