एम करुणानिधि, जिन्होंने उठाए थे श्रीराम के वजूद पर सवाल
सोमवार, 3 जून 2019 (14:16 IST)
तमिलनाडु की राजनीति के पितामह रहे एम. करुणानिधि की आज 95वीं जयंती है। एम. करुणानिधि के जन्मदिन पर ट्विटर पर #HBDKalaignar96 #HBDFatherOfCorruption ट्रेंड हो रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में करुणानिधि की पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) ने धमाकेदार जीत हासिल की। तमिलनाडु की कुल 38 सीटों में से 23 पर डीएमके ने जीत दर्ज की। इस जीत को उनके बेटे एमके स्टालिन ने अपने पिता को समर्पित किया। करुणानिधि का 7 अगस्त 2018 को निधन हो गया था।
एक सफल राजनेता के अलावा करुणानिधि तमिल सिनेमा के नाटककार और पटकथा लेखक, एक पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट भी थे। करुणानिधि ने अपना करियर तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के तौर पर शुरू किया था, लेकिन बाद में अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और भाषण कला के जरिए वे एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ बन गए।
श्रीराम के वजूद पर उठाए थे सवाल : सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करुणानिधि ने हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए थे। करुणानिधि ने कहा था कि 'लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था। कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?' उनकी इस टिप्पणी पर बवाल भी मचा था।
मुथूवेल करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुवरूर के तिरुकुवालाई में दक्षिणामूर्ति के नाम से हुआ था। पिता मुथूवेल तथा माता अंजुगम थीं। ईसाई वेलार समुदाय से हैं और उनके पूर्वज तिरुवरूर निवासी थे। करुणानिधि की तीन पत्नियों से उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं। एमके मुथू, जिन्हें पद्मावती ने जन्म दिया था, जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। दूसरी बेटी कनिमोझी तीसरी पत्नी रजति से हैं। उनकी बेटी कनिमोझी को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जेल की सजा भी हो चुकी है।
अपनी पहली ही फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की। उनके द्वारा लिखी गई 75 पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार आदि शामिल हैं।
करुणानिधि भारत के बड़े नेताओं में से एक थे और 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके थे। राज्य की डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुराई की मौत के बाद पार्टी प्रमुख बने। अपने राजनीतिक जीवन में करुणानिधि ने कभी भी हार का मुंह नहीं देखा। करुणानिधि ने जीवित रहते ही अपना मकान दान कर दिया था। उनकी इच्छानुसार उनकी मौत के बाद इसे गरीबों के लिए एक अस्पताल में बदल दिया गया।
सिर्फ 14 की उम्र में करुणानिधि ने राजनीति में प्रवेश किया और हिन्दी विरोधी आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने द्रविड़ राजनीति का एक छात्र संगठन भी बनाया। अपने सहयोगियों के लिए उन्होंने 'मुरासोली' नाम के एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया। 1957 में करुणानिधि पहली बार विधायक बने। 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया। 1969 में अन्ना दुराई के निधन के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। 5 बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधानसभा सदस्य रहने के साथ-साथ वे राज्य में अब समाप्त हो चुकी विधान परिषद के भी सदस्य रहे।
लिट्टे को बढ़ावा देने का आरोप : राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में करुणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। अंतरिम रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की थी कि राजीव गांधी के हत्यारों को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और डीएमके पार्टी को जिम्मेदार माना जाए।
अपने कार्यकाल में करुणानिधि ने पुलों और सड़कों के निर्माण किए और कई जनकल्याणकारी योजनाएं भी चलाईं। 2004 में लोकसभा चुनावों में करुणानिधि ने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया था और दोनों राज्यों की सभी 40 लोकसभा सीटें जीतने सफलता प्राप्त की थी।
अगले चुनावों में उन्होंने 2009 में डीएमके के सांसदों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 19 कर दिया था और यूपीए को तमिलनाडु तथा पुडुचेरी में 28 सीटें जितवाई थीं। अपने समर्थकों के बीच करुणानिधि 'कलईनार' (कलाकार) के नाम से पुकारे जाते थे। 1970 में पेरिस (फ्रांस) में हुए तृतीय विश्व तमिल सम्मेलन में उन्होंने उद्घाटन समारोह में एक विशेष भाषण दिया था। 1987 में कुआलालम्पुर (मलेशिया) में हुए छठी विश्व तमिल कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने उद्घाटन भाषण दिया था।
2010 में हुई विश्व क्लासिकल तमिल कॉन्फ्रेंस का अधिकृत थीम सांग एम. करुणानिधि ने ही लिखा था जिसकी धुन एआर रहमान ने तैयार की थी। कई पुरस्कार और सम्मान उनके नाम हैं। इसके अलावा उन्हें दो बार डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी प्रदान की गई।