महिलाएं आज हर मोर्चे पर पुरुषों को टक्कर दे रही हैं.. चाहे वह देश को चलाने की बात हो या फिर घर को संभालने का मामला, यहां तक कि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी वे बखूबी निभा रही हैं। महिलाओं ने हर जिम्मेदारी को पूरी तन्मयता से निभाया है, लेकिन आज भी अधिकांश मामलों में उन्हें समानता हासिल नहीं हो पाई है।
चंद उपलब्धियों के बाद भी देखें तो आज भी महिलाओं की कामयाबी आधी-अधूरी समानता के कारण कम ही है। हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस तो मनाया जाता है लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है।
साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं।
रूपिन्दर कौर कहती हैं, 'बदलाव तो अब काफी दिख रहा है। पहले जहां महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं।'
डॉ. मधुरेश पाठक मिश्र कहती हैं, 'कॉलेजों में लड़कियों की संख्या देखकर लगता है कि अब उन्हें अधिकार मिल रहे हैं। लेकिन एक शिक्षिका के तौर जब मैंने लड़कियों में खासकर छोटे शहर की लड़कियों में सिर्फ शादी के लिए ही पढ़ाई करने की प्रवृत्ति देखी तो यह मेरे लिए काफी चौंकाने वाला रहा। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। काफी हद तक इसके लिए लड़कियां भी जिम्मेदार हैं।'