अनुभूतियों और संवेदनाओं का केन्द्र मनुष्य का मस्तिष्क है। सुख-दुःख का, कष्ट-आनंद का, सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है तथा मस्तिष्क ही प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने के जोड़-तोड़ बिठाता हैं। कई व्यक्ति इन समस्याओं से घबरा कर अपना जीवन ही नष्ट कर डालते है, परन्तु अधिकांश व्यक्ति जीवन से पलायन करने के लिए कुछ ऐसे उपाय अपनाता है, जैसे शतुरमुर्ग आसन्न संकट को देखकर अपना सिर रेत में छुपा लेता है। इस तरह की पलायनवादी प्रवृतियों में मुख्य है मादक द्रव्यों की शरण में जाना। शराब, गांजा, भांग, चरस, अफीम, ताडी़ आदि नशे वास्तविक जीवन से पलायन करने की इसी मनोवृत्ति के परिचायक है। लोग इनकी शरण में या तो जीवन की समस्याओं से घबरा कर जाते है अथवा अपने संगी-साथियों को देखकर इन्हें अपना कर पहले से ही अपना मनोबल चौपट कर लेते है।
मादक द्रव्यों के प्रभाव से वह अपनी अनुभूतियों, संवेदनाओं तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझ-बूझ और सोचने-विचारने की क्षमता भी खो देता है। मादक द्रव्य इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वाले को तत्काल ही अपने आसपास की दुनिया से काट देते है और उसे विक्षिप्त कर देते है।
दो उदाहरण जो मादक द्रव्यों के प्रभाव एवं उनकी विध्वंसता को दर्शाते हैं :-
1. कैलिफोर्नियां के एक एल॰एस॰डी॰ प्रेमी को नशे की झोंक में यह सनक सवार हो गई कि वह पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकता है। इसी सनक को पूरा कर दिखाने के लिए वह एक इमारत की दसवी मंजिल पर चढ़ा और वहां से कूद पडा़ और मौत का शिकार बन गया।
2. एक होस्टल में रह रहे दूसरे विद्यार्थी को नशे में यह विभ्रम हो गया कि वह अपने आकार से दुगुना हो गया है और उसके पैर छह फुट लंबे हो गए हैं। छह फुट लंबे पैर से उसने पास वाली मंजिल पर कूदने के लिए उसी अंदाज से छलांग लगाई और वह आठ मंजिल से नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
कोई भी ऐसी वस्तु जिसकी मांग हमारा मस्तिष्क करता है किंतु उससे शरीर का नुकसान हो नशा कहलाता है। मानसिक स्थिति को उत्तेजित करने वाले रसायन जो नींद, नशे या विभ्रम की हालत में शरीर को ले जाते हैं वो ड्रग्स या मादक दवाएं कहलाती है।
नशे को दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. पारंपरिक नशा- इसके अंतर्गत तम्बाकू , अफीम, भुक्की, खैनी, सुल्फा एवं शराब आते हैं या इनसे निर्मित विभिन्न प्रकार के पदार्थ।
2. सिंथेटिक ड्रग्स- इसके अंतर्गत स्मैक, हेरोइन, आइस, कोकीन, क्रेक कोकीन, LSD, मारिजुआना,एक्टेक्सी, सिलोसाइविन मशरूम, फेनसिलेडाईन मोमोटिल, पारवनस्पास, कफसिरप आदि मादक दवाएं आती हैं।
मादक दवाओं के गुण एवं प्रभाव :-
मादक दवाओं को 5 भागों में बांटा गया है- Tranquilizers, Anti psychotics, Antidepressants और Psychostimulants इनके अधिक सेवन से मस्तिष्क विकृत हो जाता है। इनको अधिक मात्रा में लेने से व्यक्ति इनका आदि हो जाता है जिससे उसे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
1. कोकीन :- यह ट्रोपेन एलकालाइड है इसको सूंघ कर एवं धूम्रपान कर नशा किया जाता है। यह मानसिक स्थिति को विभ्रम करता है। यह ह्रदय की गति को तेज कर उच्च रक्तचाप बढ़ाता है। इसमें नशा लेने वाले को आनंद की अनभूति होती है। एक ग्राम के आठवें हिस्से की कीमत चार हजार रुपए है।
2. मेथामेप्टामाइन :- यह साइकोस्टूमेलेन्ट है, इसे मैथ या आइस भी कहते हैं। इसको धूम्रपान से या इंजेक्ट कर लिया जाता है। इसको लेने से शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होती है एवं आनंद का अनुभव होता है। इसको लेने से अवसाद, उच्च रक्तचाप एवं नपुंसकता होती है।
3. क्रेक कोकीन :- इससे पूरा स्नायु तंत्र प्रभावित होता है एवं हृदय को नुकसान पहुंचता है। हृदय गति बढ़ जाती है। धमनियां सुकड़ जाती है। इसके नशे का आदि अपराधी प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होता है। इसको लेने से अवसाद, अकेलापन एवं असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। क्रेक कोकीन के नशे का आदि व्यक्ति को गलतफहमी होती है की वह बहुत ताकतवर है।
4. एलएसडी (LSD ):- यह लाइसर्जिक अम्ल से बनती है जो अरगट (ERGOT) में पाया जाता है। यह गोलियों के रूप में मिलती है। इसका नशा लेने से व्यक्ति का मस्तिष्क अत्यंत क्रियाशील हो जाता है। करीब 30 से 90 मिनिट बाद इसका प्रभाव शुरू होता है। इस मादक द्रव्य को लेने से व्यक्ति के भाव तेजी से बदलने लगते है। अधिक मात्रा में लेने से व्यक्ति के समक्ष काल्पनिक विभ्रम पैदा होते हैं, जिससे उसे आनंद की अनुभूति होती है। इसको लेना वाला नशेड़ी अवसाद ग्रस्त, वस्तुओं के आकार एवं रंग में भ्रमित एवं मधुमेह व उच्च रक्तचाप का रोगी हो सकता है। एक बार के नशे में करीब 10 से 12 घंटे तक असर रहता है।
5. हेरोइन:- यह डायएसिटिल ईस्टर (Diacetyle Ester) है एवं मॉर्फिन से बनता है। यह नशा शीघ्र प्रभाव देने वाला होता है। यह नशा व्यक्ति के श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालता है। इस नशे को लेने वाले को निमोनिया होने की तीव्र सम्भावना होती है। इसके प्रभाव से धमनियों में थक्का जमने लगता है एवं फेफड़े, लिवर व किड़नी खराब हो सकते हैं। इसको नशे के आदि ग्लास टूब से धुंए के रूप में लेते हैं।
6. मारिजुआना:- टेट्रा हाइड्रो कैनाबिनोलिक एसिड (THCA) है जो कि केनिबस पौधे से प्राप्त किया जाता है। यह एक खतरनाक नशा है एवं प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसको धूम्रपान के रूप में लिया जाता है, इसे हशीश भी कहते हैं। इस नशे को लेने वाले व्यक्ति की आंखे लाल रहती हैं, नींद बहुत आती है, वह अकेला रहने लगता है, सहयोग की भावना खत्म हो जाती है। यह नाश भ्रम उत्पन्न करता है, जिससे व्यक्ति निर्णय नहीं ले पाता है एवं अनावश्यक बातें करता है। समय को सही नहीं पढ़ पाता है।
7. एक्टेसी (Ecstasy):- इसे MDMA भी कहते हैं। यह 3,4-Methylenedioxy-N-Methylamphetamine) है। यह उत्तेजना पैदा करने वाली दवा है। इससे शरीर का तापमान इतना बढ़ जाता है कि शरीर के अंग जैसे किड़नी, हृदय काम करना बंद कर सकते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति हर उस वास्तु को छूने की कोशिश करता है जो उसे आनंद प्रदान करें। उसके प्रभाव से मांसपेशियों में खिंचाव, उत्तेजना एवं भ्रम पैदा होता है।
नशे के आदि होने के कारण :-
मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक सभ्यताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसमें व्यक्ति यांत्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड़ में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगों का भी ध्यान नहीं रहता है। नशा एक अभिशाप है, एक ऐसी बुराई जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत के आगोश में चला जाता है एवं उसका परिवार बिखर जाता है। व्यक्ति के नशे के आदि होने के कई कारण हो सकते हैं। यह कारण व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य कारण अधोलिखित हैं।
➧ माता-पिता की अति व्यस्तता बच्चों में अकेलापन भर देती है। माता-पिता के प्यार से वंचित होने पर वह नशा की ओर मुड़ जाता है। परिवार में कलह का वातावरण व्यक्ति को नशे की ओर ढकेल देता है।
➧ मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण व्यक्ति नशे की आदत डाल लेता है, यह मानसिक परेशानी पारिवारिक, आर्थिक एवं सामाजिक हो सकती है।
➧बेरोजगारी नशा की ओर उन्मुख होने का एक प्रमुख कारण है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। दिनभर घर में खाली एवं बेरोजगार बैठे रहने से व्यक्ति हीनभावना एवं ऊब का शिकार होता है एवं इस हीनभावना व ऊब को मिटाने के लिए वह नशे का सहारा लेने लगता है।
➧ शारीरिक कमजोरी व पढ़ने में कमजोर होने के कारण बच्चे उस कमी को पूरा करने के लिए नशे का सहारा लेने लगते हैं।
➧जो व्यक्ति तनाव, अवसाद एवं मानसिक बीमारी से पीड़ित है वो नशे का आदि हो जाता है।
➧परिवार के व्यक्ति, दोस्त एवं अपने आदर्श व्यक्ति को नशा लेते देखकर युवा नशे का शिकार होते हैं।
➧अकेलापन नशे को निमंत्रित करता है।
➧लोग ये सोच कर नशा लेते हैं कि नशा तनाव को दूर करता है।
➧किसी दूसरे की दवा को स्वयं पर आजमाने से व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है। चोट या दर्द की वजह से डॉक्टर दवा लिखता है, जिससे आराम मिलता है। जब भी चोट लगती है या दर्द होता है वो वह दवा बार-बार लेने लगता है जिससे वह नशे का आदि हो जाता है।
➧पुरानी दुखद घटनाओं को भूलने के लिए लोग नशे का सहारा लेते हैं।
➧लोग सोचते हैं की ड्रग्स लेने से वह फिट एवं तंदुरूस्त रहेंगे विशेष कर खिलाड़ी, इसी कारण मादक द्रव्यों की चपेट में आ जाते हैं।
➧ बच्चों में अत्यंत भेदभाव करने पर वो हीनभावना से ग्रसित हो जाते है एवं विद्रोह स्वरूप नशे की ओर मुड़ जाते हैं।
➧पत्र-पत्रिकाओं एवं टेलीविजन पर तम्बाकू एवं शराब के विज्ञापनों से प्रभावित होकर बच्चे एवं युवा इनका प्रयोग शुरू कर देते हैं।
भयावह आंकड़े :-
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बहुत ही चौंकाने वाली है। भारत का युवा एवं बचपन किस तरह से नशे का शिकार हो रहा है इनकी बानगी इन आंकड़ों से स्पष्ट झलकती है।
1. भारत में तम्बाकू के द्रव्यों का सेवन करने वालों में खैनी का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। करीब 13 % लोग इसका सेवन करते हैं।
2. 2009-10 के ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (विश्व वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण) के मुताबिक भारत में तब 12 करोड़ लोग तम्बाकू का सेवन कर रहे थे।
3. तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर 2011 में भारत में 1,04,500 करोड़ रुपए खर्च हुए।
4. एक सिगरेट आपकी जिंदगी के 9 मिनट पी जाती है।
5. तम्बाकू की एक पीक आपकी जिंदगी के तीन मिनट काम कर देती है।
6. हर 7 सेकंड में तम्बाकू एवं अन्य मादक द्रव्यों से एक मौत होती है।
8. भारत में हर साल 10.5 लाख मौतें तम्बाकू के पदार्थों के सेवन से होती हैं।
9. 90 % फेफड़े का कैंसर ,50 % ब्रोन्काइटस एवं 25 % घातक ह्रदय रोगों का कारण धूम्रपान है।
10. ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में नशे का सेवन करने वाले महिला-पुरुष के आंकड़े।
नशे का प्रकार
पुरुष
महिला
ग्रामीण
शहरी
कुल
तम्बाकू खाने वाले
47.9%
20.3%
38.4%
25.3%
34.6%
सिगरेट एवं बीड़ी पीने वाले
18.3%
2.4%
11.6%
8.4%
10.7%
खैनी
19%
4.7%
9.6%
4.5%
13.1%
गुटखा
12.1%
2.9%
5.3%
8.4%
9.5%
लिंग
तम्बाकू खाने वाले
तम्बाकू पीने वाले
दोनों प्रकार का नशा करने वाले
पुरुष
23.6
15.6
9.3
महिला
17.3
1.9
1.1
नशा और अपराध :-
अपराध ब्यूरो रिकार्ड के अनुसार, बडे़-छोटे अपराधों, बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, राहजनी आदि तमाम तरह की वारदातों में नशे के सेवन का मामला लगभग 73. 5 % तक है और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में तो ये दर 87 % तक पहुंची हुई है। अपराधजगत की क्रियाकलापों पर गहन नजर रखने वाले मनोविज्ञानी बताते हैं कि अपराध करने के लिए जिस उत्तेजना, मानसिक उद्वेग और दिमागी तनाव की जरूरत होती है उसकी पूर्ति ये नशा करता है। जिसका सेवन मस्तिष्क के लिए एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है।
2014 में नारकोटिक्स ड्रग्स एक्ट (NDPS ) के तहत 43290 केस दर्ज किए गए, जिसमे सबसे अधिक पंजाब में 16821, उत्तरप्रदेश में 6180, महाराष्ट्र में 5989, तमिलनाडु में 1812 , राजस्थान में 1337, मध्यप्रदेश में 1027 तथा सबसे कम गुजरात में 73, गोवा में 61 तथा सिक्किम में 10 केस दर्ज किए गए।
पुनर्वास एवं उपचार :-
नशे की लत वाले व्यक्ति को विभिन्न स्तरों पर उपचार की आवश्यकता होती है। इसके लिए निपुण चिकित्सक की देखरेख में उपचार जरूरी है। अधिकांश इलाज लोगों को नशे के सेवन को बंद करने में मदद करने पर केन्द्रित हैं, जिसके बाद उन्हें नशा के प्रयोग पर पुनः लौटने से रोकने में उनकी मदद करने के लिए जीवन प्रशिक्षण/या सामाजिक समर्थन की आवश्यकता होती है।
कुछ विधियां निम्नानुसार हैं :-
1. विषहरण एवं औषधीय तरीके से उपचार (DETOXIFICATION )-यह उपचार का प्रारंभिक स्तर है। इसमें नशे के परिणामों को कम करने के लिए दूसरी दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसमें नशीले पदार्थों का प्रतिस्थापन दवाओं से किया जाता है। यह कठिन एवं कष्टदायक होता एवं इस स्तर पर रोगी की नशा की ओर वापसी संभव होती है, अतः इसका प्रबंधन बहुत सतर्कता से किया जाना चाहिए। दवा उपचार, अनुकूलन और मनोवैज्ञानिक सहायता के बिना संभव नहीं है।
2. बहुत ही गंभीर नशे के बीमार व्यक्ति को लंबे आवासीय उपचार की जरूरत पड़ती है। इसमें रोगी को 24 घंटे चिकित्सक की निगरानी में रखा जाता है। इसमें 8 से 12 माह लगातार सामाजिक, पारिवारिक एवं मानसिक स्तरों पर चिकित्सक उपचार करते हैं। छोटा आवासीय उपचार में रोगी करीब 3 से 6 सप्ताह तक चिकित्सक की निगरानी में रहता है।
3. बाह्य रोगी उपचार :- यह उपचार रोगी की स्थिति एवं मादक द्रव्य के असर पर निर्भर करता है। यह उपचार समूह या व्यक्तिगत रूप से दिया जाता है। इसमें रोगी को आंशिक रूप से अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है।
4. व्यक्तिगत परामर्श :- व्यक्तिगत परामर्श उपचार में रोगी के सम्पूर्ण इतिहास पर परामर्श दिया जाता है। रोगी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, रोजगार, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के बारे में गहन अध्ययन कर चिकित्सक उसके योग्य उचित सलाह एवं इलाज का परामर्श देते हैं। परामर्शदाता सप्ताह में एक दिन कुल 12 सप्ताह तक रोगी को नशे से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
अन्य उपचार जो कि व्यक्ति के नशे की लत के स्तर पर चिकित्सक द्वारा प्रस्तावित किए जाते है, निम्न हैं :-
नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थाएं इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। नशा रोकने में सबसे बड़ी समस्या है कि हम सिर्फ जागरूकता पर जोर देते है, उसकी रोकथाम के प्रयास कम करते हैं। जागरूकता सिर्फ बड़ों को नशे की लत से दूर करती है, जबकि रोकथाम बचपन में नशे की लत न लगे इसके लिए जरूरी है राष्ट्रीय स्तर पर चेतना। नशा को रोकने के लिए निम्न प्रयासों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
1. सामाजिक स्तर पर नशा रोकथाम कार्यक्रम बनना चाहिए।
2. नशा का व्यापक फैलाव समाज से संबंधित है अतः ऐसे समाजों को चिन्हित करके व्यापक जागरूकता अभियान चलना चाहिए।
3. स्वस्थ, सफल एवं सुरक्षित छात्र कैसे बनें इस थीम पर सभी विद्यालयों में नशा मुक्ति अभियान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।
4. नशा रोकने के लिए कारगर रणनीति राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वित होनी चाहिए।
5. राष्ट्रीय युवा नशा मुक्ति आंदोलन महाविद्यालयीन स्तर पर पाठ्यक्रम में लागू होना चाहिए।
6. बच्चे नशे से दूर रहे ऐसे क्षेत्रों पर नशा रोकथाम केंद्रित होना चाहिए। इसके लिए तीन स्थानों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(1) विद्यालय (2) कॉलेज (3) कार्यक्षेत्र
7. नशे की रोकथाम वाली संस्थाओं एवं कानून एवं न्याय की संस्थाओं में आपसी समन्वय व सूचनाओं का आदान-प्रदान होना चाहिए।
8. नशे की हालत में गाड़ी चलने पर रोकथाम के लिए कड़े कानून का प्रावधान होना चाहिए।
9. नशे से सुरक्षित सड़क (addiction free road) कार्यक्रम चलाना चाहिए।
10. मादक दवाओं से जुड़े लोगों पर कठिन दंड का प्रावधान होना चाहिए।
11. आवासीय उपचार कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
12. विद्यालय एवं परिवार में बच्चों एवं युवाओं के नशे के संकेत पहचानने वाले कार्यक्रमों का आयोजन एवं प्रशिक्षण होने चाहिए।
13. नशा मुक्ति संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए।
14. नशा मुक्ति के लिए निम्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाते हैं।
1. 31 मई को अंतरराष्ट्रीय तम्बाकू निषेध दिवस।
2. 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस।
3. 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यपान निषेध सप्ताह।
4. 18 दिसंबर को मद्यनिषेध दिवस।
इन दिवसों पर राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक जागरूकता कार्यक्रमों में अधिक से अधिक नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। नशीले पदार्थों के सेवन विश्व स्तर पर आपात स्थिति निर्मित हो गई है। नशे के प्रभाव से न केवल एक जीवन वरना सम्पूर्ण परिवार का विनाश हो जाता है। शस्त्र एवं पेट्रोलियम उद्योग के बाद अवैध मादक द्रव्यों का धंधा विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है।
नशे के फैलाव से देशों का आर्थिक विकास पिछड़ रहा है एवं समाज में आपराधिक प्रवृत्तियां पनप रही हैं। नशे से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारिवारिक एवं सामाजिक सामूहिक संकल्प की आवश्यकता है। सिर्फ सरकार या नशामुक्ति संस्थाएं इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं।