पतंग से भी तो सीख सकते हैं जीने की कला

सीमा व्यास
संक्रांति और पतंग का एक रिश्ता है। जनवरी मध्य की गुनगुनी धूप हो, हाथ में तिल-गुड़ हो और आप खुले में दृष्टि ऊपर की ओर उठाई तो पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा दिखेगा। हर पतंग एक डोर के सहारे अठखेलियां करती हुई। मानो उत्तरायण होते सूर्य नारायण की अगवानी करने नन्ही सी पतंग आकाश के द्वार पर जा पहुंची हो। हजारों रंगों की पतंगें सूर्य की आरती उतारने को तैयार। धरती पर खड़े हम उत्साह से थामे रहते हैं उस नाजुक सी पतंग की डोर। खुशी, उम्मीद और धैर्य के सहारे। 
पतंग। दुनिया का सबसे सस्ता और अनूठा खिलौना। नाम सुनते ही मन हल्का सा हो जाता है, कहीं उड़ने को बेताब भी। पतंग चटख रंग की नाजुक सी, पतले से कागज से बनी होती है। जिसे बांस की दो पतली खपच्चियां साधे रखती हैं और तैयार करती हैं पतली सी डोर के सहारे ऊंचे अनंत आकाश में उड़ने के लिए। 
 
क्या पतंग सिर्फ एक शौक या खेल भर मात्र है ? या जीवन का सार छिपा है इस नाजुक सी पतंग में ? आइए, एक नई नजर से देखें पतंग को -  
 
आसमां छूने की तमन्ना-
गौर करें तो हमारा जीवन भी पतंग की मानिंद है। सुंदर, हल्का और उम्मीदों से भरा। हर व्यक्ति पतंग की भांति उड़ना चाहता है। अपनी इच्छाओं की डोर के सहारे। भीतर की क्षमता की उडंची देकर ऊंचे आसमान में जाना चाहता है। उम्र के हर पड़ाव पर इच्छाएं जन्म लेती हैं। हर प्रयास उन्हें पूरा होते देखना चाहता है। एक सपना सदा साथ रहता है, आसमान की पतंग सा। जो हर स्थिति में सफलता की आशा करता है। 
 
हार नहीं स्वीकार -
पतंग एक बार में ही आसमां छूने लगे ऐसा बहुत कम होता है। पतंगबाज एक-दो बार सफलता न मिलने पर प्रयास करना नहीं छोड़ते। पतंग के नीचे आने पर वे अगली बार हवा के रूख को भांपकर उड़ंची की दिशा बदलते हैं और परिणाम आकाश में दिखाई देता है। इसी प्रकार जीवन में भी हर कोशिश को सफलता मिले, जरूरी नहीं। कई बार हमें नाकामियों को भी सबक मानकर, उनसे सीख लेकर आगे की दिशा तय करनी होती है। 
 
जोते की तरह हो संतुलन -
पतंग पीछे की ओर से धागे के जोतों से बंधी होती है। जो कि आसमान में भी उसका संतुलन बनाए रखते हैं। यदि जोते सही न बंधें हों तो पतंग आसमां तक नहीं पहुंच पाती। छोटी सी उड़ान भी नहीं भर पाती। जीवन में भी रिश्तों की अहमियत जोतों की तरह होती है। बहुत नाजुक धागे की तरह। फिर रिश्ता चाहे पति-पत्नी का हो या सास-बहू का। जोते ठीक न बंधें हों तो जीवन में गोते लगने लगते हैं। सामंजस्य रूपी जोते बंधें हों तो परिवार का संतुलन बना रहता है और फिर पतंग आसमां छूती है। 
 
भरोसे की डोर -
एक पतली सी डोर के सहारे पतंग आकाश तक पहुंच जाती है। पर यदि डोर कच्ची हो तो राह से ही टूटकर नीचे आ गिरती है। जीवन की पतंग भी भरोसे की डोर के सहारे उम्मीद को असमां तक ले जाती है। आपसी भरोसा। हर स्थिति में साथ का। एक-दूसरे पर सदा विश्वास का। भरोसा टूटा तो जीवन की पतंग देखते ही देखते धरा पर आ जाती है। और नीचे गिरी पतंग की ओर कोई नहीं देखता। हर कोई उड़ती पतंग की तारीफ करता है। 
 
चुनौती है आसपास -
पतंग जब आसमान में होती है तो अन्य कई पतंगें उसके आसपास होती हैं, उसकी डोर काटने को आतुर। सबसे बचते हुए उसे अपना अस्तित्व बनाए रखना होता है। प्रतियोगिता के माहौल में हमारे आसपास भी कई चुनौतियां है। आगे बढ़ने की, सबकी अपेक्षाओं को पूरा करने की, सेहत बनाए रखने की और सबसे बड़ी विपरीत स्थितियों में सफलता पाने की। इन चुनौतियों के साथ ही जीना है। साहस के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखना है और आसमां की पतंग की तरह देखनेवालों को खुशी भी देनी है। 
 
ऊंचा उठने पर ही सम्मान-
पतंग घर के कोने में रखी हो तो उसे कोई उम्मीद, उत्साह से नहीं देखता। पर आसमां में उड़ती पतंग की ओर से कोई नजरें चुरा भी नहीं सकता। बरबस सब बाध्य हो जाते हैं उसे देखने और तारीफ करने के। अपने जीवन में भी व्यक्ति कोई योग्यता हासिल कर पाता है, क्षमता से खुद को स्थापित करता है, भीड़ से अलग पहचान बनाता है उसकी ओर सब आकर्षित होते हैं। उसकी तारीफ करते हैं, उस जैसा बनने का प्रयास करते है। 
 
अनंत हैं संभावनाएं -
ऊपर जाने के बाद ही पतंग को एहसास होता है कि आसमां कितना बड़ा है। उसकी दुनिया कितनी विशाल है। उड़ने की अनंत संभावनाएं हैं। इसी प्रकार जीवन में भी वैचारिक रूप से ऊपर उठकर सोचने लगते हैं तब पता लगता है कि दुनिया का विस्तार कितना है। जानकारी हासिल करने के बाद पता चलता है कि ज्ञान का भंडार तो बहुत विस्तृत है। स्वयं को पूर्ण करने की संभावनाएं अनंत हैं। हमें सीखने की गति और क्षमता बनाए रखना है। हमें भी पतंग की तरह खुद को व्यस्त रखना होगा। सतत प्रयास करते रहना है, आसमां में बने रहने के। 
 
खुशियां दो, खुश रहो -
पतंग के आसमां में जाते ही उससे जुड़ा हर व्यक्ति खुश नजर आता है। चाहे वह पतंग उड़ानेवालें हों, उसके सहायक हों या उड़ती पतंग को देखनेवाले हों। हर व्यक्ति बहुत प्रसन्न रहता है। मानो पतंग खुश तो सब खुश। हम सब भी जीवन में खुश रहना चाहते हैं। खु रहने की पहली शर्त कि खुश रखें। खुश  रहकर ही सबको खुश रखा जा सकता है। और कौन नहीं चाहता खुश रहना ? 
 
तो इस संक्रांति को उड़ती पतंग में देखें हम अपना जीवन और बन जाएं हम भी पतंग सा। हल्का, रंगदार, संतुलित, उम्मीद-उत्साह से भरा और आसमां में बने रहने को बेताब।
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