केदारनाथ में फिर से तबाही की आशंका, लुप्त हो जाएगा बद्रीनाथ मंदिर?

सोमवार, 1 जुलाई 2019 (14:06 IST)
ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि केदारनाथ और बद्रीनाथ का क्षेत्र कई भूगर्भीय हलचल के कारण लुप्त हो जाएंगे। लगातार बदल रही वहां की प्रकृति, भूस्खलन, ग्लेशियर के पिघलने और धरती के नीचे खिसकती जा रही भारतीय प्लेट के कारण संभवत: ऐसा हो? दूसरी ओर हाल ही में डॉक्टरों की एक टीम ने यह दावा किया कि केदारघाटी में चोराबाड़ी में एक बर्फीली झील का निर्माण हो गया है जिसके चलते केदारनाथ में फिर से तबाही हो सकती है।
 
 
उल्लेखनीय है कि 2013 के दौरान केदारनाथ धाम में आई प्राकृतिक आपदा की त्रासदी को कभी नहीं भूला जा सकता जिसमें 10 हजार लोगों की मौत होने की खबर थी। शोध में यह पता चला था कि केदारनाथ के उपर चोराबाड़ी ताल में कहीं एक झील थी जो तेज बारिश के कारण फट पड़ी थी जिसके चलते केदारनाथ में बाढ़ के कारण भारी तबाही हुई थी। तबाही के बाद कड़ी मेहनत से केदारनाथ को फिर से जीवित किया गया था।
 
 
फिर से बन गई है तबाही की झील-
आज लगभग 6 साल बाद फिर से यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि चोराबाड़ी की वह झील दोबारा पुनर्जीवित हो गई है। ऐसी खबरें सामने आने के बाद डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर रिलीफ फोर्ट की एक टीम ने चोराबाड़ी ताल का दौरा किया और उन्होंने वहां झील के होने से इनकार किया। लेकिन केदारनाथघाटी में स्वास्थ्‍य कैंप चला रहे डॉक्टरों ने बताया कि यह बर्फीली झील चोराबाड़ी ताल के ही दूसरे हिस्से में बन रही है और यह धीरे धीरे बड़ी हो रही है, जिसके चलते केदारनाथ में एक बार फिर तबाही की आशंका व्यक्त की जा रही है।
 
 
यह खबर मिलते ही देहरादून की वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों की टीम एक्टिव हो गई है। उन्होंने भी वहां एक टीम भेजी और बताया कि इस बार केदारघाटी से 5 किलोमीटर ऊपर एक झील बन रही है। वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बताया कि चोराबाड़ी झील विकसित नहीं हुई है। उनका कहना है कि जिस झील के बनने की बात हमारे पास आई है वो केदारनाथ मंदिर से 5 किलोमीटर ऊपर है जबकि चोराबाड़ी झील जिससे केदारघाटी में विनाश हुआ था वो मंदिर से 2 किलोमीटर ऊपर है।
 
 
मगर गौर करने वाली बात ये है कि झील चाहे 2 किलोमीटर ऊपर बनी हो या 5 किलोमीटर, खतरा तो वाकई उतना ही बड़ा है। इस झील के कारण ही तो तबाही हुई थी। यदि देखा जाए तो सही मायने में हमें अभी से कुछ करने की जरूरत है। सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए भी पता चला है कि 2013 की तबाही जैसा खतरा फिर से निकट आ रहा है।

 
खतरे को हल्के में ले रहे हैं वैज्ञानिक?
हालांकि देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन का कहना है कि केदारनाथ के पास चौराबाड़ी ग्लेशियर में एक नई झील के निर्माण से केदार धाम को कोई खतरा नहीं है। सेन ने कहा कि चौराबाड़ी ग्लेशियर में नई झील बनने से केदारनाथ को संभावित खतरे के संबंध में मीडिया में आई खबरों का संज्ञान लेते हुए इंस्टीटयूट ने स्थिति का जायजा लेने के लिए मौके पर 4 सदस्यों का दल भेजा था।

 
सेन ने बताया कि चौराबाड़ी ग्लेशियर गई टीम अभी लौटी नहीं है। उसकी रिपोर्ट आना अभी बाकी है। टीम का नेतृत्व कर रहे डीपी डोभाल ने फोन पर बातचीत के दौरान बताया कि इस झील से मंदिर को कोई खतरा नहीं है। कलाचंद सेन ने बताया कि मंदिर से 4.5 किलोमीटर ऊपर बनी यह मौसमी झील है। इतनी उंचाई पर ऐसी झीलें बन जाना प्राकृतिक बात है। जब हिमालयी ग्लेशियर पिघलते हैं तो पानी नीचे जाने के दौरान छोटे-छोटे गड्ढों में जमा हो जाता है।
 
 
इंस्टीट्यूट के निदेशक ने कहा कि इस तरह की झीलें सामान्यतः स्थायी नहीं होती हैं और वाष्पीकरण की प्रक्रिया से समाप्त होती रहती हैं। इससे आसपास के इलाकों को कोई खतरा नहीं होता है। उन्होंने बताया कि अगर जरूरी हुआ तो वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की एक और टीम को भी मौके पर भेजा जा सकता है।

 
वैज्ञानिकों ने बताया कि जब ग्लेशियर पिघलता है तो जगह-जगह छोटी-छोटी झीलें बन जाती हैं। इस साल ग्लेशियरों में ज्यादा झील बनने के आसार हैं क्योंकि इस बार बहुत ज्यादा बारिश और बर्फबारी हुई है। इस वजह से अभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और वहीं इकट्ठा होकर छोटे-छोटे झील बना लेते हैं लेकिन इन झीलों से कोई खतरे वाली बात नहीं है लेकिन जो चोराबाड़ी झील दोबारा बनने की बात की जा रही है ऐसी कोई बात नहीं है। आपदा के बाद जारी किए गए रिपोर्ट में पहले की कह दिया गया था कि चोरबारी झील दोबारा पुनर्जीवित नही हो सकती है।...हालांकि यहां यह कहना होगा की झील का नाम कुछ भी हो, झील कहीं भी बन रही हो क्या वह फिर से नीचे केदारनाथ में तबाही का कारण नहीं बन सकती है?
 
क्या खिसक रहे हैं केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिर-
शोधकर्ता डॉ. सुशील कुमार ने केदारनाथ और बद्रीनाथ की स्थिति में बदलाव पर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की एक रिपोर्ट पर कहा कि ऐसा मत सोचो कि इसमें कोई सच्चाई है। शिफ्ट होने के और कारण भी हो सकते हैं। धरती के नीचे भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष 40 मिमी आगे खिसक रही है। अगर वहां स्थिति में बदलाव है तो किसी फाल्ट के कारण भी हो सकता है। भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाली वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर की स्थिति में बदलाव पर अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
 
 
लुप्त हो जाएंगे केदारनाथ और बद्रीनाथ तीर्थ?
केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।

 
पुराणों अनुसार भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी। भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ के दर्शन, क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन ब्रद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।
 

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