Devara part 1 review: जूनियर एनटीआर की फिल्म पर बाहुबली का प्रभाव

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 27 सितम्बर 2024 (16:10 IST)
Devara part 1 review: हीरो ऑफ द मासेस जूनियर एनटीआर के फैंस के लिए 'देवरा' बनाई गई है जिसका पहला पार्ट रिलीज हुआ है। निर्देशक कोराटाला शिवा ने जूनियर एनटीआर का जबरदस्त डोज फैंस को दिया है। तीन घंटे की फिल्म की लगभग हर फ्रेम में वे नजर आते हैं। 
 
दर्शकों को खुश करने के लिए डबल रोल भी दे दिया है ताकि एक ही टिकट में जूनियर एनटीआर के दो रूप दर्शकों को नजर आए। फिल्म में उनका दबदबा इतना ज्यादा है कि हीरोइन जान्हवी कपूर के हिस्से तीन-चार सीन आए हैं। 
 
देवरा देखते समय आपको बाहुबली सहित कई ब्लॉकबस्टर फिल्में याद आएगी, हालांकि बाहुबली का प्रभाव बहुत ज्यादा है। निर्देशक और लेखक शिवा ने कलेवर बदल दिया है। फिल्म में अस्सी और नब्बे का दशक दिखाते हुए समुंदर की पृष्ठ‍भूमि में कहानी को सेट किया है। 
 
देवारा (जूनियर एनटीआर) के पूर्वज और साथी चार गांवों में रहते थे। अपने डिजाइन किए गए विशेष अस्त्र-शस्त्र से वे समुंदर के अंदर लड़ने में माहिर थे। अंग्रेजों से उन्होंने खूब लोहा लिया। अंग्रेज चले गए तो नई पीढ़ी के देवरा,  भैरा (सैफ अली खान) और गैंग उन लोगों के लिए समुंदर से माल उतारने लगी जिनके इरादे नेक नहीं थे।

 
एक दिन देवरा का हृदय परिवर्तन होता है और वह भैरा सहित सभी साथियों को बुराई का रास्ता छोड़ अच्छाई के रास्ते पर चलने के लिए कहता है। साथियों को यह बात मंजूर नहीं है। लेकिन देवरा के डर के कारण वे अपने मन की नहीं कर पाते।  
 
देवरा के खिलाफ साजिश रची जाती है, और अचानक वह गायब हो जाता है, पर उसका खौफ कायम रहता है। सालों बीत जाते हैं और देवरा का बेटा वरा (जूनियर एनटीआर) जवान हो जाता है, लेकिन वह अपने पिता की तरह बहादुर नहीं है। 
 
देवरा कहां गायब हो गया? उसका खौफ अभी भी क्यों कायम है? वरा इतना डरपोक क्यों है? इनमें से कुछ सवालों के जवाब फिल्म में मिलते हैं और कुछ के लिए दूसरे भाग का इंतजार करना होगा। 
 
फिल्म की कहानी में कोई नई बात नहीं है, लेकिन फिर भी दर्शकों को जो बात पकड़ कर रखती है वो जूनियर एनटीआर का अभिनय और तेजी से भागती स्क्रिप्ट। 
 
जूनियर एनटीआर, दक्षिण भारत के अन्य हीरो प्रभास, अल्लू अर्जुन, यश जैसे स्टाइलिश नहीं हैं, लेकिन अपनी एनर्जी और एक्टिंग के दम पर इस कमी को कवर कर लेते हैं। 

 
देवरा के विशाल कैनवास में उन्हें एक्शन, इमोशन, कॉमेडी के कई रंग भरने को मिले और जूनियर एनटीआर ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया है। एक्शन दृश्यों में उनकी फुर्ती देखते ही बनती है।  
 
कहानी में नई बात नहीं होने बावजूद स्क्रिप्ट कुछ इस तरह लिखी गई है कि दर्शकों को सोचने का ज्यादा समय नहीं मिलता। घटनाक्रम तेजी से घटते हैं और कहानी के उतार-चढ़ाव से दर्शकों पर पकड़ बनाए रखते हैं। 
 
फिल्म सिर्फ एक्शन दृश्यों पर ही निर्भर नहीं है बल्कि ड्रामा भी भरपूर है। हीरो का डबल रोल, मां-बेटे का रिश्ता, खूंखार और जिद्दी विलेन को लेकर ड्रामा रचा गया है और ज्यादातर सीन अच्छे बन पड़े हैं। 
 
इंटरवल के बाद फिल्म की गति धीमी पड़ती है, जब देवरा के डरपोक बेटे वरा पर फिल्म का फोकस शिफ्ट होता है। यहां देवरा की कमी महसूस होती है क्योंकि फिल्म का हीरोइज्म गायब हो जाता है, लेकिन अंत आते-आते फिल्म फिर ट्रैक पर आ जाती है। 
 
अंत में एक रहस्य खुलता है, जो दर्शकों को चौंकाता है, लेकिन इसे और बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता था। 
 
कोराटाला शिवा की तकनीकी टीम में भी स्टार हैं। ए. श्रीकर प्रसाद दक्षिण भारत के जाने-माने फिल्म एडिटर हैं और उनकी एडिटिंग फिल्म को शॉर्प बनाती है। संगीतकार अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड फिल्म के प्रभाव को बढ़ाता है। 
 
निर्देशक के रूप में शिवा ने तकनीक के साथ ड्रामे पर भी फोकस किया है और जूनियर एनटीआर के प्रवाह के साथ फिल्म और कहानी को बहने दिया है। जंगल और समुद्र के अंदर फिल्माए गए एक्शन दृश्यों को उन्होंने कहानी में अच्छे से पिरोया है।  
 
फिल्म में महिला पात्रों के लिए करने को कुछ भी नहीं था। कुछ ऐसे दृश्यों को हटाया जा सकता था जिसमें पुरुष किरदार, महिला किरदारों के साथ खराब व्यवहार करते हैं क्योंकि इनकी कहानी में कोई आवश्यकता नहीं थी। 
 
जान्हवी कपूर फिल्म में इंटरवल के बाद नजर आती हैं और चंद दृश्यों के बाद फिर गायब हो जाती हैं। सैफ अली खान को संवाद कम मिले, लेकिन वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। यदि उनके किरदार को ज्यादा फुटेज दिया जाता तो यह फिल्म के लिए बेहतर होता।  
 
देवरा में देखी-सुनी सी कहानी है, लेकिन कहने का अंदाज इस बात पर भारी पड़ता है। 

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