श्रीनगर। यह एक कड़वी सच्चाई है कि तत्कालीन और वर्तमान राज्य सरकारों की तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर की ओर उतनी संख्या में विदेशी टूरिस्टों का रुख नहीं होने का परिणाम है कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था में वह सुधार नहीं हो पा रहा है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। ऐसे में राज्य सरकार के समक्ष अब यही रास्ता बचा है कि वह विदेशी पर्यटकों को कश्मीर की ओर आकर्षित करने की खातिर वह उन देशों से से एक बार फिर गुहार लगाए, जिन्होंने अपने नागरिकों के लिए कश्मीर का दौरा प्रतिबंधित कर रखा है।
कश्मीर में बॉलीवुड भी लौटने लगा है। देशभर के पर्यटक भी एक बार फिर धरती के स्वर्ग का आनंद उठाने आने लगे हैं पर विदेशी पर्यटक चाह कर भी चांदनी रात में डल झील में नौका विहार से वंचित हो रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी सरकारों ने कश्मीर को अभी भी आतंकवादग्रस्त क्षेत्र घोषित कर अपने नागरिकों के कश्मीर टूर को प्रतिबंधित कर रखा है।
राज्य के टूरिज्म क्षेत्र से जुड़े लोग मानते हैं कि करीब 25 मुल्कों ने कश्मीर को अपने वाशिंदों के लिए फिलहाल प्रतिबंधित कर रखा है। इस चिंता से वे केंद्र सरकार को भी अवगत करवा चुके हैं। इन मुल्कों के राजदूतों को कई बार कश्मीर बुलाकर शांति के लौटते कदमों से परिचय करवा चुके हैं परंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात वाला ही निकला है। इन मुल्कों ने अभी भी यात्रा चेतावनियों को नहीं हटाया है। यात्रा चेतावनियों को हटवाने की खातिर राज्य की तत्कालीन सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री भी कई बार विदेशों का दौरा कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी कोशिश में जुटी हैं। पर कोई भी कामयाब नहीं हो पाया रहा है। कारण स्पष्ट है। कोई भी मुल्क कश्मीर में अभी भी जारी हिंसा की वारदातों के चलते अपने नागरिकों के लिए खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है। यूं तो लाखों देशी टूरिस्टों ने कश्मीर का रुख करना आरंभ कर दिया है। पर उनकी वापसी संतोषजनक इसलिए नहीं मानी जा रही क्योंकि एक तो देशी टूरिस्ट 3 से 4 दिनों तक ही कश्मीर में रूकते हैं तो दूसरा वे अधिक खर्च नहीं करते।
अधिकारियों का कहना था कि विदेशी पर्यटकों का कार्यक्रम अक्सर 20 से 22 दिनों का होता है और उनके द्वारा किया जाने वाला खर्च ही अर्थव्यवस्था को सुधारता है। ऐसा भी नहीं है कि कश्मीर में विदेशी टूरिस्ट न आ रहे हों बल्कि चोरी छुपे आने वालों की संख्या नगण्य ही है और जिन मुल्कों के नागरिक कश्मीर का दौरा कर रहे हैं वे लद्दाख की ओर ही रुख कर रहे हैं। इन्हीं कोशिशों के बीच राज्य सरकार ने एक बार कुछ मुल्कों के राजदूतों को कश्मीर बुलाने का फैसला किया था। पर समझाने में कोई कामयाबी नहीं मिली थी।
हालांकि अभी भी अन्य मुल्कों के राजदूतों से मुलाकातों का सिलसिला अभी जारी है। अधिकारियों के मुताबिक, ऐसा कर वे कश्मीर में लौट आई शांति से उन्हें अवगत करवाएंगे ताकि वे यात्रा चेतावनियों को हटा लें। राज्य सरकार के प्रयासों का एक रोचक पहलू यह था कि उसका सारा जोर कुछ हजार की संख्या में आने वाले विदेशी टूरिस्टों की ओर ही है। वह कश्मीर आने वाले अन्य लाखों देशी पर्यटकों के प्रति अधिक नहीं सोच रही है। सिवाय इसके की उनकी यात्रा सुरक्षित रहे।