'मध्यप्रदेश में एक आईपीएस अफसर का वीडियो चर्चा में है, चर्चा ये नहीं है कि वे लिफाफा लेते कैमरे में कैद हुए, मुद्दा ये है कि इतनी लापरवाही, पकड़े गए? आखिर समाज और सत्ता ने क्यों रिश्वत को तोहफा मान लिया'
आखिर मधु बाबू एक्सपोज़ हो गए। ऐसा क्यों हुआ? एक मंझा हुआ तपा तपाया अफसर और ऐसी लापरवाही? इसे लापरवाही इसलिए कह रहा हूं क्योंकि लिफाफा तो अब सौहार्द का प्रतीक है। इस सौजन्यता को स्वीकारना अफसरी के बने रहने का एकमात्र रास्ता है। मध्यप्रदेश या किसी भी राज्य में अफसरशाही ऐसे ही लिफाफों पर ज़िंदा है। ये जो लिफाफा रेल है। बड़ी लम्बी है।
इसमें सवार होकर आप मुख्य सचिव तक पहुंच सकते हैं। ऐसा नहीं करेंगे तो किसी अकादमी में अफसरों की मेस का जिम्मा संभालते रहेंगे। फील्ड की तैनाती के लिए आपके पास लिफाफे की बड़ी योग्यता जरुरी है। जो जितने सयानेपन से ये लिफाफा एकत्रीकरण करेगा वो उतना समझदार कहलाएगा। सत्ता ऐसे लोगों को खुद तलाश लेती है। स्क्रैच एंड विन जैसी योजना है सरकारी ओहदे।
रिश्वत लेना-देना कोई बुराई रहा ही नहीं। पर इस तरह से पकड़े जाने ने अफसर की बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया। वे सत्ता की नजर में एक वीडियो से उतर गए। चर्चा ये नहीं है कि एक आईपीएस रिश्वत लेते दिख रहा है। चर्चा ये है कि ऐसी लापरवाही रिश्वत भी ठीक से नहीं ले सके। वीडियो साढ़े तीन साल पुराना है। जब साहब उज्जैन में पदस्थ थे।
अफसरों में और आम लोगों में ये भी चर्चा का विषय है कि बड़े कमजोर निकला मधु बाबू का मेनेजमेंट। चार साल में वीडियो बनाने वाले को पूरी तरह सेट नहीं कर पाए। उसने अब वायरल कर दिया। कुछ लोग उन्हें आपसी रंजिश का शिकार बता रहे हैं। लोगों की सहानुभूति है बेचारे साहब, उलझ गए। तर्क है कि ये वीडियो उस वक्त के एक एसपी ने उनसे खुन्नस में बनाया। यानी इस बात से किसी को आश्चर्य, पीड़ा नहीं है कि एक नौकरशाह इस सुशासन वाली सरकार में ऐसे लिफाफे लेता है। क्योंकि सब इसे स्वीकार चुके हैं। ये सबसे खतरनाक है।
एक बात ये भी उठ रही कि कांग्रेस के कमलनाथ ने जिस अफसर को ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बनाया, वे लिफाफे लेते कैमरे में कैद हुए। पर सवाल ये भी है कि वे कैमरे में कैद तो शिव ‘राज’ में हुए। सरकारें किसकी है, इससे धनबल वालों की आस्था में कोई फर्क नहीं पड़ता।
दरअसल, मधु कुमार बाबू दीवार की एक खूंटी है इस वक्त बात करने के लिए। वैसे तो पूरी दीवार ही गन्दी है। वरना सत्ता और नौकरशाही के बीच सेतु ही लिफाफे बने हुए हैं। चतुराई से लिफाफे लेने और उसे आगे बढ़ाने वाले शाबाशी पाते हैं। पर मधु कुमार बाबू अब उस दौड़ में पिछड़ गए। आखिर पकड़े जो गए। अब नई पौध को मौका मिलेगा।
कोरोनाकाल में कई नए ऐसे काबिल, कमाऊ अफसर सामने आए हैं। सरकार की निगाहें हैं, उन पर जल्द सम्मानित भी होंगे।
ऐसे वीडियो तमाम अफसरों के लिए प्रेरणा साबित होंगे। सबक और मिसाल बनेंगे। वे इससे सीखेंगे कि क्या-क्या नहीं करना है। लिफाफे ऐसे नहीं लेना है। अफसरशाही के प्रबंधन में इसे हिदायत के साथ पढ़ाया जाएगा। अक्सर जब अफसरों को ये लगने लगता है कि पूरी दुनिया मुट्ठी में है, तब वे अपनी मांद से निकलकर ऐसे खुले में शिकार करने लगते हैं।
सरकार की सदशयता देखिए, मधु कुमार बाबू को सस्पेंड नहीं किया। भोपाल पुलिस मुख्यालय भेज दिया। आखिर भेजते भी कैसे। उनके ऊपर केंद्र के एक बड़े नेता का हाथ। प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा दोनों सरकारों के कई राज़ उनके पास है। बहुत संभव है कि बड़ी सजा देने से दूसरे अफसर ठिठक जाते और लिफाफा कारोबार प्रभावित होता। कुल मिलाकर सत्ता के लिए 'मधु' मेह अच्छा है।
इलायची.. थोड़ी सी पड़ताल करिए। सोचिए पहले जो अफसर आय से अधिक संपत्ति या रिश्वत में पकड़े गए। वो अब कहां हैं। सब आपको आपने आसपास किसी बड़े ओहदे पर ही मिलेंगे। आखिर एक बड़ा लिफाफा सारे दाग धो देता है!