लखनऊ। लोकसभा चुनाव में भारत की बड़ी जीत और विपक्षी दलों की करारी हार के बाद अब 'राजनीतिक समीकरण' भी बनने-बिगड़ने लगे हैं। सपा-बसपा के महागठबंधन के आगामी विधानसभा चुनाव में भी बने रहने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन यह 'मजबूत जोड़' टूटता हुआ दिख रहा है।
लोकसभा चुनाव से प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर नजर जमाने वाली मायावती का मोह लगता है गठबंधन से भंग हो चुका है। उन्होंने कहा कि गठबंधन से यूपी में कोई फायदा नहीं हुआ। माया ने कहा कि मुसलमानों ने बसपा का साथ दिया, लेकिन यादवों और जाटों के वोट बीएसपी को नहीं मिले। उन्होंने कहा कि यदि यादव समाज के वोट गठबंधन को मिले होते तो अखिलेश के परिवार के लोग चुनाव नहीं हारते।
उल्लेखनीय है कि अखिलेश के परिवार के ही डिंपल यादव, अक्षय यादव और धर्मेन्द्र यादव लोकसभा चुनाव हार गए थे। हालांकि परिणामों पर नजर डालें तो इस चुनाव में सपा की अपेक्षा बसपा को ज्यादा फायदा मिला है। जिस बसपा के पास 2014 में एक भी सीट नहीं थी, उसने इस बार 10 सीटों पर दर्ज की, वहीं सपा की सीटें पिछली बार की तुलना में और कम (सिर्फ 5) हो गईं। जबकि, एनडीए को राज्य में 64 सीटें मिली हैं।
मायावती के बयानों से लग रहा है कि गठबंधन अब अंतिम सांसें गिन रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि आगामी समय में राज्य की 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में बसपा अकेले ही चुनाव लड़ सकती है।