भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कामकाज संभालने के बाद तबाड़तोड़ फैसले लेकर नई सरकार के कामकाज करने के इरादे साफ कर दिए हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साफ कहा है कि अब प्रशासन में लेटलतीफी बर्दाश्त नहीं होगी। मुख्यमंत्री अफसरों को साफ संदेश दिया कि वे अब बदल जाएं क्योंकि नई सरकार के कामकाज करने का तरीका पिछली सरकार अलग है। मुख्यमंत्री कमलनाथ भले ही तेजी से फैसले लेकर जनता को ये संदेश देना चाह रहे हैं कि अब मध्यप्रदेश में प्रशासन नए तरीके से काम करेगा, लेकिन उनके सामने कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाना सूबे के मुखिया के लिए आसान नहीं होगा।
सूबे की खस्ता माली हालत : मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की जर्जर आर्थिक हालत से निपटना है। सरकार का खजाना पूरी तरह से खाली है और उस पर कर्ज की मार है। प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया पहले ही साफ कह चुके हैं कि जैसा खजाना 15 साल पहले कांग्रेस सरकार ने भाजपा सरकार को सौंपा था, वैसा ही खजाना अब भाजपा ने नई कांग्रेस सरकार को सौंपा है।
प्रदेश की खराब माली हालत के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसानों की कर्जमाफी का जो फैसला किया है, उससे प्रदेश के खजाने पर 34 से 38 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। कर्जमाफी के फैसले के बाद सरकार के सामने आर्थिक संकट जैसे हालत खड़े हो सकते हैं।
मध्यप्रदेश पर इस वक्त लगभग 2 लाख करोड़ का कर्ज है, वहीं पिछली भाजपा सरकार अपनी लोकलुभावन योजनाओं को पूरा करने के लिए पहले भी कई बार ओवर ड्राफ्ट कर चुकी है। ऐसे में नई सरकार के सामने कर्जमाफी के फैसले के बाद आय-व्यय में सुंतलन बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
वचन पत्र के वादे को पूरा करना : मुख्यमंत्री बनने के दो घंटे के अंदर कमलनाथ ने कर्जमाफी समेत कांग्रेस के वचन पत्र में किए गए चार वादों को पूरा करके ये साफ कर दिया है कि उनकी सरकार जनता से किए गए अपने हर वादे को पूरा करेगी, लेकिन सूबे की वर्तमान आर्थिक हालत को देखकर ये नए मुख्यमंत्री के लिए इतना आसान काम नहीं होगा।
बिजली के बिल को हाफ करना, बेरोजगार युवकों को रोजगार देना या उनको बेरोजगारी भत्ता देना जैसे वादों को पूरा करने के रास्ते में मुख्यमंत्री कमलनाथ को हर कदम पर अड़चनों का समाना करना पड़ेगा।
मंत्रिमंडल के गठन में सामंजस्य बैठाना : सूबे में 15 साल का वनवास खत्म करने के बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ के सामने मंत्रिमंडल का गठन करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। नई सरकार के शपथ लेने के पहले ही कांग्रेस के अंदर मंत्रिमंडल को लेकर जो खींचतान दिखी है, उससे पार पाना आसान नहीं होगा।
कमलनाथ के कांग्रेस के बड़े सियासी कद को लेकर राजनीतिक पंडित यह मान रहे हैं कि कमलनाथ लोकसभा चुनाव को देखते हुए अपने मंत्रिमंडल का गठन जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए करेंगे।
सियासी मैनेजमेंट : मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बसपा, सपा और निर्दलीयों के समर्थन पर टिकी है। कमलनाथ के सामने इन सभी को साधकर रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस सरकार बनते ही बीजेपी के इन सहयोगी विधायकों को संपर्क करने की खबरें भी मुख्यमंत्री की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं। ऐसे में देखना होगा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ कैसे सबको साथ में लेकर चलते हुए अपनी सरकार को चलाते हैं।
सियासत में कमलनाथ की पहचान ऐसे राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर होती है जो अपने मैनेजमेंट में माहिर हैं। ऐसे में देखना होगा कि बतौर मुख्यमंत्री कमलनाथ कैसे अपने प्रबंधन कौशल को दिखाते हुए सूबे में विकास की नई इबारत लिखते हैं।