जम्मू-कश्मीर में मंगलवार को एक ऐसी खबर ने तूल पकड़ा, जिसने न केवल स्थानीय लोगों बल्कि पूरे देश का ध्यान खींचा। प्रशासन ने 60 पाकिस्तानी नागरिकों को निर्वासित (डिपोर्ट) करने की प्रक्रिया शुरू की थी, जिनमें ज्यादातर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के मूल निवासी बताए गए। लेकिन इस सूची में एक ऐसा नाम शामिल था, जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया—शौर्य चक्र विजेता शहीद पुलिसकर्मी मुदासिर अहमद शेख की मां शमीमा अख्तर। यह खबर जैसे ही सामने आई, हंगामा मच गया और देर रात बारामुला पुलिस को स्पष्ट करना पड़ा कि शमीमा अख्तर को डिपोर्ट नहीं किया जा रहा है।
45 साल से कश्मीर में रह रहीं शमीमा अख्तर : शमीमा अख्तर, जो पिछले 45 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में रह रही हैं, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से हैं। 20 साल की उम्र में वह कश्मीर आई थीं और यहीं की होकर रह गईं। उनके बेटे मुदासिर अहमद शेख जम्मू-कश्मीर पुलिस की अंडरकवर टीम के बहादुर सिपाही थे। मई 2022 में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए मुदासिर शहीद हो गए। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत देश के प्रतिष्ठित शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान शमीमा अख्तर ने अपने पति के साथ मई 2023 में दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों प्राप्त किया था।
परिवार का दर्द और आक्रोश : मुदासिर के चाचा मोहम्मद यूनुस ने इस घटना पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "मेरी भाभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से हैं, जो हमारा ही क्षेत्र है। केवल पाकिस्तानियों को डिपोर्ट किया जाना चाहिए, मेरी भाभी को नहीं।" यूनुस ने बताया कि मुदासिर की शहादत के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने परिवार से मुलाकात की थी। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा भी दो बार परिवार से मिलने आए थे। यूनुस ने भावुक होते हुए कहा, "मेरी भाभी ने अपना बेटा देश के लिए कुर्बान कर दिया। वह 45 साल से यहीं रह रही हैं। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से अपील करता हूं कि उनके साथ ऐसा न किया जाए।"
हंगामे के बाद प्रशासन का यू-टर्न : शमीमा अख्तर को डिपोर्ट करने की खबर जैसे ही सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर फैली, लोगों में आक्रोश फैल गया। शहीद की मां के साथ इस तरह के व्यवहार की खबर ने प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया। देर रात बारामुला पुलिस ने एक बयान जारी कर इस खबर को "असत्य और आधारहीन" करार दिया। पुलिस ने स्पष्ट किया कि शमीमा अख्तर को डिपोर्ट करने की कोई योजना नहीं है। इस बयान ने कुछ हद तक स्थिति को शांत किया, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर यह भ्रम कैसे पैदा हुआ?
शहीद मुदासिर की शौर्य गाथा : मुदासिर अहमद शेख जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष अंडरकवर टीम का हिस्सा थे। आतंकवाद के खिलाफ उनकी बहादुरी और समर्पण की कहानियां आज भी कश्मीर में गूंजती हैं। मई 2022 में आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की रक्षा की। उनकी शहादत ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे देश को गर्व का अहसास कराया। शौर्य चक्र जैसे सम्मान से नवाजे गए मुदासिर की मां के साथ इस तरह की कार्रवाई की खबर ने लोगों के दिलों को झकझोर दिया।
सवालों के घेरे में प्रशासन : यह घटना कई सवाल खड़े करती है। आखिर शमीमा अख्तर का नाम डिपोर्टेशन की सूची में कैसे शामिल हुआ? क्या प्रशासन ने इस सूची को तैयार करने से पहले ठीक से जांच नहीं की? एक शहीद की मां, जो 45 साल से भारत में रह रही हैं, जिनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान दी, उनके साथ इस तरह की गलती कैसे हो सकती है? हालांकि पुलिस ने अब सफाई दे दी है, लेकिन इस घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिए हैं।
इस पूरे प्रकरण ने न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश में लोगों का ध्यान खींचा है। शमीमा अख्तर को डिपोर्ट न करने का आश्वासन मिलने के बाद परिवार और स्थानीय लोग कुछ राहत महसूस कर रहे हैं। लेकिन यह घटना एक सबक है कि ऐसी संवेदनशील कार्रवाइयों में पारदर्शिता और सावधानी बरतना कितना जरूरी है। शहीद मुदासिर की मां का सम्मान न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है। उम्मीद है कि भविष्य में ऐसी गलतियां दोबारा नहीं होंगी।