मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो 0.35 प्रतिशत और बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय किया। इससे बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त (EMI) बढ़ेगी।
आरबीआई ने वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच मुद्रास्फीति को काबू में लाने के मकसद से यह कदम उठाया है। केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान को 7 प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए एमपीसी ने नीतिगत दर रेपो 0.35 प्रतिशत बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय किया है। आरबीआई मई से लेकर अबतक 5 बार में रेपो दर में 2.25 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है। जानिए मौद्रिक नीति की 10 खास बातें...
-भारतीय अर्थव्यवस्था जुझारू बनी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच भारत एक उम्मीद की किरण
-चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत पर रहेगी। तीसरी तिमाही में इसके 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.9 प्रतिशत रहने की संभावना।
-मुख्य मुद्रास्फीति अभी भी ऊंची बनी हुई है, ऐसे में मौद्रिक नीति के स्तर पर सूझ-बूझ की जरूरत है।
-आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को मामूली रूप से घटाकर 6.8 प्रतिशत करने के बावजूद भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
-चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-नवंबर की अवधि में गैर-खाद्य ऋण बढ़कर 10.6 लाख करोड़ रुपए हुआ। पिछले साल की समान अवधि में यह 1.9 लाख करोड़ रुपए था।
-कृषि क्षेत्र मजबूत। रबी की बुवाई सामान्य से 6.8 प्रतिशत अधिक।
-वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता। खाद्य सामग्री की कमी और ईंधन की ऊंची कीमतों से गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित।
-विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक। दो दिसंबर को यह बढ़कर 551.2 अरब डॉलर हुआ। 21 अक्टूबर को यह 524 अरब डॉलर पर था।
-डॉलर के मजबूत होने के बीच अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये में कम उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।