कॉलेस्ट्रोल से लड़ने की शुरुआत कम उम्र से ही होनी चाहिए। युवावस्था में ही ऐसी जीवनशैली अपना लें जिससे न तो कॉलेस्ट्रोल बढ़े और न उच्च रक्तचाप अथवा हृदयाघात जैसी किसी समस्या का सामना करना पड़े।
अगर आप उन लोगों में से हैं जो अपना कॉलेस्ट्रोल दवाओं से कम करना चाहते हैं और अपनी जीवनशैली में किसी तरह का परिवर्तन नहीं कर रहे जैसे कि व्यायाम करना स्वास्थ्यकर भोजन करना अथवा वजन घटाने की कोशिश तो समझ लीजिए कि आप बिल्कुल गलत रास्ते पर चल रहे हैं।
यह रास्ता जल्द ही आपको अस्पताल की ओर ले जाएगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि मोटापे की बढ़ती दर, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कॉलेस्ट्रोल समस्याएँ नौजवानों में काफी देखने में आ रही हैं। यही कारण है कि वे इतनी अधिक गोलियां खा रहे हैं। हालांकि इन गोलियों से कॉलेस्ट्रोल के स्तर को नीचे लाया जा सकता है लेकिन कॉलेस्ट्रोल को मैनेज करने का काम खुराक में बदलाव और शारीरिक तौर पर सक्रिय जीवनशैली के द्वारा ही करना चाहिए।
हाई कॉलेस्ट्रोल लेवल एक खामोश बीमारी है जो अपने आने का कोई संकेत नहीं देती। ज्यादातर लोगों को इसके बारे में पहले पहल तब मालूम पड़ता है जब वे अपना रुटीन फीजिकल एक्जामिनेशन और ब्लड टेस्ट कराते हैं। 20 साल की उम्र के बाद हर 5 साल में एक बार अपना कॉलेस्ट्रोल चेक करवाना चाहिए। सबसे बेहतर है 'लिपोप्रोटीन प्रोफाइल' कहलाने वाला टेस्ट करवाया जाए। इससे आपके कॉलेस्ट्रोल के बारे में पता लग जाता है।
* कुल कॉलेस्ट्रोल।
* एलडीएल (बुरा) कॉलेस्ट्रोल-यह हृदय की रक्त धमनियों में रुकावट का प्रमुख कारण है।
* एचडीएल (अच्छा) कॉलेस्ट्रोल-यह बुरे कॉलेस्ट्रोल के कुप्रभाव से दिल की रक्त वाहिकाओं को बचाता है।
* ट्राइग्लिसिराइड-रक्त में मौजूद एक प्रकार की वसा।
अच्छा कॉलेस्ट्रोल हमें हृदय रोगों से बचाता है। इसलिए इसके लिए ज्यादा नंबर अच्छे हैं। 40 एमजी/डीएल से नीचे का स्तर जोखिम पूर्ण है, क्योंकि इससे दिल की बीमारियों के पनपने का खतरा बढ़ जाता है। 60 एमजी/डीएल या इससे ज्यादा का एचडीएल स्तर हृदय को रोगों से बचाए रखने के लिए बहुत सहायक होता है।