अपराधी विकास दुबे के आतंक के सफर को विस्तार से जानने के लिए हम थोड़ा पीछे राज्यमंत्री संतोष शुक्ला हत्याकांड के समय पर पहुंचे और उस समय के पत्रकारों से बातचीत की तो उस समय एक दैनिक अखबार में कार्यरत शरद कुमार ने फोन पर बताया कि अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर की पटकथा सन् 2000 में ही लिखी जाना शुरू कर दी गई थी।
जब घेर लिया ग्रामीणों ने थाना : वरिष्ठ पत्रकार शरद कुमार बताते हैं कि सन् 2003 व 2005 बीच में एक मामले में थाना कल्याणपुर पुलिस ने इसे गिरफ्तार कर लिया था और सूत्रों के हवाले से खबरें थाने से बाहर निकलकर आईं कि पुलिस इसके आतंक का अंत करने की तैयारी कर रही है, बस फिर क्या था, यह खबर आग की तरह शिवली चौबेपुर और आसपास के गांवों में फैल गई और देखते ही देखते सैकड़ों ग्रामीणों ने थाने के बाहर धरना दे दिया और जब तक पुलिस कोर्ट नहीं ले गई, तब तक सारे ग्रामीण थाने के बाहर ही बैठे रहे।
इस घटनाक्रम के बाद इसके हौसले और बुलंद हो गए क्योंकि इसे ग्रामीणों का साथ मिलना भी अच्छे से शुरू हो गया था लेकिन यह मैसेज राजनीतिक गलियारे तक पहुंच गया और फिर क्या था, चाहे विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा, हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियों में उसकी पूछ होने लगी, देखते ही देखते अपराधी विकास दुबे अपराध की दुनिया में बड़ा नाम बन गया, स्थितियां यह बन गईं कि पुलिस भी इतनी मजबूर हो गई कि जल्दी-जल्दी इस पर हाथ डालने से पहले हजार बार सोचती थी।
अभी भी जांच हो तो खुलेंगे कई राज : वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि अपराध की दुनिया में इसका बड़ा नाम करने में अकेले इसी का हाथ नहीं है, सैकड़ों खादी और खाकी के लोग भी इसके जिम्मेदार हैं। अब देखना यह है कि आतंक का पर्याय बना विकास दुबे तो परलोक सिधार गया लेकिन क्या उन लोगों तक जांच की आंच पहुंचेगी जिन्होंने इसे पल-पल संरक्षण दिया और उसे बड़ा अपराधी बनाया।