नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा काबुल और अन्य स्थानों पर कब्जा किए जाने के बाद भारत में रह रहे अफगान नागरिकों में चिंता की लहर दौड़ गई है। ये सभी अफगानिस्तान में अपने दोस्तों और परिवार की सुरक्षा को लेकर खौफजदा है। अपने देश के हालत के प्रति भयभीत और निराश छात्र, कामकाजी लोग और बेरोजगार अफगान नागरिकों ने भी यहां मंगलवार को अफगानिस्तान के दूतावास पर आकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि उन्हें अपनी जन्मस्थान लौटना न पड़े।
मोहम्मद जावीद (26) भी उनमें से एक है जो 6 साल पहले पढ़ाई के लिए भारत आया था। अब वह चाहता है कि उसे अपने देश वापस न लौटना पड़े। जावीद ने कहा कि मेरा सपना था कि यहां पढ़ाई पूरी करने के बाद अफगानिस्तान के विकास के लिए काम करूंगा लेकिन अब मेरा भविष्य अनिश्चित है क्योंकि मुझे लगता है कि तालिबान को मेरे जैसे शिक्षित लोगों की जरूरत नहीं है।
जावीद की तरह खैरुल्ला नूरी के ऊपर भी अफगानिस्तान वापस भेजे जाने की तलवार लटक रही है। नूरी 25 साल की है और अहमदाबाद में 2018 से अपने परिवार के साथ रह रही है। वह दूतावास में अपने पासपोर्ट के नवीकरण और वीजा जिसकी अवधि 29 अगस्त को समाप्त हो रही है, के लिए आई थी। उसने कहा कि मेरे पासपोर्ट की वैधता समाप्त हो चुकी है और मैंने एक नए पासपोर्ट के लिए अपॉइंटमेंट लिया है। हम वापस अफगानिस्तान नहीं जाना चाहते। काबुल में हमारे रिश्तेदार हैं और वर्तमान हालत से बेहद डरे हुए हैं।
नूरी इस समय गुजरात विश्वविद्यालय से बीबीए कर रही है। इसी तरह यहां ईस्ट कैलाश में रहने वाले अब्दुल फतह और हामिद अजिमी के लिए विदेशी धरती पर गरीबी का जीवन अपने देश में बंधक के तौर पर जीने से बेहतर है। अफगानिस्तान में वर्तमान परिस्थितियों पर 32 साल के मोहम्मद ने कहा कि उसके देश में हालात और बिगड़ने वाले हैं। उसने कहा कि सब कुछ प्रतिबंधित है, बैंक बंद हैं और आप एक पैसा नहीं निकाल सकते। मेरी बहन कैंसर की मरीज है जिसे पैसों की जरूरत है लेकिन वह बैंक नहीं जा सकती और दुर्भाग्य से उसका पति भी देश से बाहर है।(भाषा)