लापरवाही की गहरी झील में समाए 12 बच्चे और 2 शिक्षक, किसके माथे पर मढ़ें यह दोष?

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024 (16:31 IST)
महेंद्र सांघी ‘दद्दू’ गुजरात की हरणी झील में पिकनिक मना रहे स्कूली बच्चों के साथ दर्दनाक हादसा हो गया। झील में सफर पूरा कर किनारे आते समय सेल्फी लेने के लिए बच्चे एक तरफ इकट्ठे हुए तो बैलेंस बिगड़ गया और नाव पलट गई। जब तक मदद पहुंचती 12 बच्चे और दो शिक्षक डूब चुके थे। तीन बच्चे लापता हैं। लाइव जैकेट केवल 10 बच्चों को मिली थी। लापरवाही से मौतों का ये सिलसिला आखिर कब थमेगा। इसका जवाब शायद हम में से किसी के पास नहीं है।

उधर चित्रगुप्त ने यमराज से पूछा की इस घटना की जिम्मेदारी किसके माथे पर मड़ी जाए। क्या गुजरात सरकार के माथे पर या टेक्नोलॉजी के माथे पर, शिक्षकों पर या बच्चों के माता-पिता पर।

यमराज दुखी स्वर में बोले कि इसकी जिम्मेदारी तो प्रदेश के शिक्षा मंत्रालय की है। शिक्षा विभाग तरह-तरह के विषय इतिहास, भूगोल फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी आदि पाठ्यक्रम में शामिल करता है। किंतू बच्चों के जीवन खतरे में डालने वाली गलतियों के बारे में बताने के लिए कोई पाठ या विषय पाठ्यक्रम में नहीं है।

एक विषय ऐसा होना चाहिए, जिसमें बच्चों को बदलते समय, बदलती टेक्नोलॉजी तथा बदलती जीवन शैली के अनुरूप नए खतरों तथा उनसे बचने के लिए आवश्यक सावधानियों के बारे में अवगत करवाया जाए। बदलते समय के अनुसार इस पाठ्यक्रम में त्वरित बदलाव हों।

बताइए आज के हाई टेक युग के बच्चों और शिक्षकों को इतना ज्ञान न हो कि सेल्फी लेने के लिए सभी लोग नाव की एक और इकठ्ठा होंगे तो नाव उलट जाएगी तो हमारी शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह भी है और दाग भी। सरकार तुरंत इसी घटनाओं से सबक ले। नर्सरी स्तर से लेकर प्रायमरी स्कूल स्तर के बच्चों को शिक्षित करने के लिए उचित विषय या पाठ पाठ्यक्रम में शामिल करें।

पूर्व में कई तरह की घटनाओं में मासूम बच्चों की जानें जा चुकी हैं। रिवर्स होती गाड़ी के पीछे खड़े होने से। पानी से भरे गड्डे, हौद में या बोरवेल में गिरने सेl कुत्ते के काटने से भी कई बच्चे घायल होते हैं या जान गंवा देते हैं। सबसे बचने के तरीके पाठ्यक्रम में शामिल किए जाएं।

तीन से चार वर्ष के बच्चे यदि मोबाइल चला सकते हैं तो पालक उन्हें एक खिलोने की गाड़ी तथा एक गुड़िया की सहायता से खेल खेल में सिखा सकते हैं कि रिवर्स लेती गाड़ी के पीछे खड़े होने पर एक्सीडेंट हो सकता है।

इंदौर के हमारे आशीष नगर में चाचा अपने नन्हें भतीजे को कार में घुमाने ले गए। घर के सामने वापस उतार कर जब कार रिवर्स ली तो पता ही नहीं चला कि भतीजा कब कार के पीछे आकर खड़ा हो गया। नतीजा था इकलौते भतीजे की दर्दनाक मौत।

विकसित टेक्नोलॉजी के साथ जिस तरह से सायबर अपराध बड़ रहे हैं, दुर्घटना जनित मौतें भी बड़ रही हैं। यातायात नियमों के उलंघन से होने वाली मौतें बहुत अधिक हैं।

पुराने जमाने में जब घर में बड़े बूढ़े होते थे, वे इस तरह की शिक्षा बच्चों को दे देते थे। पर अब एकल परिवारों के चलते यह रास्ता बंद हो चुका है। उनकी आजकल कोई सुनता भी नहीं।

इस के प्रति जागरूकता लाने के लिए न केवल गंभीर प्रयास हों बल्कि कानूनों में भी जरूरी बदलाव किए जाने चाहिए। काश हमारे नेता वोट बैंक राजनीति से फुर्सत निकालकर कुछ ब्रेक लेने के बारे में सोचें।

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