नई दिल्ली। आगामी आम चुनाव में सभी पार्टियों के बीच सत्ता के लिए पहले जैसी ही प्रतिस्पर्धा और खींचतान होगी लेकिन 2019 चुनावों में एक अंतर होगा। यह पहला मौका होगा, जब आभासी दुनिया में वास्तविक दुनिया ही जैसी जोरदार सियासी रस्साकशी होगी और पार्टियों ने इसके लिए कमर भी कस ली है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता दिलाने में सोशल मीडिया बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन 2019 में यह एक नया आयाम ग्रहण करने वाला है, क्योंकि विपक्षी कांग्रेस ने सत्तारूढ़ दल की साइबर आर्मी के मुकाबले के लिए अपना तरकश को तैयार कर लिया है।
चुनावी समर के पहले न केवल भाजपा और कांग्रेस, बल्कि विभिन्न पार्टियों ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए डेटा विश्लेषण और संचार के लिए अपने-अपने 'वॉर रूम' तैयार किए हैं और हजारों स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसमें आम आदमी पार्टी (आप) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल हैं।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने 2014 के चुनावों से सबक सीखा है और भाजपा को चुनौती देने के लिए अपने अभियान को मजबूत बनाया है, जो भगवा दल का किला माना जाता रहा है। कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख दिव्या स्पंदना ने बताया कि वे लंबे समय से सोशल मीडिया में पार्टी की उपस्थिति की प्रक्रिया पर काम कर रही थीं और हर राज्य में 'वॉर रूम' बनाया गया है।
स्पंदना ने बताया कि हर प्रदेश में हमारी एक सोशल मीडिया इकाई है और अब हम जिला स्तर पर काम कर रहे हैं। जबसे डिजिटल हुआ है तब से सभी लोग जुड़ गए हैं। हर किसी के फोन पर डेटा है और इसका प्रबंधन प्रदेश की टीम कर रही है।
पिछले हफ्ते कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फेसबुक पर एक पोस्ट करके लोगों को आमंत्रित किया था कि पार्टी के संचार को सुधारकर कैसे अनुकूल बनाया जा सकता है। पार्टी ने एक व्हॉट्सअप नंबर शेयर किया था और उपयोगकर्ताओं से इससे जुड़ने को कहा था। भाजपा पहली पार्टी थी जिसने सोशल मीडिया की क्षमता को समझा था और विरोधी पार्टियों को चुनौती देने के लिए संगठन ने डिजिटल क्षेत्र का उपयोग किया था।
भाजपा के राष्ट्रीय सूचना एवं तकनीकी प्रभारी अमित मालवीय ने बताया कि इसमें तकरीबन 12 लाख स्वयंसेवक जुड़े हैं और इस संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मालवीय ने बताया कि भाजपा की सोशल मीडिया रणनीति को प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं ने पहचाना जिन्होंने राजनीतिक संचार का उपयोग करने के लिए इस माध्यम को अपनाया।
माकपा के सोशल मीडिया समन्वयक प्रांजल ने कहा कि उनकी पार्टी थोड़ी देर से सोशल मीडिया में आई। वास्तव में 2014 में इसकी जरूरत महसूस की गई और इसे साकार करने की शुरुआत की गई। पिछले 2 सालों में हमने बड़े क्षेत्र तक पहुंच बनाई है। वहीं आप के सोशल मीडिया विश्लेषक अंकित लाल ने कहा कि वे भाजपा के तरीके से काम नहीं करते हैं, लेकिन उसके पास बड़ी संख्या में स्वयंसेवक हैं। (भाषा)