महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है। कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है।
यदि यह प्रस्ताव संसद में लाया जाता है तो यह पहला मौका होगा, जब शीर्ष अदालत के किसी मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। हालांकि इससे पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरण के खिलाफ 2009 में राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन प्रस्ताव आने से पहले ही दिनाकरण ने इस्तीफा दे दिया था।
संविधान में उल्लेख
इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।
संविधान की धारा 124 (4) के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद उसे हटाने की प्रक्रिया संसद से ही संभव है। संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाकर मुख्य न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है।
संसद के साथ ही राष्ट्रपति की मंजूरी भी आवश्यक है।
महाभियोग के लिए पुख्ता आधार होना जरूरी है।
राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से इस बारे में आदेश जारी करते हैं.
जज (इन्क्वॉयरी) एक्ट 1968 के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश या किसी अन्य जज को सिर्फ दुराचार या अक्षमता के आधार पर ही हटाया जा सकता है। इसमें आपराधिक गतिविधि या अन्य न्यायिक अनैतिकता भी शामिल है।
प्रक्रिया
मुख्य न्यायाधीश खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त महाभियोग प्रस्ताव की जरूरत होती है।
सांसदों के हस्ताक्षर के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। बाद में इसे राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को सौंपा जाता है।
हालांकि राज्यसभा सभापति या लोकसभा अध्यक्ष पर निर्भर करता है कि वो इस प्रस्ताव पर क्या फैसला लेते हैं। वह इसे मंजूर भी कर सकते हैं और नामंजूर भी।
यदि सभापति और अध्यक्ष प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, एक हाईकोर्ट जज और एक विधि संबंधी मामलों का जानकार (जज, वकील या स्कॉलर) शामिल होता
कमेटी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को दोनों सदनों में दो तिहाई बहुत मिलता है तो महाभियोग पास हो जाता है।
इस प्रक्रिया के बाद राष्ट्रपति चीफ जस्टिस को पद से हटाने का आदेश दे सकते हैं।
भले ही विपक्ष ने कांग्रेस की अगुवाई में इस प्रस्ताव को लाने की तैयारी कर ली है, लेकिन यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि विपक्ष लोकसभा में किसी भी सूरत में इस प्रस्ताव को मंजूर करवाने की स्थिति में नहीं है। गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के ही चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगाए थे।
इनके खिलाफ आया महाभियोग प्रस्ताव
सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है। हालांकि अब तक किसी भी जज को महाभियोग के कारण नहीं हटाया गया। उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था।
सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ वर्ष 2009 में 75 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर युक्त पत्र तत्कालीन राज्यसभा चेयरमैन और उपराष्ट्रीय हामिद अंसारी को सौंपा था। हालांकि प्रस्ताव पास हो उससे पहले ही दिनाकरण ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन ने महाभियोग के बाद वर्ष 2011 में इस्तीफा दे दिया था। सेन के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव पास हो गया था, जबकि लोकसभा में पास होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। सेन को सरकारी फंड के दुरुपयोग और ग़लत तथ्य पेश करने का दोषी पाया था।
2015 में गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस जेबी पार्दीवाला के ख़िलाफ़ जाति से जुड़ी अनुचित टिप्पणी करने के आरोप में महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन उन्होंने अपनी टिप्पणी वापिस ले ली थी। अत: प्रस्ताव रुक गया।
2015 में ही मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी, लेकिन आरोप साबित नहीं हो सके।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के ख़िलाफ़ 2016 और 17 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई, लेकिन प्रस्तावों को समर्थन नहीं मिला।
सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना के मामले में कोलकाता हाईकोर्ट के जज कर्णन को छह महीने के लिए जेल की सजा सुनाई थी। उन्हें यह सजा काटनी भी पड़ी थी।